सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के 5 महीने बाद भी राजा बरारी इस्टेट की 7988 एकड़ वन भूमि की लीज नहीं हुई निरस्त


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स्टोरी हाइलाइट्स

एसीएस ने लीज धारी संस्था को नियम विरुद्ध 2 करोड़ भुगतान करने दिए निर्देश, पूर्व प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव भी कर चुके लीज निरस्त की सिफारिश..!!

भोपाल: नर्मदापुरम मुख्य वन संरक्षक से लेकर वन विभाग के शीर्ष अधिकारियों ने बड़े-बड़ों और रसूखदारों की संस्था राधा स्वामी सत्संग दयालबाग आगरा के कब्जे वाली राजा बरारी इस्टेट के कब्जे वाली 7988 एकड़ वन भूमि की 65 साल पुरानी लीज निरस्त करने सिफारिश की है। राज्य सरकार ने पट्टा रद्द करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की, लकड़ी की कीमत अभी भी चुकाई जा रही है। 

वर्तमान सीसीएफ ने भी पट्टा रद्द करने की सिफारिश की है। बावजूद इसके, अपर मुख्य सचिव वन अपने टीएल की बैठक में राजा बरारी इस्टेट की बकाया 2 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की दर से भुगतान के लिए दबाव बना रहें हैं। राजा बरारी इस्टेट को 2 वित्तीय वर्ष से भुगतान भुगतान नहीं किया है। 

सुप्रीम कोर्ट के 15 मई 25 के आदेश के अनुसार, किसी भी वन अभिलेखित भूमि पर वन विभाग के अलावा किसी का कब्जा नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट सभी राज्यों के मुख्य सचिव को निर्देशित किया है कि "ऐसी सभी भूमियाँ जो वन भूमि के रूप में दर्ज हैं और जिनका उपयोग वानिकी के प्रयोजनों के लिए नहीं किया जा रहा है, उन्हें तुरंत संबंधित राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश के वन विभाग को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। यह हस्तांतरण आदेश की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।" 

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद भी राज्य शासन  हरदा वन मंडल के राजाबरारी इस्टेट (7988 एकड़) की लीज को निरस्त नहीं कर रही है। जबकि प्रमुख सचिव राजस्व रहे मनोज श्रीवास्तव भी राज्य शासन को 18 जनवरी 2011 को सौंपी विस्तृत रिपोर्ट में संस्था की लीज निरस्त करने की सिफारिश चुके हैं। प्रस्तुत रिपोर्ट में राजाबरारी इस्टेट में शासकीय भूमि के अनियमित प्रक्रिया ‌द्वारा अंतरण और लीज की वैधानिकता पर गंभीर प्रश्न उठाए गए। 

रिपोर्ट में यह भी उल्लेखित है कि "धारा 12 म.प्र. वनभूमि प‌ट्टा प्रतिसंहरण अधिनियम का लाभ राजाबरारी प‌ट्टे को मिल ही नहीं सकता था क्योंकि इस प‌ट्टे में ही प्रावधानित था कि शुद्ध मुनाफे का मात्र 60% आदिवासियों पर व्यय किया जाए और 10% खुद रिटेन किया जाए और 20% खजाने में जमा कराया जाए। चूंकि संस्था से कई प्रभावशाली और रसूखदार सेवानिवृत्त नौकरशाह जुड़े है, इसलिए श्रीवास्तव की रिपोर्ट पर आज दिनांक तक लीज निरस्तीकरण की कार्यवाही नहीं की गई।

लीज अप्रासंगिक एवं अव्यवहारिक हो गई

तत्कालीन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, लीज मैनेजमेंट नरेंद्र कुमार  की जांच रिपोर्ट (18 मार्च 2016) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि लीजधारक संस्था द्वारा वर्ष 1990-91 से 2014-15 के लेखा प्रतिवेदनों का परीक्षण करने पर करारनामे की शर्तों का उल्लंघन एवं कई वित्तीय अनियमिताएं पाई गई। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि लीजधारक की शासकीय संपत्ति (राजाबरारी स्टेट) से लगभग रु 2 करोड प्रति वर्ष की आय हो रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 65 वर्ष पूर्व स्वीकृत लीज की शर्तें अब अप्रासंगिक एवं अव्यवहारिक भी हो गई है। इस कारण से भी अब इस लौज को जारी रखना शासन हित में नहीं है। रिपोर्ट ने लीज निरस्त करने और आय की अनाधिकृत उपयोग की राशि वसूली की कार्यवाही प्रारंभ करने की अनुशंसा की।

ये पाई गई गड़बड़ियां

* हॉफ एवं पीसीसीएफ रहे नरेंद्र कुमार की रिपोर्ट के अनुसार अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करते हुए लीजधारी संस्था ने अपनी सहयोगी संस्थाओं को 3 करोड़ 14 लाख रुपए बांट दी और आदिवासी उत्थान पर किसी प्रकार का व्यय नहीं किया गया। जिन सहयोगी संस्थाओं को राशि का बंदरबांट किया गया उनमें आरएस आदिवासी स्कूल सोसायटी आगरा, एमआईआरएस चेरिटेबल सोसायटी दिल्ली, एमआईआरएस मेडिकल रिलीफ सोसायटी दिल्ली, एमआईआरएस एजुकेशन सोसायटी दिल्ली, एमसी ऑफ आरइआई ऑफ आगरा, दि सरन आश्रम हास्पिटल दयालबाग आगरा और दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट वूमेंस ट्रेनिंग कालेज आगरा शामिल है।

* संस्था को राजाबरारी इस्टेट वन से 2 करोड़ रुपए सालाना आय हो रही है। आय का 62 प्रतिशत राशि अनावश्यक, असंगत और अनुत्पादक कार्यों पर व्यय किया जा रहा है। जबकि आदिवासी उत्थान पर मात्र 38 प्रतिशत राशि ही खर्च की जा रही है। यह लीज शर्तों का उल्लंघन है।

* बांस का विदोहन औसत से अधिक किया जा रहा है।

* व्यय में अनियमितताः भवन निर्माण मरम्मत पर कुल आय का 17% व्यय, वाहन क्रय पर कुल आय का 4.4% व्यय और वन विद्रोहन पर हरदा वन मंडल के औसत व्यय से अधिक व्यय।

क्या है सिफारिश

एक स्वयं सेवी संस्था को शासकीय वनों का प्रबंधन एवं उससे होने वाली सम्पूर्ण आय सौंपना अर्थहीन हो गया है। 65 साल पहले स्वीकृत लीज की शर्तें अब अप्रासंगिक एवं अव्यवहारिक भी हो गई है। इस कारण से भी अब इस लीज को जारी रखना शासन के हित में नहीं है। राजाबरारी वन का प्रबंधन वन विभाग के सीधे नियंत्रण में लिया जाए और लीजधारक आय के अनाधिकृत उपयोग की राशि वसूली जाए।