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आपकी आस्था और ये सवाल?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 31 Jul

सार

आपके मन में किसी भी आराध्य-देव के प्रति आस्था है, लिहाजा आप दर्शन करने मंदिरों और तीर्थ-स्थलों तक जाते हैं। जिज्ञासा और सवाल ये हैं कि ऐसी तीर्थ-यात्रा, आराध्य-देव के दर्शन ‘मौत’ में तबदील क्यों हो जाते हैं? भगदड़ के हादसे क्यों होते हैं? आराध्य-देव के मंदिर इतने दुर्गम, दुर्लभ और ऊबड़-खाबड़, संकरे रास्तों के पार ही क्यों स्थित हैं? क्या ईश्वर अपने भक्तों, श्रद्धालुओं की निरंतर परीक्षा लेते रहते हैं? क्या ये मौतें भी इनसान की नियति ही हैं?

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विस्तार

एक सवाल मंदिर क्यों जाते हैं? क्षमा करें, आपकी आस्था का अपमान नहीं कर रहे हैं और न ही उसे क्षुद्र मान रहे हैं। आपके मन में किसी भी आराध्य-देव के प्रति आस्था है, लिहाजा आप दर्शन करने मंदिरों और तीर्थ-स्थलों तक जाते हैं। जिज्ञासा और सवाल ये हैं कि ऐसी तीर्थ-यात्रा, आराध्य-देव के दर्शन ‘मौत’ में तबदील क्यों हो जाते हैं? भगदड़ के हादसे क्यों होते हैं? आराध्य-देव के मंदिर इतने दुर्गम, दुर्लभ और ऊबड़-खाबड़, संकरे रास्तों के पार ही क्यों स्थित हैं? क्या ईश्वर अपने भक्तों, श्रद्धालुओं की निरंतर परीक्षा लेते रहते हैं? क्या ये मौतें भी इनसान की नियति ही हैं? 

ये सवाल आपकी आस्था को खंडित करने वाले नहीं हैं। हरिद्वार के माता मनसा देवी के मंदिर में भगदड़ मची, जिसमें 8 मासूम, बेगुनाह प्राणियों की मौत हो गई और 30-40 लोग घायल बताए गए हैं। मौत का आंकड़ा बढ़ भी सकता है, क्योंकि 5 घायल ‘गंभीर’ बताए गए हैं। एक संकरे रास्ते में 200-300 लोगों की भीड़ आपस में ऐसे चिपक गई थी कि सांस लेना दूभर था। ऐसे में ही भगदड़ मची और मौतें हुईं। दरअसल जहां भीड़ अनियंत्रित हो जाती है अथवा भीड़-नियंत्रण का प्रशिक्षण पुलिस और प्रशासन को प्राप्त नहीं है, उन स्थलों पर भगदड़ के हादसे अपरिहार्य हैं। वह महाराष्ट्र का मांडहर देवी मंदिर (300 मौतें), राजस्थान का चामुंडा देवी मंदिर (224 मौतें), केरल का सबरीमाला मंदिर (106 मौतें), मप्र का रतनगढ़ माता मंदिर (115 मौतें), झारखंड का बैद्यनाथ धाम (11 मौतें), जम्मू का माता वैष्णो देवी मंदिर (12 मौतें), बिहार का बाबा सिद्धनाथ मंदिर (7 मौतें), प्रयागराज महाकुंभ (30 मौतें) और तिरुपति मंदिर, कामाख्या मंदिर, वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर आदि की लंबी सूची है।

मंदिरों में असंख्य लोग अपनी-अपनी आस्था के मद्देनजर जाते हैं, लेकिन अव्यवस्था, अनियंत्रित भीड़, लापरवाह और संवेदनहीन पुलिस के कारण भीड़ में कुचले जाते हैं और जिंदगी पर पूर्णविराम लग जाता है। इन मंदिरों के परिसरों में आराध्य-देव का दैवीय चमत्कार क्यों नहीं होता, ताकि भक्त, श्रद्धालु कमोबेश भगदड़ में फंस कर न मरें। हाथरस में 2 जुलाई, 2024 को नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ को भूल नहीं सकते, जिसमें 121 लोग मारे गए थे। उनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। क्या बाबा को दंड मिला? हम यही सवाल अन्य भगदड़ों के संदर्भ में कर रहे हैं कि हर हादसे के बाद न्यायिक जांच की घोषणा तो की जाती है, लेकिन कितनी जांचों की रपट सार्वजनिक की गई? कितने दोषी और जवाबदेह चेहरों को जेल में डाला गया? जिला मजिस्टे्रट और पुलिस अधीक्षक का सिर्फ तबादला किया जा सकता है। उससे अधिक अधिकार सरकार के पास नहीं होते। अफवाह भी एक अपराध है, जो हादसों को जन्म देती है। मनसा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। किंवदंती है कि यहां माता सती का मस्तिष्क गिरा था। माता सती को मां पार्वती का पूर्व जन्म माना जाता है, लिहाजा इस मंदिर की मान्यता बहुत है। दरअसल सवाल व्यवस्था का है। मंदिर का ट्रस्ट मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा दे सकता है, लेकिन संकरे रास्ते को कॉरिडोर में तबदील नहीं होने देगा। 

श्रद्धालु अपनी देखभाल खुद करना सीखें। बच्चों को ऐसे भीड़भाड़ वाले स्थलों पर न लाएं। यह भक्ति का मामला है, न कि आप पर्यटन पर जा रहे हैं। यदि एक संकरे रास्ते पर कई गुना भीड़ देख रहे हैं, तो प्रतीक्षा करें। अवकाश के दिन दर्शन करने मत जाएं। आराध्य-देव के लिए सभी दिन शुभ और समान हैं। जब भीड़ कम हो, तो मंदिर के रास्ते पर कदम बढ़ाएं। यह आस्था और श्रद्धा का भी मामला है। आराध्य-देव घर बैठे भी आपकी आस्था को स्वीकार कर सकते हैं। श्रद्धालु खुद भीड़ का नियंत्रण करना सीख लें।