PART-9- हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य ... गंगाजी के प्रति श्रृद्धा लेकिन प्रदूषण और गंदगी से दुखी थे गॉंधी


स्टोरी हाइलाइट्स

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य-PART-9
मनोज जोशी

हिंदुत्व और गॉंधी का राम राज्य (९)
गंगाजी के प्रति श्रृद्धा लेकिन प्रदूषण और गंदगी से दुखी थे गॉंधी
   
(गतांक से आगे)

भगवद्गीता की तरह गंगाजी के प्रति भी आम हिंदुओं की तरह गंगाजी के प्रति श्रृद्धा का भाव रखते थे। साथ ही वे 1902 में यानी आज से 118 साल पहले गंगाजी में मिल रही गंदगी से दुखी थे। सोचिए इन 118 वर्षों में तो गंगाजी को हमने और मेला ही किया है।

गोपाल कृष्ण गोखले की देश भ्रमण की सलाह पर गाँधीजी 21-22 फरबरी 1902 को कलकत्ता से राजकोट को रवाना हुए तो रास्ते में काशी, आगरा, जयपुर और पालनपुर में भी एक-एक दिन रुके। इसके अलावा 5 अप्रैल 1915 को जब वह हरिद्वार पहुंचे तो उस समय वहां कुम्भ का मेला चल रहा था।

उन्होंने अपनी डायरी में लिखा - ‘ सुबह मैं काशी उतरा। मैं किसी पण्डे के यहां उतरना चाहता था। कई ब्राह्मणों ने मुझे घेर लिया। उनमें से जो साफ सुथरा दिखाई दिया मैंने उसके घर जाना पसन्द किया। मैं यथा विधि गंगा स्नान करना चाहता था और तब तक निराहार रहना था। पण्डे ने सारी तैयारी कर रखी थी। मैंने पहले ही कह रखा था कि सवा रुपये से अधिक दक्षिणा नहीं दे सकूंगा।इसलिये उसी योग्य तैयारी करना। पण्डे ने बिना किसी झगड़े के बात मान ली। बारह बजे तक पूजा स्नान से निवृत्त हो कर मैं काशी विश्वनाथ के दर्शन करने गया। पर वहां पर जो कुछ देखा मन को बड़ा दुख हुआ। मंदिर पर पहुंचते ही मैंने देखा कि दरवाजे के सामने सड़े हुए फूल पड़े हुए थे और उनमें से दुर्गधं निकल रही थी। अन्दर बढ़िया संगमरमरी फर्श था। उस पर किसी अन्ध श्रद्धालु ने रुपए जड़ रखे थे; रुपए में मैल कचरा घुसा रहता है।" गाँधीजी अपनी डायरी में एक जगह आगे लिखते हैं कि, मैं इसके बाद भी एक दो बार काशी विश्वनाथ गया, किन्तु गन्दगी और हो-हल्ला जैसे के तैसे ही वहां देखे''।

हरिद्वार जैसे धर्मस्थलों के बारे में गाँधीजी ने डायरी में लिखा है कि “निसंदेह यह सच है कि हरिद्वार और दूसरे प्रसिद्ध तीर्थस्थान एक समय वस्तुतः पवित्र थे। लेकिन मुझे कबूल करना पड़ता है कि हिन्दू धर्म के प्रति मेरे हृदय में गंभीर श्रद्धा और प्राचीन सभ्यता के लिये स्वाभाविक आदर होते हुये भी हरिद्वार में इच्छा रहने पर भी मनुष्यकृत ऐसी एक भी वस्तु नहीं देख सका, जो मुझे मुग्ध कर सकती। पहली बार जब 1915 में मैं हरद्वार गया था, तब भारत-सेवक संघ समिति के कप्तान पं. हृदयनाथ कुंजरू के अधीन एक स्वयंसेवक बन कर पहुंचा था। इस कारण मैं सहज ही बहुतेरी बातें आखों से देख सका था।  लेकिन जहां एक ओर गंगा की निर्मल धारा ने और हिमाचल के पवित्र पर्वत-शिखरों ने मुझे मोह लिया, वहां दूसरी ओर मनुष्य की करतूतों को देख मेरे हृदय को सख्त चोट पहुंची और हरद्वार की नैतिक तथा भौतिक मलिनता को देख कर मुझे अत्यंत दुख हुआ।  गाँधीजी ने डायरी में लिखा है कि ‘‘ऋषिकेश और लक्ष्मण झूले के प्राकृतिक दृष्य मुझे बहुत पसंद आए। परन्तु दूसरी ओर मनुष्य की कृति को वहां देख चित्त को शांति न हुई। हरिद्वार की तरह ऋषिकेश में भी लोग रास्तों को और गंगा के सुन्दर किनारों को गन्दा कर डालते थे। गंगा के पवित्र पानी को बिगाड़ते हुए उन्हें कुछ संकोच न होता था। दिशा-जंगल जाने वाले आम जगह और रास्तों पर ही बैठ जाते थे, यह देख कर मेरे चित्त को बड़ी चोट पहुंची”

नदी किनारे खुले में शौच प रगाँधीजीजी ने लिखा है कि ‘ इस बार की यात्रा में भी मैंने हरद्वार की इस दशा में कोई ज्यादा सुधार नहीं पाया। पहले की भांति आज भी धर्म के नाम पर गंगा की भव्य और निर्मल धार गंदली की जाती है। गंगा तट पर, जहां पर ईश्वर-दर्शन के लिए ध्यान लगा कर बैठना शोभा देता है, पाखाना-पेशाब करते हुए असंख्य स्त्री-पुरुष अपनी मूढ़ता और आरोग्य के तथा धर्म के नियमों को भंग करते हैं। तमाम धर्म-शास्त्रों में नदियों की धारा, नदी-तट, आम सड़क और यातायात के दूसरे सब मार्गों को गंदा करने की मनाही है। विज्ञान शास्त्र हमें सिखाता है कि मनुष्य के मलमूत्रादि का नियमानुसार उपयोग करने से अच्छी से अच्छी खाद बनती है।’

‘यह तो हुई प्रमाद और अज्ञान के कारण फैलने वाली गंदगी की बात। धर्म के नाम पर जो गंगा-जल बिगाड़ा जाता है, सो तो जुदा ही है। विधिवत् पूजा करने के लिए मैं हरद्वार में एक नियत स्थान पर ले जाया गया। जिस पानी को लाखों लोग पवित्र समझ कर पीते हैं उसमें फूल, सूत, गुलाल, चावल, पंचामृत वगैरा चीजें डाली गईं। जब मैंने इसका विरोध किया तो उत्तर मिला कि यह तो सनातन् से चली आयी एक प्रथा है। इसके सिवा मैंने यह भी सुना कि शहर के गटरों का गंदला पानी भी नदी में ही बहा दिया जाता है, जो कि एक बड़े से बड़ा अपराध है।’

(क्रमशः)
साभार: MANOJ JOSHI - 9977008211

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

ये भी पढ़ें

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग-1

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग-2

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग 3

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग 4

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग 5

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य-6

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य भाग-7

   हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य,Gandhi's 'Ram Rajya',Swaraj and Ramrajya ,Revisiting Gandhi's Ram Rajya ,Gandhi envisioned Ram Rajya,What was Gandhi's view on Rama Rajya?,गांधी का 'रामराज्य',Mahatma Gandhi imagined 'Ram Rajya',In Ram's rajya In Ram's rajya,Gandhiji had first explained the meaning of Ramrajya,what was Gandhi's concept of ramrajya ,Ramarajya: Gandhi's Model of Governance Ramarajya: ,Gandhi's Model of Governance,Gandhiji wanted to establish Ram Rajya ,Creating Bapu's Ram Rajya ,Gandhi and Hinduism,India's journey towards Hindutva,What Hinduism meant to Gandhi