होलिका दहन व पूजन विधि : आप नहीं जानते हैं होली पूजा कैसे करें तो यह सरल तरीका आपके लिए है


स्टोरी हाइलाइट्स

होली बुराई पर अच्छाई के जीत का पर्व है। होली को लेकर सनातन संस्कृति में कई कथाएं प्रचलित हैं। सभी कथाओं में बुराइयों के बाद जश्न मनाने को लेकर है। होली के..

होली बुराई पर अच्छाई के जीत का पर्व है। होली को लेकर सनातन संस्कृति में कई कथाएं प्रचलित हैं। सभी कथाओं में बुराइयों के बाद जश्न मनाने को लेकर है। होली के पहले पवित्र अग्नि जलाई जाती है, जिसमें सभी प्रकार के बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है। होली के रंग और अबीर से सबको रंगीन किया जाता है, इसका मतलब ये है कि आज राजा-प्रजा, अमीर-गरीब में कोई भेदभाव नहीं है। सभी एक समान हैं। होली में बुराई को जलाने से पहले उसकी पूजा की जाती है। होलिका दहन व पूजन का क्या है सही तरीका : इस वर्ष 9 मार्च 2020, सोमवार को होलिका दहन किया जाएगा तथा 10 मार्च 2020, मंगलवार को रंगबिरंगा त्योहार होली हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। आइ ए जानते हैं 9 मार्च 2020 को कब दहन करें होली....होलिका दहन व पूजन का क्या है सही तरीका होली 2020 शुभ मुहूर्त : संध्या काल में- 06 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक होली का दहन (होलिका दहन) किया जा सकता है। होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उनमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है। सप्तधान्य हैं गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिए निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए | एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अति‍रिक्त नई फसल के धान्यों जैसे पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती हैं। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिए जाते हैं। होलिका दहन मुहूर्त समय में जल, मौली, फूल, गुलाल तथा ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर से लाकर सु‍‍रक्षित रख ली जाती हैं। इनमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमानजी के नाम की, तीसरी शीतलामाता के नाम की तथा चौथी अपने घर-परिवार के नाम की होती है। कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दिया जाता है। होली पर कई सारे टोटके और मंत्र आजमाए जाते हैं। लेकिन सही मायनों में मात्र एक ही मंत्र है जिसके जप से होली पर पूजा की जाती है और इसी शुभ मं‍त्र से सुख, समृद्धि और सफलता के द्वार खोले जा सकते हैं। अहकूटा भयत्रस्तै : कृता त्वं होलि बालिशै : अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम: इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए। होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए | एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है | इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है | होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है | कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है| सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है| सेक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है| ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है | राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है :      वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।   अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥ होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए (Chant the mantra below while Holika Pujan) :     अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः    अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए | होलिका पूजन के बाद होलिका दहन (Holika Dahan is done After Holi Pujan) : विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है| होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है| इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए| ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है| इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है| तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए| होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है| आधुनिक परिपक्ष्य में होलिका दहन (Holi Dahan in the Modern Times) : आज के संदर्भ में वृ्क्षारोपण के महत्व को देखते हुए, आज होलिका में लकडियों को जलाने के स्थान पर, अपने मन से आपसी कटुता को जलाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हम सब देश की उन्नति और विकास के लिये एक जुट होकर कार्य कर सकें| आज के समय की यह मांग है कि पेड जलाने के स्थान पर उन्हें प्रतिकात्मक रुप में जलाया जायें| इससे वायु प्रदूषण और वृ्क्षों की कमी से जूझती इस धरा को बचाया जा सकता है| प्रकृ्ति को बचाये रखने से ही मनुष्य जाति को बचाया जा सकता है, यह बात हम सभी को कभी नहीं भूलनी चाहिए |