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ओबीसी के अंबेडकर, उदित राज किनके ब्रांड एंबेसडर

सार

कांग्रेस के ओबीसी भागीदारी न्याय सम्मेलन में नेताओं के भाषण अन्याय के बीज बो गए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राहुल गांधी को अपर कास्ट का नेता बताते हुए उन्हें ओबीसी और दलितों की आवाज माना है. दूसरे नेता उदित राज राहुल को ओबीसी का अंबेडकर कह रहे हैं..!!

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विस्तार

    राहुल गांधी  ने दलित मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष क्या बना दिया, वह तो उन्हें अपर कास्ट घोषित कर रहे हैं. साथ ही लोअर कास्ट का मसीहा बताने लगे हैं. अपर और लोअर कास्ट की थॉट के लिए जिस मनुस्मृति की आलोचना करते कांग्रेस थकती नहीं है, वही राहुल गांधी को भारतीय राजनीति का अपर कास्ट का मनु साबित करने में जुट गई है. कांग्रेस की यह ‘राहुल-स्मृति’ ओबीसी दलित और आदिवासी समाज को कितनी पसंद आएगी यह तो वक्त बताएगा.

    अपर कास्ट का राजनीतिक विचार ही सामाजिक अन्याय की धारणा पर खड़ा हुआ है. अब तक राहुल गांधी की जाति को लेकर स्पष्टता नहीं रही है. इस पर तो लोकसभा में सवाल उठ चुका है. अब जब जातीय जनगणना हो रही है तो उन्हें भी अपनी जाति बताना पड़ेगा. राजनीतिक रूप से वह अपने को जनेऊ धारी साबित करते रहे हैं. राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने पत्रकार वार्ता में अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया था.

    राहुल गांधी अगर अपने को ब्राह्मण स्थापित करना चाहते हैं तो सबसे पहले उन्हें यह समझना पड़ेगा कि, मनुस्मृति में इस समाज को पुरोहित शक्ति से नवाजा गया है. सत्ता की शक्ति इस वर्ग को नहीं दी गई है. खड़गे जो राजनीति कर रहे हैं वह राहुल गांधी को पुरोहित शक्ति देने की नहीं है बल्कि उनका इरादा अपर और लोअर कास्ट की इस सियासत से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ना भर है.

    राहुल गांधी स्वयं कई बार यह कह चुके हैं कि, कांग्रेस में बहुत सारे नेता भाजपा के स्लीपर सेल के रूप में काम कर रहे हैं. अपर और लोअर कास्ट का विचार स्लीपर सेल का ही विचार दिखाई पड़ रहा है. जो बीजेपी कभी ब्राह्मण बनियों जैसे अपर कास्ट की पार्टी मानी जाती थी, उसने अपना विस्तार अपर कास्ट के अलावा ओबीसी और एससी एसटी में करने में सफलता पाई है.

   भाजपा अपने आप को अब ओबीसी की पार्टी के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है. पीएम नरेंद्र मोदी को ओबीसी समाज का बताने में पार्टी कोई कमी नहीं रखती. वर्तमान परिस्थितियों में ओबीसी समाज का बीजेपी को जबरदस्त समर्थन मिला हुआ है.

   ओबीसी की राजनीति में कांग्रेस पिछड़ गयी है. राहुल गांधी ने भागीदारी न्याय सम्मेलन में न केवल इस बात को स्वीकार किया है बल्कि इसके लिए माफी भी मांगी. जाति जनगणना की राजनीति को आगे बढ़ाने में राहुल अपनी भूमिका निभा पाते इसके पहले ही उन्हें अपर कास्ट का नेता बताया जाने लगा. यह भी कोई छोटे-मोटे नेता ने नहीं बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह बात कही है.

    कांग्रेस नेता उदित राज राहुल गांधी की ओबीसी समर्पित राजनीति से इतना प्रभावित हुए. उन्होंने कह दिया राहुल, ओबीसी के लिए दूसरे अंबेडकर साबित होंगे. जब अमित शाह ने संसद में कहा था कि, अंबेडकर का जितना विपक्षी नाम लेते हैं, उतना भगवान का लेते तो ज्यादा अच्छा होता. तब तो विपक्षियों ने आसमान सर पर उठा लिया था. इसे बाबासाहेब अंबेडकर का अपमान बताया था. अब तो ओबीसी का अंबेडकर राहुल गांधी को बताया जा रहा है.

    इसे राहुल गांधी का सम्मान माना जाएगा या बाबासाहेब अंबेडकर का अपमान? निश्चित रूप से दलित और आदिवासी समाज के लिए बाबा साहब अंबेडकर द्वारा किए गए ऐतिहासिक संघर्ष को राहुल गांधी द्वारा ओबीसी समाज के लिए की जाने वाली राजनीति से जोड़ना उनका अपमान ही कहा जाएगा.

    भागीदारी न्याय सम्मेलन में एक और मुद्दा कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रमुखता से उठाया. उन्होंने कहा पीएम मोदी पिछड़ी जाति के नहीं है, वह तो अगड़े समाज से आते हैं. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी जाति को ओबीसी लिस्ट में शामिल कर लिया. आजादी के समय कोई ओबीसी लिस्ट नहीं थी. एससी एसटी तो संविधान में परिभाषित थे लेकिन ओबीसी जातियां समय-समय पर उसमें शामिल होती गई.

    ओबीसी की राजनीति मंडल कमीशन से तेज हुई. आज ओबीसी में जितनी भी जातियां हैं वह सब समय-समय पर ही शामिल हुई हैं. कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी जाति परम्परागत रूप से लिस्ट में शामिल थी. जब देश में संवैधानिक रूप से कोई लिस्ट ही नहीं थी. ऐसे तो फिर सारी जातियां बाद में ही ओबीसी लिस्ट में शामिल हुई हैं. यह प्रक्रिया सतत जारी है. ओबीसी आयोग इस पर विचार करता है. फिर सरकारें ओबीसी लिस्ट में शामिल करने का निर्णय करती है.

    कांग्रेस मोदी जाति को ओबीसी लिस्ट में मानने को तैयार नहीं है लेकिन उसे मुस्लिम समाज की विभिन्न जातियों को ओबीसी लिस्ट में डालकर आरक्षण की सुविधा देने में कोई आपत्ति नहीं है. कर्नाटक में तो कांग्रेस ने इसी लाइन पर चलते हुए मुसलमानों का तुष्टिकरण किया है. ओबीसी लिस्ट का सबसे बड़ा मुद्दा यही बन रहा है कि,  वोट बैंक की राजनीति करने वाले ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम बिरादरियों को इसमें जोड़ना चाहते हैं. बंगाल में तो ममता बनर्जी ने मुस्लिम समाज की अधिक जातियों को जोड़ दिया था, जिसको उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया. अब बंगाल सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला ले गई है.

    कांग्रेस और राहुल गांधी ओबीसी राजनीति करना चाहते हैं लेकिन उनकी यह राजनीति इसमें मुस्लिम जातियों को शामिल करने के कारण असफल हो सकती है. भाजपा जहां हिंदू समाज के ओबीसी वर्ग को अपने साथ जोड़ना चाहती है, वही कांग्रेस और विपक्षी दल ओबीसी हिंदुओं के साथ मुस्लिम समाज की ओबीसी जातियों को भी शामिल करना चाहते हैं. कांग्रेस की यही गलती भविष्य में भारी पड़ सकती है. 

    पहले भी राहुल गांधी ने जाति जनगणना को खूब उछाला था लेकिन कांग्रेस को चुनावी सफलता नहीं मिली. अब तो स्वयं राहुल गांधी अपर कास्ट में शामिल हो गए हैं. सामाजिक रूप से देखा जाए तो अपर कास्ट को ही जातिगत भेद भाव के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

    लोअर कास्ट, अपर कास्ट को अपना फूल नहीं बल्कि काँटा मानती है. अपर कास्ट के राहुल गांधी लोअर कास्ट के फूल बनने की कोशिश कर रहे हैं जो उनकी राजनीतिक भूल साबित होगी.

     कांग्रेस ने सब कुछ आजमा लिया है. अब ओबीसी भागीदारी न्याय भी कांग्रेस के हाथों में अन्याय जैसा ही दिखाई पड़ रहा है. राहुल गांधी के बदलते मुद्दे, कांग्रेस के इतिहास को भुला नहीं सकते हैं. जाति की ‘राहुल-स्मृति’ से ‘ओबीसी पॉलिटिक्स’ में कांग्रेस का प्रभाव बिहार चुनाव में ही दिख जाएगा.