चोरी का कलंक भी सहा कृष्ण ने----------------श्रीकृष्णार्पणमस्तु-20


स्टोरी हाइलाइट्स

चोरी का कलंक भी सहा कृष्ण ने----------------श्रीकृष्णार्पणमस्तु-20 krishna-also-endured-the-stigma-of-theft-sri-krishnanarpanamastu-20

चोरी का कलंक भी सहा कृष्ण ने                                                     श्रीकृष्णार्पणमस्तु-20 रमेश तिवारी  श्रीकृष्ण के जीवन में उन पर बहुत से अनर्गल आरोप लगे। किंतु वे कभी विचलित नहीं हुए। कोई व्यक्ति ऐसे ही महान और भगवान नहीं बन जाता। कृष्ण भी इसके अपवाद नहीं थे। किंतु जब उन पर चोरी का आरोप लगा तो श्याम ने उस आरोप को न केवल निरस्त ही किया वरन उसके निदान से एक नया इतिहास भी लिख दिया। आज हम इसी रोचक घटना पर बात करेंगे। यह घटना द्वारिका की है। सत्राजित नामक एक बहुत प्रभावी सरदार थे, यादवों के। वे महान सूर्यभक्त थे। सूर्य के प्रति निष्ठा, और भक्ति के कारण सूर्य से उन्हें एक ऐसा स्यमंतक रत्न प्राप्त हुआ, जो पारस मणि की भांति लौह खंड को भी स्वर्ण में परिवर्तित कर देता था। विधि पूर्वक मंत्र घोष से पूजन स्थल पर रखे लौह के स्वर्ण बनने से,वे द्वारिका के सर्वाधिक धनवान व्यक्ति हो गये। उनकी प्रतिष्ठा का सम्मान होता था। वे यादव शासन में एक प्रभावी मंत्री भी थे। प्रसेन नामक उनका एक जुड़वां भाई था। प्रसेन भी बहुत प्रभावी था। बात उन दिनों की है, जब यादव गण मथुरा से द्वारिका आये ही थे। यद्यपि वे खूब सम्पन्न होते जा रहे थे, किंतु जरासंध के आक्रमणों से नष्ट हुई मथुरा में राजा उग्रसेन के संरक्षण में रह रहे कुछ यादवों की आर्थिक स्थिति अब भी दयनीय थी। कृष्ण ने मथुरा, और उग्रसेन की आर्थिक सहायता करने की दृष्टि से अमात्य विपृथु और अनुज उद्धव को साथ लेकर सत्राजित से भेंट की। कृष्ण ने सत्राजित से विनम्र आग्रह किया। क्यों न हम उग्रसेन की आर्थिक सहायता करें। सत्राजित थोडा़ अचम्भित से हुए। कृष्ण ने कहा...! आप कुछ दिन के लिये अपनी मणि उग्रसेन को दे दें। सत्राजित यह सुनकर असहज हो गये। बोले - कृष्ण यह भी कोई बात हुई। यह मणि मेरी निजी सम्पत्ति है। आपको इसको मांगने का कोई अधिकार नहीं है। अंततः कृष्ण को निराश होकर वापस लौटना पडा़। और अब...! एक दिन प्रसेन अपने कुछ मित्रों के साथ आखेट खेलने निकला। भाई से मांगकर वह मूल्यवान मणि भी कंठ में डाल कर ले गया। अपने मित्रों सहित ऋक्षवान के भीषण वन में जा पहुंचा। आखेट प्रारंभ हो गया। इसी मध्य एक जंगली सूअर भागता दिखाई दिया। प्रसेन ने सुअर पर वाण का प्रहार कर दिया। घायल सुअर घने जंगल में भागने लगा। प्रसेन भी उसके पीछे हो लिया। वह अपने मित्रों से बहुत आगे निकल चुका था। किसी अनहोनी से अनजान प्रसेन पर झाडी़ में छिपे एक सिंह ने आक्रमण कर दिया। और उसके टुकडे़ टुकडे़ कर चीथड़े कर डाले। सब मित्र भाग खड़े हुए। शव को वन पशुओं ने चीथ डाला। निषधराज जाम्बवान के दल के लोग वहां से निकल रहे थे। जिनको वह शव दिखा। कंठ में सूर्य की किरणों सी चमकती मणि ने सभी की आंखों को चौंधिया दिया। अनुचरों ने वह मूल्यवान मणि प्रसेन के शव से निकाल कर स्वामी निषधराज जाम्बवान को दे दी। कुछ दिनों बाद द्वारिका में प्रसेन की गुमशुदगी का समाचार फैलने लगा। और यह भी कि मणि भी उसके पास थी। अब अफवाहों के पर लग गये। हल्ला मच गया कि मणि के लिए कृष्ण ने ही प्रसेन को गायब करा दिया है या फिर मरवा दिया है। अरे...! कृष्ण तो मणि चाहता ही था। कुछ लोग इस भ्रम को सच भी मानने लगे। हां, कृष्ण ने अवश्य ही ऐसा किया होगा। लोक निंदा से दुखी कृष्ण ने अब एक कठोर निर्णय लिया। ऋक्षवान क्षेत्र में जाने का। प्रमुख योद्धाओं को साथ लेकर वे घने वन में घुस गये। कई दिनों की ढूंढ तलाश के बाद कृष्ण को प्रसून के शव के अवशिष्ठ पडे़ मिल गये। अब कृष्ण को वास्तविक घटना की जानकारी मिल चुकी थी। ऋक्षवान ने कृष्ण को किसी भी प्रकार के सहयोग करने से इनकार कर दिया। तब कृष्ण और ऋक्षवान के बीच कई दिनों तक युद्ध भी हुआ। कृष्ण ने ऋक्षवान को बांध लिया । परन्तु वह अपने समीप रखी मणि का स्थान बताने को तैयार नहीं था। अंतत: उसने एक शर्त पर कृष्ण को मणि देने की बात मानी..! कृष्ण ..! तुम मेरी एकमात्र पुत्री जाम्बवती से विवाह कर लो तो मैं तुमको वह मणि दे दूंगा। विवश होकर कृष्ण को यह शर्त स्वीकारना पडी़। कृष्ण सत्राजित की उस मणि और जाम्बवती को लेकर द्वारिका लौट आये। यादवों की सभा आयोजित की गयी। सत्राजित ने शर्मिन्दगी महसूस की। भरी सभा में क्षमा मांगी। फिर कृष्ण ने उन्हें सम्मान सहित मणि सौंप दी। सत्राजित को अपनी मणि मिल गयी। परन्तु कृष्ण को भी रुक्मणी के पश्चात् जाम्बवती रूपी रत्न प्राप्त हो गया। कृष्ण जैसे उच्च रक्त के किसी चंद्रवंशीय क्षत्रिय द्वारा किसी निषध (आदिवासी) युवती से विवाह संबंध जोडऩे की तत्कालीन आर्यावर्त की यह महत्वपूर्ण घटना है। हालाकि इसके पहले सूर्यवंशियों में ऐसे अनेक विवाह हो चुके थे। कृष्ण के आगे शर्मिन्दा सत्राजित ने भी अपनी सुन्दर पुत्री, सत्यभामा का विवाह कृष्ण से करने की घोषणा करदी। अब कृष्ण की, तीन रुक्मिणी,जाम्बवती और सत्यभामा,पत्नियां हो चुकी थीं। परन्तु अब क्या हुआ मणि के स्वामी सत्राजित के साथ। सत्राजित की हत्या..! वह भी कृष्ण से सत्राजित का संबंध जुड़ते ही। अरे अब यह नया बखेडा़ क्यों..? सत्यभामा जैसी सौन्दर्य शील कन्या के शक्ति सम्पन्न पिता सत्राजित को किसने मारा। क्या इसके पीछे कृष्ण के प्रति किसी का वैमनस्य था अथवा सत्यभामा के सौन्दर्य का आकर्षण था। आज की कथा यहीं तक। तब तक विदा। धन्यवाद।