खुशियों का विज्ञान -The Science of Happiness... P अतुल विनोद


स्टोरी हाइलाइट्स

खुशी का एक मतलब होता है व्यक्तिगत प्रसन्नता, लेकिन व्यक्तिगत प्रसन्नता को जब तक यूनिवर्सल प्रसन्नता के साथ नहीं जोड़ा जाएगा वो स्थाई नहीं हो पाएगी| 

खुश कौन है हम किसे खुश कहेंगे? The Science of Happiness in Positive Psychology खुशी का एक मतलब होता है व्यक्तिगत प्रसन्नता, लेकिन व्यक्तिगत प्रसन्नता को जब तक यूनिवर्सल प्रसन्नता के साथ नहीं जोड़ा जाएगा वो स्थाई नहीं हो पाएगी|  खुशी और प्रसन्नता का अर्थ ये नहीं कि हम जोर जोर से हंस रहे हैं| खुशियों का अर्थ है हमारी वो गतिविधियां जो हर वक्त शांति, सहजता, सद्भाव, दया, करुणा और  कृतज्ञता को व्यक्त करती है| हमारा अस्तित्व क्यों है?  हमारा अस्तित्व है इस यूनिवर्सल अस्तित्व की गतिविधि में सहभागिता|  हमारा अस्तित्व है उस ब्रह्म की इच्छा से पैदा हुए इस जगत का कल्याण| हमारा अस्तित्व है ब्रह्म की इच्छा के साथ एकाकार हो जाना|  हमारा अस्तित्व है ब्रह्म की सृष्टि के साथ सिनर्जी और हारमोनी स्थापित करना| हमारा अस्तित्व है इस सृष्टि रूपी नदी की धार के साथ बहना| हमारा अस्तित्व है उस ब्रह्म की इच्छा को अपनी इच्छा बना लेना|   जीवन का उद्देश्य सिर्फ जीना नहीं जीवन का मकसद है अच्छी तरह जीना|  अच्छी तरह जीना हम सबका अधिकार है| अच्छी तरह जीने में खुशी से जीना भी शामिल है|  हम सबके अंदर खुशी हसील करने की इच्छा भी होनी चाहिए योग्यता भी | यदि हम खुद हंस सकते हैं तो दूसरों को भी हंसा सकते हैं|  खुशी का मतलब अच्छा भाग्य नहीं है| खुशी का मतलब हर कार्य का हमारे अनुरूप होना नहीं है|  खुशी का मतलब हमारी इच्छाओं की सतत आपूर्ति भी नहीं है| खुशी वैयक्तिक है,  खुशी यदि अच्छे भाग्य, इच्छाओं की पूर्ति और संसाधनों की आपूर्ति पर निर्भर है तो ये खुशी नहीं है ये एक मानसिक अवस्था है| एक भौतिक मनुष्य के लिए खुशी अपनी शारीरिक जरूरतों बौद्धिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति है|दरअसल ये खुशी उन जरूरतों की पूर्ति से नहीं मिलती बल्कि उन जरूरतों की पूर्ति से मिलने वाली खुशी के विश्वास से मिलती है|  हमारा विश्वास होता है कि इन चीजों की प्राप्ति से हमें खुशी मिलेगी| हमारा विश्वास ही हमारी जरूरत निर्मित करता है|  इससे उन जरूरतों की मांग बढ़ती है| जब पूर्ति होती है तो हम एक सुख मिलता है| खुशी को लेकर अनेक तरह की अवधारणाएं रही हैं| साधु-संतों ने धर्म को खुशी का आधार  बताया| नैतिकतावादियो ने नैतिकता और ईमानदारी को खुशी का आधार बताया| ईश्वरवादियों ने ईश्वर को खुशी का आधार बताया| भौतिक वादियो ने जरूरतों की पूर्ति को खुशी का आधार बताया| मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक  स्वास्थ्य और संतुष्टि को  खुशी का आधार बताया| अवतार वादियो ने अवतार की कृपा और आशीर्वाद को खुशी का आधार बताया मत पंथ संप्रदायों में  कहा गया कि इस दुनिया में खुशी है ही नहीं| खुशी चाहिए तो स्वर्ग, हैवन या जन्नत  जाना होगा| अध्यात्मवादियों ने कहा कि आत्म ज्ञान से ही सच्ची खुशी प्राप्त हो सकती है| खुशी की तलाश में इंसान ने क्या नहीं किया? कितनी सारी खोज की, निर्माण किए, प्लेजर के लिए उपकरण तक बना डाले| टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट, गेम्स, खिलौने न जाने क्या क्या आनंद के लिए  अविष्कृत किया गया| कहीं कहा गया कि खुशी देने से मिलती है|  कहीं कहा गया कि खुशी अत्यधिक दुख के बाद मिलती है| मानवतावादियों ने कहा कि सब की खुशी में ही व्यक्ति की खुद की खुशी है| वर्तमान समय में कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपनी स्थिति और परिस्थितियों से संतुष्ट है वही खुश है| खुशी के कुछ पहलू हैं|  जैसे -  जीवन से संतुष्टि , काम से संतुष्टि,  स्वास्थ्य से संतुष्टि, रिश्तो से संतुष्टि, समाज में स्थिति से संतुष्टि, भाग्य से संतुष्टि, धन से संतुष्टि, सकारात्मक ऊर्जा से संतुष्टि, धर्म से संतुष्टि, ईश्वर भक्ति से संतुष्टि, जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति इन सभी स्तरों पर खुश हो| संसार अपूर्णता से भरा हुआ है| इसलिए कोई व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में संतुष्ट है तो दूसरे क्षेत्र में असंतुष्ट हो सकता है| एक क्षेत्र की संतुष्टि को दूसरे क्षेत्र की संतुष्टि क्रॉस कर सकती है| और सुख का प्रभाव शून्य हो सकता है| हमारी संतुष्टि हमारे मनोविज्ञान पर निर्भर करती है|  हमारा नजरिया भी हमारी खुशी का महत्वपूर्ण जरिया है|  एक व्यक्ति सब कुछ होते हुए भी नाखुश हो सकता है| एक व्यक्ति कुछ ना होते हुए भी सुखी हो सकता है|   एक व्यक्ति के पास कुछ नहीं है लेकिन फिर भी वो संतुष्ट दिखाई देता है|  एक व्यक्ति के पास सब कुछ है लेकिन फिर भी वो असंतुष्ट है| दरअसल एक इंसान अपने अंदर जाए बिना जान ही नहीं सकता कि वो संतुष्ट और असंतुष्ट क्यों है?  ज्यादातर लोग अपनी खुशी और नाखुशी का कारण समझ नहीं पाते|  एक व्यक्ति के पास सब कुछ है जो जीने के लिए न्यूनतम आवश्यकता से कहीं अधिक है|  लेकिन वो फिर भी संतुष्ट नहीं है क्योंकि उसके  कंपटीटर के पास उससे ज्यादा है| दुनिया में खुशी को हैप्पीनेस कहा जाता है| जो परिवर्तनशील है और दुख के सापेक्ष है|  भारत में सुख और दुख से ऊपर आनंद की कल्पना की गई है| आनंद ना तो दुख का अपॉजिट है नहीं देश काल परिस्थिति और आवश्यकताओं का  मोहताज| हम खुशी को निर्भर बना लेते हैं|  ये हमारी आदत है कि हम खुद भी दूसरों पर डिपेंड हो जाते हैं और अपनी खुशी  को भी डिपेंड कर लेते हैं| दरअसल खुशी एक आदत है|  जो विकसित भी की जा सकती है| अपने दृष्टिकोण को बदलकर| संतुष्टि के स्तर को बढ़ाकर| खुद को प्रशिक्षित कर के भी हम भौतिक स्तर पर खुशी महसूस कर सकते हैं| इससे भी ज्यादा आनंद के स्तर पर पहुंचना है तो हमें आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करना पड़ेगा|  आत्म साक्षात्कार के बाद आनंद की स्थिति प्राप्त हो सकती है | कई लोगों के लिए दुखी रहना ही खुशी है|  उनकी दुखी रहने की आदत है|  हमें लगता है कि ये उदास और निराश हैं, लेकिन उन्हें उनकी उदासी ही सुकून पहुंचाती है| खुश रहने के कितने ही कारण उनके पास मौजूद होंगे लेकिन वो उदास रहने का जरिया खोज ही लेंगे| खुश रहना जिंदगी का उद्देश्य नहीं है|  खुश रहना हमारी स्वाभाविक स्थिति है लेकिन खुशी भी तभी मिलेगी जब हम उसके साथ रहने वाले दुख को स्वीकार कर लेंगे|