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राष्ट्रवाद पर राजनीति का बज्रपात

सार

पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच डिप्लोमेटिक और साइकोलॉजिकल वॉर शुरु हो गई है. भारत के संभावित मिलिट्री एक्शन से पाकिस्तान में खौफ है. पाकिस्तान से बदले के लिए भारत में हिंदू-मुस्लिम सबका सरकार को साथ मिला हुआ है..!! 

janmat

विस्तार

    मस्जिदों में नमाज के बाद आतंकी हमले और पाकिस्तान की निंदा के दृश्य भारत में शायद पहले कभी नहीं देखे गए थे. मिलिट्री एक्शन जल्दी से जल्दी होना चाहिए. इस पर देश की भावनाएं एक हैं. सर्वदलीय बैठक में तो सभी राजनीतिक दल पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन पर सरकार का साथ देने का वादा करते हैं, लेकिन राजनीतिक चालें वोट बैंक की नजर से ही चली जा रही हैं. कांग्रेस ने अपने ऑफिशियल एक्स अकाउंट पर इंसान एक फोटो पोस्ट किया है, जिसमें सिर कटा हुआ दिखाया गया है. कैप्शन में लिखा गया है, जिम्मेदारी के समय गायब. फोटो में जो वेशभूषा है, वह पीएम नरेंद्र मोदी से बिलकुल मिलती-जुलती दिखाई पड़ रही है.

    यह कोई पहला अवसर नहीं है, जब कांग्रेस ने आतंकवादी हमले पर डबल स्टैंडर्ड दिखाया हो. पुलवामा और उरी अटैक के बाद जब सेना ने पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की थी, तब भी सवाल उठाए गए थे. राजनीति का कोई नया चेहरा ऐसी बातें करे तो समझ आता है,  लेकिन कांग्रेस जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी है, जिसका आतंकवाद से लड़ने का लंबा इतिहास है, जिसने आतंकवाद के नाम पर अपने दो नेताओं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को खोया है. 

    जिसका इतिहास सरकार चलाने का ही रहा है, मिलट्री एक्शन के पहले तैयारी की बारीकियों को जो पार्टी समझती है, वह केवल राजनीतिक स्कोर के लिए पोस्टर वार के बहाने पीएम और सरकार को घेरने की राजनीति करे, यह बात देश पसंद नहीं कर सकता. राष्ट्र के लिए आतंकी हमला इतना बड़ा भावनात्मक मुद्दा है, कि इस पर चुप रहना ही कांग्रेस के हित साध सकता था. ऐसा कोई भी इशारा जो पाक के नापाक इरादों को ठंडक दे सकता है, उससे हर राजनीतिक दल को बचना चाहिए. 

    राजनीतिक दलों को सबसे पहले मिलिट्री एक्शन के संबंध में निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए. एक भी एक्शन में अगर कोई चूक हुई तो फिर यही राजनीतिक दल सरकार को घेरने में नहीं चूकेंगे. इसीलिए तैयारी पक्की होना चाहिए. जहां तक इरादे का सवाल है, वह तो पीएम नरेंद्र मोदी बहुत ताकतवर ढंग से दुनिया के सामने रख चुके हैं. 

    अभी तक भारत की ओर से किसी ने भी अधिकृत रूप से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जैसे एक्शन का ऐलान नहीं किया है. साइकोलॉजिकल वार में ही पाकिस्तान अगर एक्सपोज़ हो रहा है, तो उसके लिए भारत की मीडिया की भूमिका सराहनीय कही जाएगी. मीडिया ने भारत की ताकत का जहां पुरजोर ढंग से प्रस्तुतीकरण किया है, वहीं पाकिस्तान के पत्रकारों और उनके पॉलिटिकल लोगों के घबराहट भरे बयानों को दिखाया जा रहा है. जब पाकिस्तान के जिम्मेदार लोग बोलते हुए दिख रहे हैं, सेनाओं को बॉर्डर पर तैनात कर रहे हैं, सीजफायर का उल्लंघन कर रहे हैं, एटम बम की धमकी दे रहे हैं, तो यह उनकी घबराहट ही है, जबकि अभी तक भारत की ओर से युद्ध के बारे में अधिकृत रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है.

    पीएम मोदी और सरकार को लेकर राजनीतिक दलों और जनता का नजरिया अलग-अलग है. कांग्रेस भले ही मोदी को कमजोर साबित करने की कोशिश कर रही हो, लेकिन देश के लोग न केवल जानते हैं, बल्कि मानते हैं कि मोदी कट्टर देशभक्त हैं. देश यह भी मानता है, कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान से बदला लेगा. इसमें कोई दो राय नहीं है. देश को प्रधानमंत्री पर भरोसा है. सेना का भरोसा है. मिलिट्री एक्शन के वक्त सेना ही तय करेगी. इसके लिए राजनीतिक दबाव देश हित में नहीं होगा. 

    अगर कांग्रेस ने मिलिट्री एक्शन में देरी पर पोस्टर वार शुरू किया है तो यह कांग्रेस के लिए महंगा सौदा साबित होगा. कांग्रेस ने पोस्टर वार करके राजनीति की है, तो फिर जवाब में बीजेपी भी पीछे नहीं रहेगी. बीजेपी कांग्रेस को लश्कर-ए-पाकिस्तान तक कह रही है. कांग्रेस का सिग्नल पाकिस्तान से कनेक्ट बता रही है. कांग्रेस और बीजेपी की विचारधारा भले ही मेल नहीं खाती हैं,  लेकिन कांग्रेस का आचरण गलतियों भरा तो हो सकता है, लेकिन राष्ट्र विरोधी तो कभी भी नहीं रहा. कांग्रेस की सरकारों ने गलतियां नहीं की होतीं तो शायद आज हालात थोड़े अलग होते.

    सिंधु जल समझौते को निलंबित करने का भारत सरकार का निर्णय, पाकिस्तान में संकट बढ़ा रहा है. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री इस निर्णय का समर्थन करते हुए कहते हैं यह संधि एकतरफा थी. कश्मीर ने कभी भी इसका समर्थन नहीं किया. जब यह संधि एकतरफा थी तो फिर जवाहरलाल नेहरू ने ऐसी संधि क्यों की थी. ऐसे ही शिमला समझौता करके अगर इंदिरा गांधी ने रणनीतिक गलती नहीं की होती तो पीओके आज भारत का हिस्सा होता. 

    जब भी कोई सरकार या नेता कोई निर्णय करता है, तो वह निर्णय वक्त की कसौटी पर परखा जाता है. भले ही उसके परिणाम देश हित में नहीं निकलें,  लेकिन इसके लिए निर्णय लेने वाले को दोषी नहीं ठहराया जाता. क्योंकि निर्णय जिन हालात और परिस्थितियों में लिए गए थे, उसको लेकर देश के प्रधानमंत्री की इंटीग्रिटी पर सवाल नहीं हो सकता. जब कभी किसी ने किसी भी प्रधानमंत्री के फैसले और उनकी इंटीग्रिटी पर सवाल नहीं किया तो फिर कांग्रेस को पीएम और भारत सरकार पर विश्वास करना चाहिए. उनके फैसलों का इंतजार करना चाहिए. अगर उनके कोई रचनात्मक सुझाव है, तो वह जरूर दिए जाना चाहिए.

    कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. दोनों नेता चाहते हैं, कि लोकसभा और राज्यसभा में पहलगाम हमले पर चर्चा की जाए. चर्चा में कोई बुराई नहीं है. संसद में चर्चा हो सकती है, लेकिन अभी उचित समय नहीं है. पहले हमें देश के दुश्मनों से बदला लेने की जरूरत है. इस पर बिना शर्त सरकार का समर्थन करने का समय है. अभी इस पर विभाजन और सवाल भारत के इरादों को कमजोर कर सकता है. भारत में राष्ट्र के मामलों पर भी राजनीतिक विचारों पर विभाजन की कोई भी दृष्टि और दृश्य दुश्मन पाकिस्तान को खुशी का मौका दे सकते हैं.

    राजनीतिक दल वोट बैंक के चकवा हैं. लेकिन इस चकवा को जब वैचारिक लकवा लग जाता है, तो फिर पूरी जड़ें सड़ जाती हैं. जड़ें रहेंगी तो पत्ते फिर आ जाएंगे.पत्ते जब अपने को जड़ों का मालिक समझने लगें तो फिर तो उलटी गंगा बहने लगती है.

    राष्ट्रवाद पर राजनीति के वैचारिक मतभेद का बज्रपात देश पर आधात होगा. इससे सबको बचना ही देश हित और स्वहित होगा.