कांग्रेस द्वारा मांडू में विधायकों का नव संकल्प शिविर राजनीतिक यौवन और वोटो की पुरानी चोरी की नेगेटिव एनर्जी में बदल गया. राहुल गांधी ने अपने वर्चुअल भाषण में एमपी में भी वोट चोरी की थ्योरी दी..!!
अब तक महाराष्ट्र में वोट चोरी की थ्योरी उनके मन से निकल रही थी. अब मध्य प्रदेश को भी उसमें जोड़ दिया है. उनकी नजर में उनके खिलाफ गया कोई भी जनादेश चोरी ही होगी. अब अगर पिछले चुनाव की ही बात कर ली जाए जिसमें बीजेपी को राज्य में दो तिहाई बहुमत मिला है, तो उसे भी राहुल गांधी चोरी कह रहे हैं.
कांग्रेस अपनी चोरी भूल जाती है. राहुल गांधी को तो सबसे पहले यह बताना चाहिए कि मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आला कमान ने विधानसभा के टिकट घोषित करने के बाद कितने प्रत्याशियों के टिकट बदले हैं. टिकटों के बदलाव के पीछे कहीं चोरी की मानसिकता तो काम नहीं कर रही थी. जनादेश को चोरी कहना असंतुलित राजनीतिक व्यक्तित्व का संकेत करता है.
बाजार में दुकानों पर पहले लिखा होता था, ग्राहक भगवान होता है. अब लिखा मिलता है, आप सीसीटीवी की नजर में हैं. नजर में होना मतलब चोरी पकड़ में आ जाएगी. एक तरफ सीसीटीवी चोरी पकड़ने का काम कर रही है. तो दूसरी तरफ राहुल गांधी की नजर जनादेश की चोरी पकड़ रही है. चोरी की नजर ही चोरी पकड़ सकती है.
जो नेता परिवार की विरासत के चलते बिना वाजिव संघर्ष और मेहनत के सीढ़ियां चढ़ जाते हैं, वह तो वैसे ही लोकतंत्र की चोरी कर रहे हैं. लोकतंत्र की चोरी की दृष्टि ही जनादेश को चोरी की नजर से देखेगी और यही असंवैधानिक बात राहुल गांधी लगातार कर रहे हैं. दुर्भाग्य इस लोकतंत्र का है, कि उनकी असंवैधानिक बातों को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है. या तो उनकी बातों को महत्वहीन समझा जाता है, या कितनी बार लोग अदालत में जाएं.
अगर उनकी हर बात की असंवैधानिकता को साबित करने का प्रयास किया जाएगा, तो फिर तो पूरे साल 365 दिन उनके खिलाफ़ अदालत में ही लड़ना पड़ेगा. जनादेश तो वैसे उन्हें लगातार झटके पे झटके दे रहा है. फिर भी उनकी अपरिपक्वता और नासमझी खत्म नहीं हो रही है.
राहुल गांधी ऐसे मुद्दों को उठाते हैं जिनकी वैधानिकता और संवैधानिकता प्रमाणित नहीं हो सकती. ऐसे मुद्दे वह लगातार उठा रहे हैं. भ्रम फैलाने की कोशिश करते हैं. कांग्रेस के नव संकल्प शिविर में राहुल गांधी ने जो भी बातें की हैं, उसमें वही जात-पांत की बातें, वोट चोरी के आरोप मीडिया में सुर्खियां बने हैं.
जातिगत जनगणना का ऑफीशियल ऐलान हो चुका है. अब उन्होंने नई लाइन पकड़ ली, कि केंद्र सरकार उनके मॉडल पर जातिजनगणना नहीं कराएगी. राहुल गांधी का राजनीतिक अप्रोच हो सकता है, कभी सफल भी हो, लेकिन उनकी नकारात्मकता से देश कभी सफल नहीं होगा.
कांग्रेस विधायकों के लिए नव संकल्प शिविर एक अच्छा प्रयास है. विधायकों को नई-नई चीजें सिखाई जाना चाहिए, इससे उनका दृष्टिकोण बढ़ता है. विशेषज्ञों की राय से उनकी समझ बढ़ती है. पार्टी द्वारा इतना खर्चा करके यह शिविर आयोजित किया गया है और इसके पहले दिनके निष्कर्ष की जो खबरें मीडिया में आई हैं, उनमें मुख्य रूप से दो ही बातें हैं. एक तो राहुल गांधी की वोट चोरी के आरोप और दूसरी कमलनाथ के राजनीतिक यौवन की.
कमलनाथ स्वयं विधायक हैं. उन्हें मांडू में नव संकल्प शिविर में उपस्थित होना चाहिए था. सीखने की उम्र नहीं होती. कमलनाथ शिविर में तो पहुंचे नहीं वर्चुअल जुड़ते हैं. वह भी कुछ सुनने, जानने और समझने के लिए नहीं, बल्कि विधायकों को यह जानकारी देने के लिए, कि अभी उनका राजनीतिक यौवन जवानी पर खड़ा है. कमलनाथ ने विधायकों से कहा, “मैं ना थका हूं, ना पका हूं अभी भी जवान हूं”.
राहुल गांधी भोपाल के नव सृजन कार्यक्रम में बारात रेस और लंगड़े घोड़े की तुलना में कमलनाथ को निशाने पर ले चुके हैं. इसके पहले भी एक बार राहुल गांधी सार्वजनिक सभा में कमलनाथ की उम्र पूछ चुके हैं. कमलनाथ धनपति हैं, इसलिए उनके राजनीतिक यौवन के किस्से कांग्रेस में सुने जाते रहेंगे. कांग्रेस में उसी की चलती है जो धन प्रबंधन में माहिर होता है.
कमलनाथ को पीसीसी प्रेसिडेंट और सीएम का पद भी उनकी इसी क्षमता का परिणाम था. उनका जवानी का जोश यही बता रहा है, कि अभी भी उनके मन में मध्य प्रदेश में सरकार में आने की ललक है. पिछले चुनाव में तो कमलनाथ के प्रचार अभियान में भावी और अवश्यम भावी सीएम के नारे लगाए जा रहे थे. अधेड़ उम्र में जब राहुल गांधी देश के युवा नेता कहलाते हैं, तो कमलनाथ बुढ़ापे में राजनीतिक जवानी की बातें तो कर ही सकते हैं.
तीसरा संदेश जो इस शिविर को लेकर मीडिया में आया वह यह है, कि दिग्विजय सिंह इसमें नहीं पहुंचे. कांग्रेस में ओल्ड और नए नेतृत्व के बीच विवाद छिपा हुआ नहीं है. जिन हाथों में मांडू के शिविर की कमान बताई जाती है, उनके और दिग्विजय सिंह के बीच मतभेद सार्वजनिक रहा हैं. दिग्विजय पहुंचते तो कोई नया विवाद खड़ा हो जाता.
कांग्रेस में नवसृजन की बातें हो रही हैं. नव संकल्प शिविर लगाए जा रहे हैं, लेकिन यह सब कुछ सफल हो पाएगा ऐसा लगता नहीं है. इसका कारण यह है, कि बातों और आचरण का तालमेल नेताओं में नहीं दिखता. नर्सिंग घोटाले में सार्वजनिक रूप से पत्रकार वार्ता करके खुलासे का ऐलान किया जाता है और अचानक चुप्पी साध ली जाती है. यह स्टाइल नई नहीं है. राजनीतिक कमाई का यह जरिया बहुत पुराना है.
राजनीति में इसका उपयोग होता रहा है. प्रशिक्षण देने और लेने वाले सब जानते हैं, पार्टी में किस स्तर पर कैसा चल रहा है, लेकिन फिर भी बोलने को कोई तैयार नहीं है. चुनाव जीतना केरेक्टर सर्टिफिकेट नहीं हो सकता है. अब ऐसा दौर आ गया है, कि पब्लिक से कुछ भी छुपाना असंभव हो गया है.
वोट चोरी थ्योरी मतदाता को कमजोर बताती है. उसके फैसले को शक की नजर से देखती है. जो मतदाता लोकतंत्र का भगवान है, इसे राहुल सीसीटीवी चोरी की नजर से देख रहे हैं. ऐसी नेगेटिव एनर्जी, पॉजिटिव प्रयासों को भी निष्प्रभावी कर देती है.