हमारा समाज संस्कार एवं धर्म विहीन  क्यों होता जा रहा है??


स्टोरी हाइलाइट्स

यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है, निश्चित ही आज हमारा समाज संस्कार एवं धर्म के वास्तविक ज्ञान  से हीन होता जा रहा है। शिक्षा के नाम पर सिर्फ अज्ञान परोसा जा रहा है। जो व्यक्ति संस्कृत से स्नातक एवं परास्नातक की डिग्री प्राप्त करते हैं ,उन्हें अभिज्ञानशाकुंतलम् , किरातार्जुनीयम् आदि उपन्यास तो पढ़ाये जाते हैं किंतु जो संस्कृत का मूल ज्ञान है-- वेद ,उपनिषद ,षड्दर्शन ,तंत्र शास्त्र जिनमें विशेष रूप से ब्रह्मविद्या , यज्ञ विज्ञान ,आयुर्विज्ञान ,ज्योतिष विज्ञान एवं पदार्थ विज्ञान का गूढ़ रहस्य समझाया गया है । ऐसे महत्वपूर्ण ज्ञान से शिक्षार्थियों को हमेशा दूर रखा जाता है । सनातन धर्म का जो विज्ञान आज हमें ढोंग पाखंड आडंबर दिखाई देने लगा है उसके पीछे हमारी यही धोखेबाज कमजोर शिक्षा नीति है। देश अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्त हो गया किंतु वामियों एवं कामियों की कुंठित मानसिकता ने अभी भी इसके संपूर्ण तंत्र को जकड़ रखा है । हमारी शिक्षा पद्धति इतनी अज्ञानता पूर्ण ,इतनी कमजोर है कि हम अपने पैर स्वयं काट रहे हैं ।न जाने कौन से मूर्खों को पाठ्यक्रम तय करने के लिए बिठा रखा है! जिस संस्कृत को गूंगों की, मूर्खों की भाषा वर्तमान में समझा जाता है । आज पाश्चात्य देश उस संस्कृत का महत्व स्वीकार करने लगे हैं। संपूर्ण विश्व में संस्कृत ही एकमात्र पूर्ण विज्ञान युक्त भाषा है जिसका प्रत्येक शब्द नियमों से बंधा हुआ है। वर्तमान समय में पाश्चात्य जगत को सभी भाषाओं की जननी संस्कृत का महत्व समझ में आ चुका है। कोई भी बड़ा रिसर्च निकल कर जब सामने आता है तो एक ही बात सामने आती है ,यह बात वेदों में लिखी हुई है ।यदि वास्तविक अर्थ में संस्कृत का ज्ञान दिया जाए तो संस्कृत सबसे अधिक रोजगार देने वाली भाषा बन जाएगी ,इसमें कोई संशय नहीं । जो ज्ञान दिया जाना चाहिए उस ज्ञान को छिपा लिया जाता है । अभिज्ञान शाकुंतलम् के माध्यम से शकुंतला की जंघावों  की, कमर की, स्तनों की ,बड़े  ही अश्लील तरीके से व्याख्या करके दिखाया जाता है कि यह है हमारी संस्कृति का ज्ञान ।वाह रे !  धर्म द्रोहीयों, पाखंडीयों  ,कपट्टियों आज तो देश स्वतंत्र हो चुका है किंतु तुम्हारी मानसिकता आज भी गुलाम  अंग्रेजों एवं मुस्लिमों की गुलाम है।यदि नहीं होती तो यह पाठ्यक्रम कभी का बदल चुका होता ।संस्कृत पढ़ाने के नाम पर अश्लील महाकाव्य को तो पढ़ा रहे हो किंतु संस्कृत का वह महानतम ज्ञान जो नर को नारायण बना सकता है । कहांँ  सिखाते हो? कहां प्रैक्टिकल करवाते हो योग विज्ञान का संस्कृत के छात्रों को? कहां प्रैक्टिकल करवाते हो यज्ञ विज्ञान का संस्कृत के छात्रों को? कहां प्रैक्टिकल करवाते हो ज्योतिष शास्त्र का संस्कृत के छात्रों को ? कहां  प्रैक्टिकल करवाते हो आयुर्विज्ञान का संस्कृत के छात्रों को ?नहीं करवाते !आखिरकार हम चाहते क्या हैं ? यही कि सदियों तक हमारी पीढ़ियां अज्ञान के अंधकार में घीरी रहे !! हमारे पतन का कोई और कारण नहीं , हमारे पतन का हम स्वयं ही कारण है ।हम वास्तविक ज्ञान को छुपा कर रखना चाहते हैं और अज्ञानता को पूजना चाहते हैं ।कैसे समाज आगे जाएगा ? बहुत बड़ा प्रश्न है यह! यदि संस्कृत से जितने छात्र स्नातक की डिग्री प्राप्त करते हैं ।यदि उन्हें संस्कृत का वास्तविक ज्ञान दिया जाए तो वे बेरोजगार होकर नहीं  डोलेंगे बल्कि समाज को एक नई दिशा धारा की ओर ले कर जाएंगे किंतु वे स्वयं ही संस्कृत पढ़ने के बाद बिल्कुल अज्ञानी बने  रहते हैं क्योंकि उन्हें संस्कृत का वास्तविक ज्ञान दिया ही नहीं जाता। मेरे इस देश के पाठ्यक्रम निर्धारकों को शत-शत प्रणाम है। जिनकी वजह से मेरा संपूर्ण देश अज्ञानता के अंधकार में घिरा हुआ है ।डूब मरो  पाखंडीयों। यदि तुम मर जाओगे तो यह देश बच जाएगा । इस देश की महान संस्कृति बच जाएगी। इस देश का गौरव एवं आत्मसम्मान बच जाएगा। इसलिए चुल्लू भर पानी में जल्दी डूब मरो। शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। देश को स्वतंत्र करवाने के लिए असंख्य वीर सपूतों ने बलिदान दिया था । थोड़ा बलिदान तुम भी दे दो कपटियों ताकि सही शिक्षा नीति लागू हो कर देश को अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाया जा सके और यदि डूबकर नहीं मर सकते तो  रावण दहन के साथ अपने मस्तिष्क में जो मूर्खता का आवरण छाया हुआ है जो अज्ञानता का आवरण छाया हुआ है ।उसे जलाकर नष्ट कर दो ताकि मां भारती अपने गौरव की नई गाथा लिख सकें। -- रामेश्वर हिंदू