हनुमान जी द्वारा लंका जलाने का औचित्य... दिनेश मालवीय 


स्टोरी हाइलाइट्स

सीताजी की खोज मे जब वानर जाने लगे तब उनके स्वामी वाननरराज सुग्रीव ने ने  हनुमानजी से सिर्फ इतना कहा था कि आप सीता ....हनुमानजी द्वारा लंका जलाने

हनुमान जी द्वारा लंका जलाने का औचित्य... दिनेश मालवीय हम रामायण के दो बहुत महत्त्वपूर्ण क़िरदारों के दो बड़े कारनामों पर चर्चा करेंगे। ये क़िरदार हैं पवनपुत्र हनुमान और बालिपुत्र अंगद। हनुमान जी के बल और बुद्धिमत्ता के बारे मे तो लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन अंगद के व्यक्तित्व के बहुत ख़ास पहलुओं से कम ही लोग परिचित हैं। इन दोनो ने बड़े - बड़े काम किये। इनमें हनुमान जी द्वारा लंका दहन और उत्पात और अंगद द्वारा रावण की राजसभा मे पांव जमाना प्रमुख हैं। इन दोनो मामलों में अनेक तरह की जिज्ञासाएँ और मतांतर हैं। श्रीराम के इन दो सेवकों के उक्त दोनो कारनामों को भगवान श्रीराम ने किस तरह सही बताया, इस पर हम चर्चा करेंगे। लंका दहन : सीताजी की खोज मे जब वानर जाने लगे तब उनके स्वामी वानरराज सुग्रीव ने  हनुमान जी से सिर्फ इतना कहा था कि आप सीता की खोजकर उनका समाचार ले आओ। जब इतना ही आदेश था, तो हनुमानजी को लंका मे भारी उत्पात कर उसका दहन करने की क्या ज़रूरत थी ? लेकिन उन्होंने ऐसा किया। लेकिन  उनके मन मे यह भाव भी रहा कि कहीं उन्होंने स्वामी के आदेश यानी उन्हें दिये गये मैन्डेट का उल्लंघन तो नहीं कर दिया। हनुमान जी चाहते तो माता सीता से मिलकर सीधे वापस किष्किन्धा लौट आते। लेकिन उन्होंने ऐसी स्थितियां निर्मित कर दीं कि रावण के भयानक राक्षस योद्धाओं से उनका सीधा टकराव हो गया। यहाँ तक कि हनुमान जी ने रावण के बलशाली पुत्र अक्ष्यकुमार और बड़ी संख़्या मे राक्षसों को भी मार डाला। इतना ही नहीं, वायुपुत्र हनुमान जी ने ऐसी योजना बनाकर उसे अंजाम दिया कि वह बंदी बनाकर रावण के दरबार मे ले जाए गये। वहाँ उन्होंने उसे ज्ञानोपदेश दिया और अपने वाक्चातुर्य से ख़ूब लज्जित भी किया। यह सब करने का तो उन्हें आदेश ही नहीं दिया गया था। हनुमान जी के यह सब कार्य सेवक धर्म के सर्वथा अनुकूल थे। इसमे कुछ भी अनुचित नहीं था। श्रीराम ने हनुमान जी से जो कहा उससे इस बात की पुष्टि होती है। श्रीराम ने कहा कि जो सेवक स्वामी द्वारा किसी दुष्कर कार्य मे नियुक्त होने पर उसे पूरा करने के बाद स्वामी के पास आए, वह सेवक उत्तम होता है। उन्होंने दो तरह के सेवक और बताये। उन्होंने कहा कि एक कार्य में नियुक्त होकर योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी स्वामी के किसी दूसरे हितकारी कार्य को नहीं करता, वह मध्यम श्रेणी का सेवक होता है। वह जितना कहा जाए उतना कर के आ जाता है। इस प्रकार श्रीराम ने स्वयं हनुमान जी द्वारा लंका में किये गये कार्यों को सही करार दिया। जो सेवक स्वामी के किसी कार्य में नियुक्त होकर योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी उसे सावधानी से पूरा नहीं करता, वह अधम कोटि का होता है। श्रीराम ने हनुमानजी को दिया सबसे अनमोल पुरस्कार, श्रीराम ने कहा कि मुझे इस बात का खेद है कि हनुमान ने जो महान कार्य किया है, उसके लिये उन्हें पुरस्कार देने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें केवल प्रगाढ़ता से गले लगा सकता हूँ। ऐसा कहकर उन्होंने पवनपुत्र को बहुत प्रेम से गले लगा लिया। उनका रोम रोम पुलकित हो गया। हनुमान जी के लिये यह उनके जीवन का सबसे अनमोल पुरस्कार था। इससे प्रोत्साहित होकर हनुमानजी ने श्रीराम को लंका के संबंध में बहुमूल्य जानकारी दी। उन्होंने बताया कि लंका में कितने दरवाजे हैं, कहाँ सैनिकों की कितनी और कैसी तैनाती है, कितने शस्त्रागार हैं, वहाँ किस तरह के हथियार हैं और सुरक्षा के कैसे इंतजाम हैं।  युद्ध में यह सब जानकारी श्रीराम के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुयी। अंगद द्वारा रावण की राजसभा मे पांव जमाना अंगद का कारनामा, महाबलशाली बालि के सुयोग्य पुत्र अंगद वीरता और शक्ति मे पिता से कम नहीं थे। बालि ने रावण को बहुत अपमान जनक रूप से पराजित किया था। युद्ध से पहले श्रीराम ने इसे टालने के लिये अंगद को अपना दूत बनाकर शांति प्रस्ताव लेकर रावण के पास भेजा। उसे यह स्वतंत्रता दी गयी कि वह देश काल परिस्थिति के अनुसार आचरण करे और निर्णय ले। अंगद ने देखा कि रावण का अभिमान आसमान छू रहा है। उसके योद्घा और दरबारी चाटुकारिता करके उसका अहंकार बढ़ा रहे हैं। रावण ने शांति प्रस्ताव नहीं माना और श्रीराम के विषय मे अपमान जनक बातें कहीं। अंगद ने उसके अभिमान को तोड़ने के लिये बहुत साहसी क़दम उठाया। उसने अपना एक पांव आगे बढ़ाकर मजबूती से फर्श पर जमा दिया। उसने ऐलान कर दिया कि अगर दरबार मे कोई भी उसके पांव को ज़रा सा हिला भी दे तो श्रीराम सीता को प्राप्त किये बिना वापस लौट जाएँगे। अंगद के पांव को कोई भी हिला तक नहीं पाया। यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या अंगद का ऐसा करना उचित था ? क्या उसका इतना बड़ा वचन दिया जाना विवेकपूर्ण था ? लेकिन यहाँ भी वही बात लागू होती है जो श्रीराम ने हनुमानजी के संदर्भ में कही थी। उसे अपने बल पर इतना विश्वास था कि उसने बिना झिझक यह वचन दे डाला। यह किसी भी तरह अनुचित नहीं था। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन दो महान वानर वीरों ने अपनी समझ और शक्ति से श्रीराम की विजय मे बड़ी भूमिका निभाई। दोनो ने त्रिलोक विजेता रावण के मनोबल को गिराने का महत्वपूर्ण कार्य किया।