भोपाल: मध्यप्रदेश के चीता परियोजना को इनोवेटिव इनिशिएटिव्स अवॉर्ड दिया गया है। तीन साल पहले पालपुर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर चीते छोड़कर परियोजना की शुरुआत की थी। गौरतलब है कि कूनो में लगातार चीतों के परिवार में वृद्धि हो रही है। इसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तत्काल ध्यान आकर्षित किया।
उल्लेखनीय बात यह भी है कि जब परियोजना की शुरुआत हो रही थी, तब कई शंकाएं भी उठीं कि भारतीय वातावरण चीता के लिए उपयुक्त नहीं है। इस अवधारणा को तोड़ते हुए कूनो पालपुर और गांधी सागर अभयारण में चीते फर्राटे भर रहे है और उनकी संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
पिछले तीन वर्षों में पांच चीता मादाओं द्वारा 6 बार शावकों को जन्म देना इस परियोजना की सफलता और लचीलापन का परिचायक है। वे भारतीय शिकार जैसे चीतल के प्रति अच्छी अनुकूलता दिखा रहे हैं। शुरुआत में डर था कि तेंदुओं से संघर्ष होगा, लेकिन प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र ने खुद को संतुलित किया, और शिकारी प्रजातियां अपने-अपने क्षेत्र में सीमित हो गई। वर्तमान में 25 चीते कूनो राष्ट्रीय उद्यान में हैं।
तीन वर्षों में मिले नए अनुभव
प्रोजेक्ट चीता की तीन वर्ष की यात्रा चुनौतीपूर्ण होने के साथ प्रेरणादायक भी रही है। चीता प्रबंधन के हर पहलू से ऐसी मूल्यवान जानकारियां मिलीं हैं, जिससे अनुभव रखने वाले और नए दोनों पेशेवरों की समझ में वृद्धि हुई है। किसी जीवित प्राणी के साथ काम करते समय जोखिम अनिवार्य होते हैं।
पिछले तीन वर्षों में केंद्र और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों, फील्ड मैनेजर्स, पशु चिकित्सकों और फ्रंटलाइन स्टाफ का आत्मविश्वास मज़बूत हुआ। इन वर्षों में यह भी साबित हो गया कि मध्य प्रदेश आपात स्थितियों और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम है। प्रोजेक्ट चीता की सफलता टीम वर्क का प्रतीक है,जहां सभी पेशेवर एक ही उद्देश्य के लिए प्रतिबद्धता और कौशल के साथ कार्य कर रहे हैं।
अपने क्षेत्र में सीमित हो गई शिकारी प्रजातियां
चीता ने भारतीय वातावरण को आश्चर्यजनक रूप से तेज़ी से अपना लिया है। पिछले तीन वर्षों में पाँच चीता मादाओं द्वारा 6 बार शावकों को जन्म देना इस परियोजना की सफलता और लचीलापन का परिचायक है। वे भारतीय शिकार जैसे चीतल के प्रति अच्छी अनुकूलता दिखा रहे हैं। शुरुआत में डर था कि तेंदुओं से संघर्ष होगा, लेकिन प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र ने खुद को संतुलित किया, और शिकारी प्रजातियाँ अपने-अपने क्षेत्र में सीमित हो गईं।
गणेश पाण्डेय