नीतीश कुमार क्यों कहलाते हैं पलटूराम, अपने राजनीतिक करियर में कब-कब पाला बदला?


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स्टोरी हाइलाइट्स

नीतीश कुमार ने बिहार में खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है जिनकी पार्टी ने कभी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं किया, फिर भी उन्होंने सबसे लंबे समय तक बिहार पर राज किया..!!

नीतीश कुमार ने पिछले चुनावों के बाद पहले तो RJD के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन फिर ये साझेदारी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी और पलटूराम ने एनडीए के समर्थन से नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ भाजपा के सम्राट चौधरी ने भी शपथ ली। बिहार की राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले नीतीश कुमार ने कई बार अपने फैसले से लोगों को चौंका दिया। उन्होंने एक बार फिर आज़ादी पार्टी से अलग होकर एनडीए में शामिल होने का फैसला किया और शाम को एनडीए के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

आइए जानते हैं नीतीश ने कब-कब पाला बदला..

पिछले तीन दशकों से बिहार की राजनीति नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। दोनों नेताओं ने 1974 के बिहार छात्र आंदोलन के बाद राजनीति में प्रवेश किया था।

बिहार में एक बार फिर NDA की सरकार बनने जा रह है.। वहीं नीतिश कुमार 10वीं बार सीएम पद की शपथ भी लेंगें। इससे पहले भी नीतीश बाबू नौ बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं। इससे पहले भी सत्ता में बदलाव हुआ था। एनडीए के समर्थन से नीतीश कुमार ने 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 

लालू और नीतीश के राजनीतिक संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 1990 में जब लालू यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनने में मदद की थी। राजनीति में रिश्तों के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और इन दोनों नेताओं के साथ भी ऐसा ही हुआ।

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव 1977 में सांसद बने, जबकि नीतीश कुमार 1985 में पहली बार विधायक बने। लालू केंद्रीय राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं। हालाँकि, नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी है।

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को "पलटू राम" के नाम से जाना जाता है। बिहार की राजनीति में "पलटू राम" के नाम से मशहूर नीतीश, भाजपा और राजद के बीच समन्वय में एक प्रमुख व्यक्ति रहे हैं।

नीतीश कुमार ने बिहार में खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है, जिनकी पार्टी ने कभी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं किया, लेकिन उन्होंने सबसे लंबे समय तक बिहार पर शासन किया है।

नीतीश ने 1970 के दशक में बिहार राज्य छात्र संघ के सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया और बाद में जनता पार्टी में शामिल हो गए। वे पहली बार 1985 में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और कई कार्यकालों तक सेवा की। नीतीश कुमार 2005 से 2014 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे और राज्य के बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया।

नीतीश कुमार 2005 से 2014 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 2015 के चुनावों से पहले, नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की राजद, कांग्रेस और अन्य स्थानीय दलों के साथ महागठबंधन बनाया और जीत हासिल की। हालाँकि, दो साल के भीतर ही उन्होंने यह महागठबंधन तोड़ दिया।

नीतीश ने एक बार फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और छठी बार मुख्यमंत्री बने। 2020 में, उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, उनकी पार्टी को भाजपा से कम सीटें मिलीं।

2022 में, नीतीश ने फिर से भाजपा से नाता तोड़ लिया और लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और राजद के तेजस्वी यादव के साथ मिलकर नई सरकार बनाई। इसके बाद से उन्होंने फिर से भाजपा से हाथ मिला लिया। इस बार का चुनाव भी उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा और अब प्रदेश में एनडीए की सरकार बनने जा रही है।