मप्र बीजेपी के नए नवेले अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल पद पर आने के बाद ऐसी ज्ञान भरी बातें कर रहे हैं, जो सिद्धांतः सत्य है. लेकिन सुविधा भोगी सियासत का यही असत्य है..!!
पद का ज्ञान सामयिक होता है. अतीत और भविष्य में ऐसे ज्ञान की प्रमाणिकता, परिस्थितियों पर निर्भर करती है. बीजेपी अध्यक्ष ने युवा मोर्चे के प्रदेश पदाधिकारी और जिला अध्यक्षों को संबोधित करते हुए ऐसी बात कही, जो राजनीति में व्यक्तिगत प्रचार पर सवाल खड़े करती है.
उन्होंने कहा ‘होर्डिंग पर बड़ा फोटो लगाने से भाजपा में पद नहीं मिलता, सिर्फ पब्लिसिटी को राजनीति समझने वाले जान लें कि इससे भविष्य नहीं बनेगा. जिसने सिर्फ खुद की चिंता की, वह कहीं नहीं पहुंचा. यहां पार्टी की चिंता करने वाला ही ऊंचाई पर पहुंचा है.’
बीजेपी अध्यक्ष की यह सारी बातें सिद्धांत रूप में बिल्कुल सही हैं, लेकिन वास्तविकता में इस ज्ञान पर चलने वाला ही राजनीति में पिछड़ जाता है.
होर्डिंग में फोटो मतलब खुद का प्रचार. अगर कोई ऐसा करता है तो उसे पद नहीं मिलेगा. लेकिन जिसे पद मिल गया है उसकी होर्डिंग पर बड़ी-बड़ी फोटो में कोई एतराज नहीं है. जब पद मिलने पर पार्टी को कोई एतराज नहीं है, तो पद पाने के लिए कोई ऐसा कर रहा है, तो इस पर एतराज कैसे हो सकता है.
युवा राजनीति में जब आगे आता है तो उसका आदर्श पदों पर बैठे लोग ही होते हैं. जब वह देखता है कि राज्य में जहां भी होर्डिंग दिखेंगे उसमें उनकी पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं के बड़े-बड़े फोटो चस्पा हैं तो फिर वह तो यही समझेगा की होर्डिंग पर फोटो राजनीति की जरूरत है.
पद पाने वालों के लिए अगर होर्डिंग पर फोटो गलत है, तो पदासीन लोगों के लिए भी इसकी मर्यादा तय होनी चाहिए. तभी ऐसी बातों का युवाओं पर कोई प्रभाव पड़ सकता है. पदधारी नेता यही चाहते हैं कि, राज्य में जब भी उनके कहीं दौरे हो तो चारों तरफ उनके होर्डिंग लगे. होर्डिंग पर फोटो के विवाद की शुरुआत यहीं से होती है.
अपने बड़े नेताओं के स्वागत सत्कार और यात्राओं में जब यह होता है, जो होर्डिंग लगाता है वह बड़े नेता के साथ अपनी फोटो भी चस्पा करता है. इसी में कॉम्पीटीशन होता है. बीजेपी में कम होता होगा लेकिन कांग्रेस में तो होर्डिंग पर फोटो पद पाने का आसान तरीका है.
राजनीति के लोग पब्लिसिटी से दूर हो जाएंगे. होर्डिंग और विज्ञापनों में अपनी फोटो देखने से परहेज करने लगेंगे तो सरकारों का काफी जनधन बच सकता है. सरकारी धन से प्रचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट को बीच में आना पड़ा फिर भी बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. हर राज्य सरकार राजनीतिक नजरिए से दूसरे-दूसरे राज्यों में अपने प्रचार पर सरकारी धन खर्च करती हैं.
बाजार के प्रोडक्ट से ज्यादा राजनीति के प्रोडक्ट का प्रचार होर्डिंग में होता है. होर्डिंग का व्यवसाय आज अगर लाभकारी है, तो उसका कारण बाजार से ज्यादा राजनीति ही कही जाएगी.
हेमंत खंडेलवाल ने अपने अध्यक्ष पद पर चयन का उल्लेख करते हुए कहा कि, जब उनका नाम चलने लगा तब उन्होंने भोपाल आना छोड़ दिया. सबसे पहला सवाल कि उनका नाम चल रहा था, यह उनकी जानकारी में था. इसका मतलब है कि, वह वैसी ही राजनीति कर रहे हैं, जैसी कोई भी युवा पार्टी में अपने लिए करता है. उनका चयन उनके भोपाल आने या नहीं आने से तो नहीं हो सकता है. पार्टी में चयन का अपना तरीका होगा.
राजनीति में उनकी सक्रियता और छवि के कारण उनका चयन किया गया होगा. इस पर सार्वजनिक रूप से तो कोई भरोसा नहीं करेगा. उनके चयन के पीछे राज्य सरकार और संगठन में समन्वय की रणनीति को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. इसलिए किसी भी पद पर हर समय मेरिट के आधार पर ही चयन होता है, ऐसा तो हमेशा नहीं माना जा सकता.
राजनीति में डायलॉग देना आजकल बड़े पदों के नेताओं की आदत बन गई है. हर बड़े नेता के आसपास स्पीच राइटर होते हैं. कार्यक्रम को देखते हुए ऐसी पंच लाइन बनाते हैं जो मीडिया कैंची हो.
राज्य का अध्यक्ष बहुत जिम्मेदारी और चुनौती का पद होता है. जब से वह अध्यक्ष बने हैं तब से ही बीजेपी के कितने नेताओं के ऐसे वक्तव्य आए हैं, जो अनुशासन की सीमा में तो नहीं कहे जा सकते हैं. ऐसे बयान किसी सामान्य कार्यकर्ता की ओर से नहीं आए हैं बल्कि मंत्री और सांसद के बयान राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए हैं.
सड़क पर गड्ढों को लेकर पीडब्ल्यूडी मंत्री के बयान कई दिनों तक राष्ट्रीय मीडिया में खबरें चली. सीधी सांसद ने जिस तरह का बयान सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर के वीडियो पर दिया, वह अनुशासन तो नहीं कहा जाएगा. बीजेपी जरूर सिद्धांतः अनुशासन और आचरण की बात करती है. विधायकों और सांसदों को प्रशिक्षण भी देती है लेकिन अब तक जितने भी बड़े विवाद बयानों के कारण उत्पन्न हुए हैं वह किसी सामान्य कार्यकर्ता के कारण नहीं हुए. यह सारे विवाद बड़े नेताओं के अनुशासनहीन वक्तव्य से ही पैदा हुए.
युवा मोर्चा में पद पाने के लिए निश्चित आयु सीमा जरूरी है. इसके लिए फर्जी दस्तावेज बनाकर पद पाने कोशिश कोई नया युवा नहीं कर रहा होगा बल्कि यह सारे प्रयास पार्टी में पहले से काम कर रहे युवा ही होंगे. जो कार्यकर्ता पार्टी में पहले से काम कर रहे हैं अगर उनके द्वारा पद पाने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाए जा रहे हैं, तो फिर अनुशासन और शुद्ध आचरण के सारे सिद्धांत अपने आप धराशाई हो गए.
होर्डिंग पर फोटो सियासी मोटो बन गया है. इसमें सुधार नीचे से नहीं ऊपर से ही आएगा. प्रचार की राजनीति पर नियंत्रण पद आकांक्षियों के लिए जितना जरूरी है, उतना ही पदधारियों के लिए भी आवश्यक है. पद का ज्ञान, आत्म-अज्ञान दूर नहीं कर सकता.पद तो सामयिक होता है. आचरण व्यक्तिगत होता है. इसमें पद के अनुसार बदलाव कोई नई बात नहीं है.
सिद्धांत और सुविधा का टकराव सियासत का स्वभाव है. सियासत का स्वभाव बदलना बड़ी मेहनत, धैर्य और ईमानदारी की मांग करता है. सियासत बहुमत और तुलना पर चलती है.
आज का बहुमत सर्वोच्चता का प्रमाण नहीं है बल्कि तुलना में बेहतर का पैमाना है. बेहतरी के लिए प्रयास अच्छी सियासत के लिए जरूरी है.