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अभियान और हकीकत बताते नकली बातें

सार

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर नकली खाद पर अंकुश लगाने के लिए अभियान चलाने की अपेक्षा की है..!!

janmat

विस्तार

    हर मानसून में बुआई के लिए किसानों के सामने उर्वरक का संकट होता है. कालाबाजारी होती है. बढ़ती मांग को देखते हुए नकली खाद भी बिकने लगता है. केंद्र सरकार में हर कृषि मंत्री राज्यों को ऐसे डायरेक्शन देने की औपचारिकता निभाता है. वर्तमान कृषि मंत्री राज्य में सोलह साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं.अगर राज्य प्रशासन नकली खाद बीज पर नियंत्रण करने में सक्षम होते तो नकली खाद बीज की समस्या इतना विकराल रूप नहीं ले पाती. 

    नकली और मिलावटी खाद्य सामग्री आज सबसे बड़ी त्रासदी बनी हुई है. नकलीपन आदत का हिस्सा बन चुका है. कृषि मंत्री के पत्र पर राज्य सरकार अगर सक्रिय होती हैं और किसानों को नकली खाद और बीज से निजात मिलने में कुछ प्रतिशत भी सफलता मिलती है, तो निश्चित ही ऐसे प्रयास सराहनीय ही कहे जाएंगे.

    अगर मध्य प्रदेश का ही उदाहरण लिया जाए तो केंद्रीय कृषि मंत्री राज्य में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं. लगभग हर साल राज्य में खाद का संकट बना हुआ था. यहां तक कि कई बार तो किसानों को रात-रातभर खाद के लिए भटकना पड़ा था. यहां तक कि कई बार कानून व्यवस्था की स्थिति भी निर्मित हो जाती थी. कागजों पर अभियान हर साल चलते थे. लेकिन आज तक ना नकली खाद और ना ही बीज का व्यवसाय रुक सका है. धड़ल्ले से यह सब व्यवसाय चल रहे हैं. अब तो यह स्वीकार ही कर लिया गया है, कि बाजार में शुद्ध चीज मिल ही नहीं सकती.

    नकलीपन हमारी असलियत बन गई है. अब तो ऐसा लगने लगा है, कि राजनीति समाज में ऐसी कंडीशनिंग कर रही है, कि असली के बदले नकली को प्रमुखता मिल गई है. कर्महीनता बढ़ाई जा रही है. लोभ विकसित किया जा रहा है. मुफ्तखोरी राजनीति का कारगर हथियार बन गया है. हमको भले ही ऐसा लगता है, कि यह सब तो चलता है, लेकिन ऐसी ही आदतों के कारण नकलीपन बढ़ता है. जब बिना मेहनत के राजनीति सब कुछ देने लगती है, तो इंसान ही अपनी असलियत भूल जाता है. वह नकली जीवन ही जीने लगता है.

    कौन सी वस्तु है, जिसकी असली होने की कोई भी व्यवस्था गारंटी ले सकती है. सबसे ज्यादा नकली तो इंसान खुद बन गया है. जो वह सोचता है, वह प्रकट नहीं करता. जो प्रकट करता है, वह कभी करता नहीं है. राजनीति में ना कहने की परंपरा नहीं है और हां करते-करते भी कोई काम पूरा किया नहीं जाता है. इसे हम असली कहेंगे या नकली.
    जो काम नहीं हो सकता है उसको ना कहना आना ही चाहिए, लेकिन राजनीति में ना कहने वाला राजनेता नकार दिया जाता है. उस राजनेता को अच्छा माना जाता है जो काम भले नहीं हो, लेकिन किसी को भी मना नहीं करे. राजनीति में काम करने वाले लोग यह जानते हैं कि जिस भी काम के लिए वह पत्र लिख रहे हैं, या फोन कर रहे हैं वह होने योग्य ही नहीं है, लेकिन फिर भी नेतागिरी के लिए बात आगे बढ़ा दी जाती है. ना करने का उनमें साहस नहीं है.

    खाद बीज नकली नहीं मिल रहा है, आईएएस भी नकली पकड़े जाते हैं. जयपुर में तो जज भी नकली पकड़े गए थे. आधार कार्ड नकली, जाति प्रमाण पत्र नकली और यहां तक कि पासपोर्ट भी नकली पाए जाते हैं. भारत एक ऐसा मुल्क है जहां नागरिकता का कोई रजिस्टर ही नहीं है. यहां की राजनीति एनआरसी का इसलिए विरोध करती ,है कि जो लोग उसमें छूटेंगे वह उसके वोटर हो सकते हैं. इलेक्शन कमीशन बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में ऐसे मतदाता पकड़ रहा है, जो विदेशी नागरिक हैं और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वोटर लिस्ट में शामिल हो गए.

    शिक्षा की नकली डिग्री के किस्से आए दिन उछलते हैं. ऐसी घटनाएं आती है जहां खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट के मामले पकड़े जाते हैं. मिलावट ऐसी जो जानलेवा साबित होती है. सरकारों द्वारा बनाए गए पुल टूट जाते हैं. डैम बारिश में बह जाते हैं. ऐसी समाज में कितनी घटनाएं सामने आती हैं, जो यह बताती हैं, कि इनको बनाने वाले खड़े असली बुनियाद पर हैं, लेकिन उनकी असलियत नकली जैसी है. 

    कहां-कहां देखेंगे हर जगह नकली मिल जाएंगे. अतिक्रमण भी नकली हो रहे हैं. जो अतिक्रमण कर रहे हैं, उनके बड़े-बड़े मकान हैं. वह तो अतिक्रमण कर झुग्गी बनाकर बेचने का व्यवसाय कर रहे हैं. राजनीति में ज्यादा दखल नकली सेक्टर का ही होता है. नकली बातें होती हैं. नकली वायदे होते हैं.

    समाज में लोभ को बढ़ाने का काम राजनीति कर रही है. लोभ जब आदत और संस्कार बन जाता है, तो फिर असली निकली दिखाई नहीं पड़ता. केवल कमाई दिखाई पड़ती है. नकली व्यवसाय करने वाले लोग कभी सोचते भी नहीं कि इससे किसी की लाइफ बर्बाद हो सकती है. नकली दवाओं का व्यापार सर्व विदित है.

    अधिकतम और न्यूनतम मूल्य का जो बाजार है. यह भी असली से काफी दूर दिखता है. केवल दवाओं की बात की जाए तो अलग-अलग दुकानदार एक ही दवा पर अलग-अलग कमीशन देने को तैयार हैं. वही दवा सरकारी अस्पतालों में जिस रेट पर खरीदी जाती है, वह बाजार रेट से कई गुना ज्यादा होती है.

    खेती-किसानी के सामने तो नकली खाद ,बीज की समस्या दशकों से चली आ रही है. चुनाव में काले धन की जो अर्थव्यवस्था है, उसमें कालाबाजारी करने वाला ही सहयोगी हो सकता है. ईमानदारी से व्यवसाय करने वाला तो काले धन की जरूरत को पूरा नहीं कर सकता है. संकट केवल नकली खाद , बीज तक सीमित नहीं है. संकट नकली इंसान तक पहुंच गया है.

    आत्मा पर स्वार्थ ने अतिक्रमण कर लिया है. यह ऐसी बुनियादी समस्याएं हैं, जो आसानी से समाधान नहीं हो सकतीं. इसके लिए ऐसे संस्कार विकसित करने पड़ेंगे, जो देश में असली व्यक्तित्व मजबूती से खड़ा कर सकें. जो ऐसे हों जो सच को सच कहने का साहस दिखा सकें. 

    अगर केवल औपचारिकता के लिए बात कहना है, अभियान चलाने की अपेक्षा करना है, तो फिर तो हमेशा से यही चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा. किसानों को नकली खाद बीज का संकट बना हुआ था और आगे भी बना रहेगा. नकलीपन से कमाई करने वाला अचानक खत्म तो नहीं हो जाएगा.