राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर दोनों ने अपने-अपने मोर्चे खोले, मुस्लिम पक्ष के तेवर काफी उग्र हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष महमूद मदनी ने कहा है कि सरकार वक्फ बिल के जरिए संविधान पर बुलडोजर चलाना चाहती है..!!
वक्फ बिल के मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और हिंदू संगठन एक-दूसरे के खिलाफ आंदोलित हैं। राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर दोनों ने अपने-अपने मोर्चे खोले। मुस्लिम पक्ष के तेवर काफी उग्र हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष महमूद मदनी ने कहा है कि सरकार वक्फ बिल के जरिए संविधान पर बुलडोजर चलाना चाहती है।
मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा है कि यह सांप का बिल है, जिसमें जहर भरा है। सांसद ओवैसी अपने तल्ख संबोधनों में मुसलमानों को डराते और भडक़ाते रहे हैं कि यदि वक्फ बिल संसद में पारित हो गया, तो हुकूमत हमारी मस्जिदें छीन लेगी, दरगाहें तोड़ देगी और कब्रिस्तान पर भी कब्जा कर लेगी। अजीब आंदोलन है यह! यही नहीं, ‘शाहीन बाग’ सरीखे नए आंदोलन तक की धमकी दी जा रही है।
वक्फ संशोधन बिल ईद के बाद, बजट सत्र के अंतिम भाग में, संसद में पेश किया जाना प्रस्तावित है। लोकसभा स्पीकर ने, सरकार का आग्रह मानते हुए, जिस संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया था, उसकी भारी-भरकम रपट लोकसभा में रखी जा चुकी है। जेपीसी के 31 सांसद-सदस्यों में विपक्ष के भी पर्याप्त सांसद थे, लिहाजा ये दलीलें बेमानी हैं कि उनके पक्ष और संशोधन अनसुने रखे गए हैं।
संसद के भीतर भी तमाम संशोधन बहुमत या ध्वनि मत के आधार पर ही पारित किए जाते हैं। यदि जेपीसी में भी यही प्रणाली इस्तेमाल की गई है, तो विपक्ष की आपत्तियां चीखा-चिल्ली के अलावा कुछ और नहीं हैं। कार्यपालिका और विधायिका को सदन में किसी भी मुद्दे या कानून में संशोधन करने के संवैधानिक विशेषाधिकार हैं। सदन में मुस्लिम और उनके समर्थक दलों-सपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस आदि-के सांसद भी हैं। वे संसदीय बहस में शिरकत करें।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुठ्ठि भर नेता प्रस्तावित बिल को ‘अल्लाह’ और ‘इस्लाम’ के खिलाफ करार क्यों दे रहे हैं? वक्फ बोर्ड की जमीनें और संपत्तियां अल्लाह के नाम पर अर्जित की गई होंगी, लेकिन उनमें गहरे विवाद हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय को 2023 में 148 शिकायतें मिली थीं, जिनमें अधिकतर मुसलमानों की ही थीं। आज भी 40,951 मामले ट्रिब्यूनल या अदालतों में लंबित हैं, लिहाजा संशोधन क्यों न किया जाए? हम तो देश में वक्फ बोर्ड सरीखे मजहबी संगठनों के अस्तित्व के ही खिलाफ हैं। देश में सरकार और प्रशासन के लोकतांत्रिक ढांचे को जनादेश प्राप्त है। वक्फ कानून में संशोधन होते रहे हैं, लेकिन इसकी निरंकुशता पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। देश में 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन वक्फ बोर्ड के अधीन है, जो रेलवे और सेना के बाद सर्वाधिक है। करीब 8.7 लाख संपत्तियों की सालाना आमदनी मात्र 200 करोड़ रुपए बताई जाती रही है, जबकि सच्चर कमेटी की रपट के मुताबिक, यह आमदनी 12,000 करोड़ रुपए से अधिक होनी चाहिए। सवाल है कि इसमें भारी घोटाला है अथवा भू-माफिया की एक जमात हकीकत को छिपाए रखना चाहती है? विडंबना यह है कि 1.26 लाख करोड़ रुपए, 2023-24 के आकलन के मुताबिक, की संपत्तियों वाले वक्फ के मुस्लिम समाज में आज भी करीब 32 प्रतिशत अनपढ़ और 30 प्रतिशत गरीब मुसलमान हैं। वक्फ बोर्ड ऐसे मुसलमानों की मदद क्यों नहीं करते? जब आंदोलन की नौबत आ गई है, तो रमजान के महीने में भी रोजेदार मुसलमानों को सडक़ों पर उतरने के आह्वान किए जा रहे हैं। दरअसल वक्फ बोर्ड संविधान के अनुच्छेदों 25 और 26 की अवहेलना करता है। संशोधन की जरूरत इसलिए है, ताकि एक निश्चित व्यवस्था के तहत वक्फ के बेहतर ऑडिट किए जा सकें।