हाय-हाय रे ये “बेरोजगारी” .. कोरोना ने तो युवाओं की कमर तोड़ डाली….अतुल पाठक


स्टोरी हाइलाइट्स

हाय-हाय रे ये “बेरोजगारी” बेरोजगारी : अब कोरोना के साथ बेरोजगारी पर फोकस का वक्त। कब चेतेंगी सरकारें?भारत में बेरोजगारी हमेशा से मुद्दा रहा है..

हाय-हाय रे ये “बेरोजगारी” .. कोरोना ने तो युवाओं की कमर तोड़ डाली….अतुल पाठक अब कोरोना के साथ बेरोजगारी पर फोकस का वक्त। कब चेतेंगी सरकारें? भारत में बेरोजगारी हमेशा से मुद्दा रहा है। कोविड-19 के बाद बेरोजगारी किस हद तक बढ़ी है इसे आंकड़ों के जरिए बयां करने की जरूरत नहीं है। हालांकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनामी के आंकड़े कहते हैं कि भारत में इस वक्त औसत बेरोजगारी दर 13 फ़ीसदी से ज्यादा है। बेरोजगारी के हालात सबके सामने हैं भले ही हमारे पास कोई कंपाइल्ड डाटा ना हो लेकिन आम आदमी भी समझ सकता है कि रोजगार और रोजगार के अवसरों पर कितना विपरीत असर पड़ा है। Unemployment rate: देश में बड़ी बेरोजगारी दर ने मई में तोड़ा पिछले 49 हफ्तों का रिकॉर्ड देश में 100 लोगों में से 20 से 30 ऐसे हैं जिनके पास कोई जॉब नहीं है। दरअसल रोजगार को लेकर अब तक कोई इफेक्टिव पॉलिसी बनाई ही नहीं जा सकी। देश में बेरोजगारी का स्तर क्या है? ऐसी अनेकों रिपोर्ट और स्टडी है जो बताती है कि बेरोजगारी संबंधी आंकड़े सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा गम्भीर है। हालांकि स्टेट और केंद्र की सरकारें ऐसी तमाम रिपोर्ट को झुठलाती रही है जो बेरोजगारी के आंकड़ों से वास्तविक तस्वीर बयां करती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में बेरोजगारी की दर 6.1 फ़ीसदी थी, 2018 में बेरोजगारी और बढ़ी। 2021 में ये 13 फीसदी से ज्यादा है| लेकिन वास्तविक आंकड़े 20 फ़ीसदी के करीब हो सकते हैं| बेरोजगारी: पिछले एक माह में कोरोना ने लीली 75 लाख नौकरियां, बेरोजगारी चार महीने के शीर्ष पर बेरोजगारी के हिसाब से देश का सबसे ज्यादा पिछड़ा राज्य त्रिपुरा है। यहां कुछ साल पहले 31.2 फ़ीसदी तक बेरोजगारी दर्ज की गई थी। आज इससे कहीं ज्यादा होगी| उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार और झारखंड में त्रिपुरा के बाद सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। दिल्ली में भी बेरोजगारी की दर कम नहीं है। लगभग 25 फ़ीसदी युवा यहां बेरोजगार हैं। हरियाणा में भी 25 प्रतिशत के करीब हैं। टॉप टेन में छत्तीसगढ़ का नाम भी शामिल है। यह आंकड़े कोविड-19 के बाद और कितने बढ़े हैं इस बारे में कोई स्पष्ट डाटा नहीं है। बेरोजगारी की समस्या को लेकर अभी तक किसी भी स्टेट में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अभी तो सभी राज्य और केंद्र सरकारें मिलकर कोरोना से निपटने पर ही ध्यान फोकस कर रही हैं, लेकिन बेरोजगारी की समस्या पर इन्हें बहुत जल्द ध्यान देना होगा। यदि राज्यों और केंद्र सरकार ने बेरोजगारी पर ध्यान केंद्रित नहीं किया तो आम नागरिकों की समस्याएं और बढ़ जाएंगी। कोविड-19 के बाद इस बात की बहुत ज्यादा जरूरत है कि बेरोजगारी पर बहुत संजीदगी से काम किया जाए। कितने लोग बेरोजगार हुए हैं? कितने लोगों की नौकरियां चली गई हैं? कितने लोगों के काम धंधे ठप्प पड़ गए हैं? कैसे इन काम धंधों को फिर से शुरू किया जाए? कैसे रोजगार के अवसर बढ़ाए जाए? कैसे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाए? यह सब सरकारों के एजेंडे में शामिल होना चाहिए। हालांकि सरकारी रिपोर्ट में बेरोजगारों की संख्या में काफी झोल होते रहे हैं। देश का युवा आज राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस मनाने पर मजबूर: राहुल गांधी कभी सरकारें बेरोजगारी को स्वीकार करती हैं तो कभी दावा करती है कि उनके कार्यकाल में बेरोजगारी घट गई है। बेरोजगारी की स्थिति को लेकर विभिन्न सरकारें प्रॉपर सर्वे नहीं कराती हैं और इसी वजह से वो अपनी जिम्मेदारी से बच भी जाती हैं। इधर अर्थव्यवस्था और गरीबी के हाल भी कुछ ऐसे ही हैं| सिर्फ अप्रैल से जून 2020 तक, भारत की जीडीपी में 24.4% की भारी गिरावट आ गई। नवीनतम राष्ट्रीय आय अनुमानों के अनुसार, 2020-21 वित्तीय वर्ष (जुलाई-सितंबर 2020) की दूसरी तिमाही के साथ तीसरी और चौथी तिमाही (अक्टूबर 2020-मार्च 2021) में अर्थव्यवस्था में 7.4% की और गिरावट आई है। जीडीपी क्रमशः 0.5% और 1.6% बढ़ रही है जो बहुत कमजोर रिकवरी है। स्वतंत्रता के बाद भारत की राष्ट्रीय आय में 2020 से पहले केवल चार बार गिरावट आई है- 1958, 1966, 1973 और 1980 में- 1980 (5.2%) में सबसे बड़ी गिरावट थी। इसका मतलब है कि 2020-21 देश के इतिहास में आर्थिक संकुचन के मामले में सबसे खराब साल है| बेरोजगारी ….रोजगार की राह की सबसे बड़ी बाधा Covid काल में दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को बड़ी चोट लगी है, भारत को सबसे बड़े Contraction में से एक का सामना करना पड़ा है। 2020-21 वित्तीय वर्ष के दौरान, दुनिया के लिए सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट की दर 3.3% और उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2.2% थी जबकि भारत के लिए इससे दुगुनी से ज्यादा| अनुमान है कि 2020 में, टॉप 1% आबादी के पास कुल संपत्ति का 42.5% था, जबकि निचले 50% के पास कुल संपत्ति का केवल 2.5%। महामारी के बाद, भारत में गरीबों की संख्या दोगुनी से अधिक होने और मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या एक तिहाई गिरने का अनुमान है। अप्रैल और मई 2020 के बीच भारत के पहले कड़े लॉकडाउन के दौरान, व्यक्तिगत आय में लगभग 40% की गिरावट आई। अब आपको बतादें गरीबी में कितनी बढ़ोत्तरी हुयी? Unemployment: शहरी बेरोजगारों को भी मिलें रोजगार की गारंटी, 82 प्रतिशत लोग हुए बेरोजगार.. Consumer Pyramids Household Survey सीपीएचएस के डाटा से पता चलता है कि ग्रामीण गरीबी में 14.2 प्रतिशत और शहरी गरीबी में 18.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फिर भी कोविड -19 के कारण गरीबी में वास्तविक वृद्धि सीपीएचएस के आंकड़ों की तुलना में अधिक होने की संभावना है, जैसा कि अन्य सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है। महामारी युवाओं के लिए गंभीर आर्थिक कठिनाई लाई है, विशेष रूप से उनके लिए जो informal work करते हैं। भारत के workforce में युवाओं का एक बड़ा हिस्सा है और महामारी ने उन्हें लॉन्गटर्म बेरोजगारी के खतरे में डाल दिया है। इसका आजीवन कमाई और रोजगार की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। देश और प्रदेश की सरकारों को अब इस दिशा में तेजी से सकारात्मक नतीजे दिखाने होंगे|