सच्चा प्यार(Saccha Pyar) क्या है ? प्यार और प्रेम में अंतर जानिए |


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत ने हमेशा प्रेम को परमात्मा का एक रूप कहा है, sachcha pyar kya hai, “प्रेम”को ना तो ....,सच्चा प्यार(saccha pyar)..Prem kya hai

सच्चा प्यार(Saccha Pyar) क्या है ? प्यार और प्रेम में अंतर जानिए अतुल विनोद  भारत ने हमेशा प्रेम को परमात्मा का एक रूप कहा है, और प्रेम को परिभाषाओं से हमेशा मुक्त रखा है, “प्रेम”को ना तो किसी रिश्ते में  बांधा जा सकता है, ना ही किसी रीति रिवाज से| प्रेम का शरीर या ऑपोजिट सेक्स से कोई नाता नहीं, यह अलग बात है कि हम प्यार(लव) को प्रेम कहने लगे, लेकिन प्यार(लव) प्रेम के आगे बहुत छोटा है | यदि आप प्यार से संतुष्ट नहीं है और प्रेम के समुद्र में गोते लगाना चाहते हैं तो आपको प्रेम को अच्छी तरह से समझना पड़ेगा| प्रेम प्राप्त करने का नाम नहीं है, प्रेम खोने का नाम है| प्रेम बनाने का नाम नहीं है प्रेम मिट जाने का नाम है| प्रेम कठोरता का नाम नहीं है प्रेम पानी की तरह निर्मल बन जाने का नाम है| प्रेम लेने का नाम नहीं है प्रेम देने का नाम है| प्रेम कोई समझौता नहीं है| प्रेम कोई बंधन नहीं है| प्रेम कोई कंडीशन नहीं है| प्रेम परतंत्रता नहीं है| प्रेम स्वतंत्रता का नाम है, जितना दिया जाए उतना ही बढ़ता है, जितना लुटाया जाए उतना ही इकट्ठा होता है, आप यदि किसी व्यक्ति से प्यार करते हैं तो आपकी उसे पूर्ण रूप से हासिल करने की अभिलाषा होती है, आप उसे अपने अनुसार चलते हुए देखना चाहते हैं, आपको उसके विचारों में अपने विचारों की झलक दिखनी चाहिए, आपको लगना चाहिए कि वह आपकी बात मानता है, आपको लगना चाहिए कि वह आपके अलावा किसी और से प्यार नहीं करता, लेकिन यह प्रेम नहीं है, यह एक रिश्ता है| [embed]https://youtu.be/nowznlxcUR0[/embed] रिश्ते में कई तरह के बंधन होते हैं, रिश्ते में मर्यादा होती है, रिश्ते में अपेक्षाएं होती है, रिश्ते में समझौता होता है, रिश्ते में भी प्रेम घटित हो सकता है, लेकिन उस स्थिति तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को बहुत ज्यादा खुला हुआ होना पड़ेगा, बहुत ज्यादा उन्मुक्त होना पड़ेगा, विचारों, मर्यादाओं, परंपराओं की सीमाओं को लांघना पड़ेगा, इतना विशाल ह्रदय किसी रिश्ते में विकसित कर लेना आसान बात नहीं है| जिस दिन व्यक्ति सही मायने में प्रेम पूर्ण हो जाता है, उस दिन उसके रिश्ते भी बहुत आसान हो जाते हैं| क्योंकि तब वह अपने रिश्ते में बंधे व्यक्ति को स्वतंत्र कर देता है, खुला छोड़ देता है, तब उसे उस ख़ास रिश्ते से बंधे हुए व्यक्ति के विपरीत विचार खलते नहीं हैं, उसे समर्पण की चाह नहीं होती, तब इस बात की भी परवाह नहीं होती कि उसका साथी उसके अलावा किसी और के प्रेम के बंधन में भी बंध सकता है, क्योंकि उस वक्त वह सिर्फ प्रेम करता है और प्रेम करने वाले को प्रेम पाने की भी आकांक्षा नहीं रह जाती| जब प्रेम पाने की आकांक्षा नहीं रहती तो फिर किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार के बंधन में रखने की भी इच्छा नहीं रहती| हम सब मूल रूप से उसी प्रेम की प्राप्ति की तलाश करते हैं, क्योंकि सामान्य प्यार हमें वह तृप्त नहीं देता जो हमें प्रेम से मिल सकती है, बचपन में प्रेम का शुद्ध प्रवाह रहता है, एक बच्चा निश्चल प्रेम से भरा हुआ होता है, लेकिन धीरे-धीरे उसका प्रेम स्वार्थ भरे प्यार में बदलता चला जाता है, जिसमें कई तरह की शर्ते होती है, प्रेम से पूरी दुनिया बंधी हुई है| जैसे इस धरती में मौजूद समुद्र, पहाड़, वन, व्यक्ति, पदार्थ सब उसके प्रेम रूपी गुरुत्वाकर्षण से बंधे हुए हैं|यदि धरती अपने प्रेम के बल से सभी को नहीं खींचती तो सब न जाने उड़ते हुए कहां पहुंच जाते| धरती अपने आसपास प्रेम का ऐसा बल निर्मित करती है, जिसके अंदर जो भी है वह उसके करीब ही रहना चाहेगा| जब भी हम प्रेम को शरीर के स्तर पर देखने की कोशिश करेंगे, तो वह हल्का होता चला जाएगा और प्यार में बदल जाएगा | जब भी हम प्यार में शरीर के स्तर से ऊपर जाने की कोशिश करेंगे तो प्यार बढ़ते बढ़ते प्रेम में तब्दील हो जाएगा| हमें किसी को अपना बनाना है लेकिन किसी के ऊपर अपना राज  नहीं चलाना, मालिक नहीं बनना है| जैसे हम जमीन के मालिक बनना चाहते हैं वैसे ही हमारी इच्छा किसी के ऊपर सर्वाधिकार की होती है| और जब जब हम किसी के ऊपर अधिकार जमाने की कोशिश करते हैं तो व्यक्ति हमसे दूर भागने लगता है| क्योंकि हर व्यक्ति में मौजूद आत्मा स्वतंत्रता की पक्षधर होती है, कोई भी किसी का गुलाम नहीं बनना चाहता| प्यार तब असफल हो जाता है जब प्यार में दूसरे को पराधीन करने का भाव आ जाता है| प्यार में जलन होती है, प्यार में इगो होता है, प्यार में टकराव होता है, प्यार का धागा बहुत कच्चा होता है, प्यार की सीमाएं बहुत सीमित होती है, लेकिन जब “प्रेम” (True love) घटित होता है तो सीमाएं खत्म हो जाती है, अटूट बंधन  आ जाता है जो बंधन होते हुए भी मुक्ति की तरह मालूम पड़ता है ज्यादातर प्रेमी प्रेमिकाएं,पति-पत्नी प्यार के मामले में खाली हाथ रह जाते हैं, क्योंकि उनके रिश्ते में प्यार भी नहीं बचता प्रेम तो बहुत दूर की बात है| वह प्यार से भी नीचे गिरकर ऐसे रिश्ते में तब्दील हो जाता है जिसमें सिर्फ  टकराहट होती है| जब हम असहमति का सम्मान करना छोड़ देते हैं, किसी और  के विचारों और भावनाओं को महत्व देना छोड़ देते हैं, उस व्यक्ति को अपने अनुसार चलाने की कोशिश करते हैं, जब भी हम दूसरों का समर्पण चाहते हैं तब हम  प्यार की भी बलि दे देते हैं| Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.