नीट परीक्षा से पूर्व छात्रों का मौत को गले लगाना हमारी घातक प्रणालीगत विफलता को ही उजागर करता है, विडंबना ये है कि परीक्षाओं के इस जोखिम को हम नजरअंदाज करते हैं..!!
यह देश के लिए कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की युवा प्रतिभाएं आसमानी उम्मीदों, टॉपर संस्कृति के दबाव व तंत्र की विसंगतियों के चलते आत्मघात की शिकार हो रही हैं। हाल ही में तीन छात्रों की दुखद मौतें विचलित करने वाली हैं। इनमें राजस्थान स्थित कोटा के नीट के परीक्षार्थी और मोहाली स्थित निजी विश्वविद्यालय में फोरेंसिक साइंस का एक छात्र शामिल था।
नीट परीक्षा से पूर्व छात्रों का मौत को गले लगाना हमारी घातक प्रणालीगत विफलता को ही उजागर करता है। विडंबना ये है कि परीक्षाओं के इस जोखिम को हम नजरअंदाज करते हैं। जो बताता है कि ये प्रतिभाएं किस हद तक शैक्षणिक दबाव, मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी तथा अवास्तविक अपेक्षाओं के मिलने से बनी जानलेवा घातकता का शिकार हो रही हैं। यह दुखद ही है कि सुनहरे सपने पूरा करने का ख्वाब लेकर कोटा गए चौदह छात्रों ने इस साल आत्महत्याएं की हैं। विडंबना यह है कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद कोचिंग संस्थानों के संरचनात्मक दबाव, उच्च दांव वाली परीक्षाओं, गलाकाट स्पर्धा, दोषपूर्ण कोचिंग प्रथाएं और सफलता की गारंटी के दावों का सिलसिला थमा नहीं है।
यही वजह है कि हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी सीसीपीए ने कई कोचिंग संस्थानों को भ्रामक विज्ञापनों और अनुचित व्यापारिक प्रथाओं के चलते नोटिस दिए हैं। दरअसल, कई कोचिंग संस्थान जमीनी हकीकत के विपरीत शीर्ष रैंक दिलाने और चयन की गारंटी देने के थोथे वायदे करते रहते हैं। निस्संदेह, इस तरह के खोखले दावे अक्सर कमजोर छात्रों और चिंतित अभिभावकों के लिये एक घातक संजाल बन जाते हैं।
निश्चित रूप से युवाओं के लिये घातक साबित हो रही टॉपर्स संस्कृति में बदलाव लाने के लिए नीतिगत फैसलों की सख्त जरूरत है। राजस्थान सरकार की ओर से प्रस्तावित कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक इस दिशा में बदलावकारी साबित हो सकता है। लेकिन कोई भी प्रावधान तब तक कारगर साबित नहीं हो सकते जब तक कि कोचिंग संस्थानों की कारगुजारियों की नियमित निगरानी न की जाए। कोचिंग संस्थानों में नामांकन से पहले अनिवार्य परामर्श और योग्यता परीक्षण मददगार हो सकता है। यह विडंबना ही है कि वर्ष 2018 के दिशा-निर्देश, जिनका मकसद छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना और निजी संस्थानों को विनियमित करना था, वे आज अप्रासंगिक हो गए हैं। यह एक हकीकत है कि सख्त निगरानी के बिना नये कानून का भी प्रतीकात्मक बनने का जोखिम बना रहता है। युवाओं को अनावश्यक प्रतिस्पर्धा के लिये बाध्य करना और योग्यता को अंकों के जरिये रैंकिंग से जोड़ना कालांतर अन्य छात्रों को निराशा के भंवर में फंसा देता है।
वास्तव में सरकार को ऐसा पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित करना चाहिए, जो विभिन्न क्षेत्रों में रुचि रखने वाले युवाओं के लिये पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर पैदा कर सके। वास्तव में हमें युवाओं को मानसिक रूप से सबल बनाने की सख्त जरूरत है। प्रतिभागियों को बताया जाना चाहिए कि कोई भी परीक्षा जीवन से बड़ी नहीं होती। यदि वे एक परीक्षा या पाठ्यक्रम में सफल नहीं होते तो रोजगार के असंख्य विकल्प उनका इंतजार कर रहे होते हैं।