स्टोरी हाइलाइट्स
Recently, a parliamentary committee said in its report that the history of India was very distorted and misrepresented.
भारत को अंग्रेजों ने राष्ट्र बनाया
इतिहास का एक बहुत बड़ा झूठ
-दिनेश मालवीय
हाल ही में एक संसदीय समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि भारत के इतिहास को बहुत तोड़मोड़कर गलत रूप में पेश किया गया. यह बात बिल्कुल सही है. देश की आज़ादी के बाद एक साजिश के तौर अनेक तरह के झूठ इस तरह फैलाए गये कि भारत की नयी पीढ़ी अपने अतीत को सही रूप में नहीं जान सके. वह उतना ही और वैसा ही जाने जैसा अंग्रेज़ चाहते थे. इसमें उनका अपना स्वार्थ था. एक बहुत बड़ा झूठ यह फैलाया गया कि भारत को अंग्रेजों ने राष्ट्र बनाया. हमारी नयी पीढ़ी को यही पढ़ाया गया और पढ़ाया जा रहा है. इस झूठ का जितना जल्दी पर्दाफ़ाश हो, हमारे लिए उतना ही अच्छा है. ऐसा नहीं होने पर हमें आगे भी इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
ज्ञान के अभाव में अधिकतर लोग देश और राष्ट्र को एक ही चीज मान लेते हैं, लेकिन ये दोनों बिलकुल अलग हैं. देश एक भौगोलिक इकाई है और राष्ट्र एक भावनात्मक अभिव्यक्ति. पुराने समय में भारत की सीमाएं उत्तर में हिमालय, पश्चिम और दक्षिण में हिन्द महासागर तक थीं. यह सही है कि इस पूरे क्षेत्र में बहुत सारे राज्य थे, जो आपस में लड़ते भी रहते थे. राजवंशों के उत्कर्ष और पतन होते रहे. साम्राज्यों की भौगोलिक सीमाओं में बदलाव होते रहे. लेकिन इन लड़ाइयों और राजनैतिक परिवर्तनों के परिणाम और प्रभाव सिर्फ राजनैतिक होते थे. सांस्कृतिक रूप से पूरा राष्ट्र एक रहता था. हमारी सांस्कृतिक एकता पर कोई असर नहीं होता था. साम्राज्यों के उत्कर्ष और पतन तह राजाओं के परिवर्तन से कोई सांस्कृतिक बदलाव नहीं होता था. सांस्कृतिक रूप से भारत की आंतरिक धारा निरंतर प्रवहमान रहती थी.
भारत के देवी-देवताओं को पूरे भारत में पूजा जाता रहा, इसके त्यौहार स्थानीय परिस्थितियों और परम्पराओं के साथ थोड़े-बहुत परिवर्तित रूप में मनाये जाते रहे और देश के एक कोने से दूसरे कोने तक तीर्थयात्री पूरी श्रद्धा से जाते रहे हैं. हमारे चारों प्रमुख तीर्थ चारों दिशाओं में स्थित हैं. आदि शंकराचार्य ने इसी सांस्कृतिक एकता को और मजबूत करने के लिए देश चारों दिशाओं में चार धामों की स्थापना की. पूरब में जगन्नाथपुरी है तो पश्चिम में द्वारका. उत्तर में बदरीनाथ धाम है तो दक्षिण में रामेश्वरम. पूरे भारत से श्रद्धालु इन तीर्थधामों में जाते रहे हैं. इन पर सबकी श्रद्धा है. इस तरह हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता हमेशा कायम रही है.
अंग्रेजों का शासन हो या इससे पहले मुस्लिम शासन, यह सांस्कृतिक एकता निरंतर बनी रही. राज्यों की भौगोलिक सीमाएं रहीं और बनती-मिट्टी रहीं, लेकिन इसकी कोई सांस्कृतिक सीमा कभी नहीं रही. विष्णु पुराण में एक श्लोक है, जिसका अर्थ है कि हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो भू-भाग है, से भारत कहा जाता है. इस भू-भाग में रहने वालों को भारतीय के नाम से जाना जाता है. इसी तरह के अनेक श्लोक की प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं. विष्णुपुराण की रचना अंग्रेजों के आने से हज़ारों वर्ष पहले हुयी थी.
अंग्रेज़ शासक बहुत चालाक थे. वे इस बात को अच्छी तरह समझ गये थे कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत ही इसकी मुख्य ताकत है. इस पर आघात किये बिना इस पर पूरी तरह दास बनाना नामुमकिन होगा. इसीलिए उन्होंने भारत की इसी विरासत पर सबसे पहले आघात किये. अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा देना शुरू किया कि भारतवासी आत्मगौरव को भूलकर आत्मविस्मृति और आत्महीनता के शिकार हो गये. खासकर हमारे युवाओं को एक अजीब तरह की हीनभावना ने बहुत गहराई से जकड़ लिया. उनमें यह हीनभाव इतना ज्यादा गहरा बैठ गया कि वे अपने अतीत पर ही अविश्वास करने लगे. इस हीनता के बोध से भारतीयों को निकालने में स्वामी विवेकानंद ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद भी अनेक महापुरुषों ने इस दिशा में सार्थक काम किया.
भारत के सदा से एक राष्ट्र होने के सन्दर्भ में एक उदाहरण दिया जा सकता है. एक समय पूरे यूरोप में रोम का शासन था. उसमें अनेक राज्य थे, लेकिन उसे यूरोप ही कहा जाता था. ऐसा ही भारत के विषय में है. यहाँ अलग-अलग राजनैतिक इकाइयां भले ही थीं और उनमें कितने भी मतभेद थे, लेकिन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से यह एक इकाई रहा. इसे अंग्रेजों ने नहीं बनाया. उन्होंने तो इस पहचान को तोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. अगर अंग्रेजों ने भारत को एक राष्ट्र का रूप दिया तो चन्द्रगुप्त मौर्य के समय का भारत क्या था? भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के सूत्र वैदिक काल से ही विद्यमान हैं. राष्ट्र के प्रति समर्पित आज के बुद्धिजीवियों के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती है कि अंग्रेजों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए प्रसारित इस बड़े झूठ को जितनी जल्दी हो सके, युवा पीढ़ी से सामने लाया जाये.
इस झूठ को सामने लाने में असफल होने की हमारी आने वाली पीढ़ियों को बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी. यह झूठ पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह चलता रहेगा कि इसका कभी अंत नहीं होगा.