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निंदा से आगे अमेरिका कुछ करेगा?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 30 Apr

सार

पूर्व में भी इसी तरह के पाक प्रायोजित हमले के दंश भारत झेलता रहा है, जब कभी भी ऐसे हमले हुए हैं, अमरीका ने सिर्फ घडिय़ाली आंसू ही बहाए हैं, सही मायने में तो अमरीका चाहता ही नहीं है कि पाकिस्तान पर ऐसी आतंकी वारदातों को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करे, यही वजह है कि अन्य देशों की तरह अमरीका भी सिर्फ सहानुभूति जता कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है..!!

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विस्तार

पहलगाम- अमरीका सहित विश्व के तकरीबन सभी देशों ने इस हमले की तीखी निंदा की। सवाल यही है कि क्या अमरीका सिर्फ निंदा तक ही सीमित रहेगा। पूर्व में भी इसी तरह के पाक प्रायोजित हमले के दंश भारत झेलता रहा है। जब कभी भी ऐसे हमले हुए हैं, अमरीका ने सिर्फ घडिय़ाली आंसू ही बहाए हैं। सही मायने में तो अमरीका चाहता ही नहीं है कि पाकिस्तान पर ऐसी आतंकी वारदातों को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करे। यही वजह है कि अन्य देशों की तरह अमरीका भी सिर्फ सहानुभूति जता कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है। अमरीका बेशक इन हमलों के लिए सीधा जिम्मेदार नहीं हो, किंतु पाकिस्तान के साथ उसके सैन्य रिश्ते कहीं न कहीं आतंकवाद को प्रोत्साहित करते नजर आते हैं। यह पहला मौका नहीं है जब किसी अमरीकी विशिष्ट व्यक्ति के भारत दौरे के दौरान आतंकी वारदात हुई है।

20 मार्च 2000 की रात को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के चिट्टीसिंहपोरा गांव में 36 सिख ग्रामीणों का नरसंहार किया था। यह घटना अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की 21-25 मार्च की यात्रा से ठीक पहले हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने क्लिंटन के सामने हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने का मुद्दा उठाया था। उस समय क्लिंटन जयपुर और आगरा के दौरे पर थे, जबकि विदेश मंत्री मैडलिन अलब्राइट और उप विदेश मंत्री स्ट्रोब टैलबोट भारतीय अधिकारियों से बातचीत करने के लिए दिल्ली में ही थे। वर्ष 2002 में जब दक्षिण एशियाई मामलों को लेकर अमरीकी असिस्टेंट सेक्रेटरी क्रिस्टीना बी रोका भारत की यात्रा पर थीं, तब 14 मई 2002 को जम्मू-कश्मीर के कालूचक के पास एक आतंकवादी हमला हुआ।

तीन आतंकवादियों ने मनाली से जम्मू जा रही हिमाचल रोडवेज की बस पर हमला किया और सात लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद आतंकी आर्मी क्वार्टर्स में घुस गए और अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 10 बच्चों, आठ महिलाओं और पांच सैन्य कर्मियों सहित 23 लोग मारे गए। मारे गए बच्चों की उम्र चार से 10 साल के बीच थी और इस हमले में कुल 34 लोग घायल हुए थे। इन आतंकी हमलों से जाहिर है कि पाकपरस्त आतंकियों ने हमला करने के लिए ऐसे वक्त का चुनाव किया जबकि कोई न कोई प्रमुख अमरीकी भारत यात्रा पर आया हो। आश्चर्य की बात यह है कि इन हमलों के बावजूद अमरीका ने कभी पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की। कहने को अमरीका भारत को महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बताता है, किंतु हकीकत में उसका उद्देश्य सिर्फ व्यावसायिक हित साधना भर रहा है। अमरीका के व्यावसायिक हित सर्वोपरि हैं। 

भारत के भारी विरोध के बावजूद अमरीका ने पाकिस्तान को घातक एफ-16 लड़ाकू विमानों की बिक्री की। इतना ही नहीं, इनकी मरम्मत के नाम पर लाखों डालर की मदद भी अमरीका करता रहा है। अमरीका ने भारत के विरोध को नजरअंदाज करते हुए यह सैन्य मदद दी। अमरीका न सिर्फ भारत से दुश्मनी साधे हुए पाकिस्तान की हरसंभव मदद करता रहा है, बल्कि विदेशी धरती से भारत के खिलाफ साजिश करने वाले लोगों और देशों का सहयोग भी करता रहा है। कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में अमरीका ने कनाडा की पैरवी की। कनाडा फाइव आईज का सदस्य है।

फाइव आईज में कनाडा के अहम सहयोगी अमरीका ने पिछले साल निज्जर हत्याकांड में भारतीय एजेंट्स की कथित संलिप्तता के कनाडा के आरोपों पर टिप्पणी की थी। अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था कि हमने साफ कर दिया है कि कनाडा के आरोप बेहद ही गंभीर हैं, जिन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। 

अमरीका की ओर से कहा गया कि वह भारत, चीन, ईरान, अफगानिस्तान से सीमा साझा करने वाले परमाणु सशक्त पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण देश समझता है। अमरीकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि अमरीका पाकिस्तान के साथ कई मुद्दों पर साथ मिलकर काम कर रहा है। इन मुद्दों में ऊर्जा, कारोबार, निवेश, स्वास्थ्य, क्लीन एनर्जी, क्लाइमेट संकट से बचाव, अफगानिस्तान में स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई शामिल है। 

अमरीकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान में विदेशी निवेश का सबसे बड़ा योगदान अमरीका का है। साथ ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात बाजार भी है। भारत से दोस्ती का दंभ भरने वाले अमरीका ने पाकिस्तान को आतंकी पालने पर कभी भी सख्त कार्रवाई नहीं की। इसके विपरीत भारत की तरक्की और परमाणु क्षमता अमरीका को तब तक खटकती रही, जब तक भारत ने दोनों क्षेत्रों में विश्व में अपना लोहा नहीं मनवा दिया। भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर ईरान के साथ समझौता किया है। इससे भारत को ओमान की खाड़ी में स्थित इस रणनीतिक पोर्ट का संचालन अधिकार 10 साल के लिए मिल गया है। लेकिन इस समझौते को अमरीका ने नापंसद कर दिया।

सही मायने में अमरीका भारत को बराबरी का दर्जा देने से गुरेज करता रहा है। अमरीका का प्रयास यही रहा है कि भारत को पाकिस्तान के समकक्ष रखा जाए। भारत ने हर क्षेत्र में अपनी तरक्की से अमरीका के ऐसे प्रयासों को हमेशा झटका दिया है। ऐसे में अमरीका से कभी भी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पहलगाम में हुई आतंकी घटना के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान को दंडित करेगा।