HISTORY: एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी, जिससे परेशान अंग्रेजों को उसे सोवियत रूस में ही मरवाना पड़ा.. 


स्टोरी हाइलाइट्स

स्वतंत्रता के बाद जब देश की नई पीढ़ी को आजादी के आंदोलन में अपने प्राण गंवाने वालों की कहानियां पढ़ाने की बारी आई, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

HISTORY: एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी, जिससे परेशान अंग्रेजों को उसे सोवियत रूस में ही मरवाना पड़ा.. 
 

" सोवियत रूस में मारे गए हमारे क्रांतिवीर वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय "

 
स्वतंत्रता के बाद जब देश की नई पीढ़ी को आजादी के आंदोलन में अपने प्राण गंवाने वालों की कहानियां पढ़ाने की बारी आई, तो तत्कालीन नेतृत्वकर्ताओं ने देश को यही पढ़ाया कि आजादी तो 'अनुनय-विनय' से ही प्राप्त हुई है। पाठ्यक्रमों में क्रांतिकारियों के संघर्ष और प्राणोत्सर्ग को न के बराबर शामिल किया गया। नतीजतन, आज की पीढ़ी कई महान क्रांतिकारियों के बारे में कुछ नहीं जानती। ऐसे ही 'एक क्रांतिकारी थे वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय। इन्होंने अंग्रेजों की नाक में इतना दम कर दिया था कि इन्हें सोवियत रूस में ही गोली मरवा दी गई थी।




 
चट्टोपाध्याय का जन्म 31 अक्टूबर 1880 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनकी चारों संतानों- वीरेन्द्र, सरोजिनी नायडू), हरेन्द्रनाथ और मृणालिनी, ने भी प्रसिद्धि प्राप्त की थी। वीरेंद्रनाथ आईसीएस और वैरिस्टरी करने लंदन पहुंचे और वहां श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर के संपर्क में आकर क्रांति कार्य में सक्रिय हो गए। फलस्वरूप उनके लिए कॉलेज के दरवाजे बंद हो गए।

अतः वे श्यामजी वर्मा के पत्र 'द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट' के संपादन में सहयोग देने लगे। 1906 में उन्होंने तुर्की के क्रांतिकारी नेता आमिल पाशा से संपर्क कर भारत की स्वतंत्रता के लिए भविष्य की योजना हेतु आश्वासन प्राप्त किया। वे आयरलैंड के क्रांतिकारियों से भी संपर्क में रहकर उन्हें अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध सहयोग देते रहे। 1907 में जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में मदाम कामा ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भारतीय ध्वज फहराया, तब उस दल में वे सरदार सिंह राणा के रूप में शामिल हुए। बाद में जर्मनी गए और वहां कुछ वर्षों तक क्रांति संबंधी पुस्तकें लिखने के बाद सोवियत रूस चले गए।

रूस में सत्ता परिवर्तन होने पर वे ट्राटस्की की विचारधारा से प्रभावित हुए। वहां भी उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाना शुरू किया। वे समर्थन जुटाने में काफी हद तक सफल भी हो रहे थे। किंतु इसी कारण 1928-29 के दौरान रूस में ही उनकी रहस्यमय स्थिति में मृत्यु हो गई। बाद में पता चला कि अंग्रेजों की कूटनीति और रूस के शासक स्टालिन की नाराजगी के चलते गोली मारकर उनकी हत्या करवाई गई थी।
Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.