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एआई क्या कर सकती है?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 11 Jul

सार

एआई संपन्न माहौल में आयोजित बैठक में किसी प्रश्न का उत्तर बैठक के चालू रहते ही मिल सकता है जबकि पहले इसमें कई दिनों का समय भी लग सकता था। यह उस समय और प्रासंगिक हो जाता है जब शासन में वरिष्ठ पदों पर और निचले स्तर पर बैठे लोगों के बीच का बौद्धिक अंतर बहुत अधिक होता है। इससे सरकारी व्यवस्था में सूचनाओं और विश्लेषण का प्रवाह सीमित हो जाता है..!!

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विस्तार

इसमें दो राय नहीं कि शासन जटिल गतिविधियों का समुच्चय है जिसके लिए सीमित जानकारी और संसाधन उपलब्ध होते हैं। इन गतिविधियों के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक सूचनाओं, मान्यताओं और प्राथमिकताओं, नैतिकताओं और सदाचार, लोकतांत्रिक मानकों और जनमत निर्माण की भूमिका, इतिहास, क्षमताओं और संसाधन तथा अन्य कारकों को एकजुट करना होता है। तथ्य यह है कि भूराजनीति नीतिगत माहौल को अस्थिर बना रही है। यह बात हालात को और जटिल बना रही है। ऐसे हालात में हमें सहज प्रश्न करने की आवश्यकता है: एआई क्या कर सकती है और क्या यह सोचना उचित है कि शासन के लिए इसका इस्तेमाल किस प्रकार किया जाए?

पहले सवाल का उत्तर आसान है यानी इस प्रश्न का कि एआई सरकार की सहायता कैसे कर सकती है? कई विचार सामने आए हैं। इनमें कल्याण योजनाओं को बेहतर लक्षित करना, बेहतर निगरानी, बेहतर नीतिगत डिजाइन, व्यवहारात्मक बदलाव संबंधी पहल, परिदृश्य और विकल्पों का बेहतर विश्लेषण, स्वचालित ऑडिट और तत्काल  निगरानी शामिल हैं। इसके साथ ही नागरिकों का फीडबैक भी तत्काल हासिल कर उसका विश्लेषण किया जा सकता है। इसके साथ ही शिकायतों के निवारण में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

इनमें से हर काम के लिए ढेर सारी सूचनाओं और उनके विश्लेषण की जरूरत होगी। पहले जहां ऐसा करने में महीनों का समय लग सकता था वहीं अब इसे कुछ ही दिनों में किया जा सकता है क्योंकि आईटी आधारित डेटा विश्लेषण के लिए उपलब्ध है। वहीं एआई इस काम को कुछ ही मिनटों में या उससे भी कम समय में कर सकती है।

एआई संपन्न माहौल में आयोजित बैठक में किसी प्रश्न का उत्तर बैठक के चालू रहते ही मिल सकता है जबकि पहले इसमें कई दिनों का समय भी लग सकता था। यह उस समय और प्रासंगिक हो जाता है जब शासन में वरिष्ठ पदों पर और निचले स्तर पर बैठे लोगों के बीच का बौद्धिक अंतर बहुत अधिक होता है। इससे सरकारी व्यवस्था में सूचनाओं और विश्लेषण का प्रवाह सीमित हो जाता है। एआई निचले स्तर के अधिकारियों को सक्षम बना सकती है और ऊपरी स्तर के लोगों की क्षमताएं और बढ़ा सकती है। ऐसे में निर्णय तेजी से लिए जा सकते हैं। एआई से लाभ लेने के लिए अलग तरह की निर्णय प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो एआई बहुत मददगार हो सकती है लेकिन केवल तभी जब सरकार के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया में बदलाव आए।

इतना ही नहीं भारत के पास एआई के मामले में दूसरे देशों से उलट एक विशिष्ट अवसर है। आरंभ में समावेशन की दृष्टि से जो डिजिटल सार्वजनिक ढांचा पेश किया गया, वह देश के अधिकांश राज्यों और यहां तक कि स्थानीय स्तर तक भी फैल चुका है। चूंकि एआई गहन जानकारी होने पर बेहतर काम करती है इसलिए व्यापक और लगातार बढ़ती डिजिटल अधोसंरचना सरकार की निर्णय प्रक्रिया में इसका लाभ लेने का अतिरिक्त अवसर मुहैया कराती है।

इसमें दो राय नहीं कि एआई की भी अपनी चुनौतियां हैं और वे बरकरार रहेंगी। तीन प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं: मति भ्रम, अंतर्निहित तर्क संबंधी पूर्वग्रह और अविकसित सदाचारी और नैतिक मूल्य। मति भ्रम का अर्थ है जब एआई जानकारियां स्वयं तैयार करती हैं और अक्सर वे कम सूचना उपलब्ध होने पर ऐसा करती हैं। चूंकि सभी एआई मॉडल्स को पहले से उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर प्रशिक्षित करना होता है इसलिए हमारे तमाम पूर्वग्रह जिनमें लिंग और धर्म से संबंधित पूर्वग्रह शामिल हैं, एआई टूल्स में भी आ जाते हैं। इसके अलावा ऐसे टूल्स में सही या गलत की अवधारणा का अभाव होता है। मुझे विश्वास है कि इन्हें लेकर सुरक्षा उपाय सामने आएंगे, कुछ तो आ भी चुके हैं लेकिन वे बस फौरी राहत देंगे और इन्हें विभिन्न संस्कृतियों, पेशेवर अनुभवों और निर्णय लेने वाले लोग इस्तेमाल में लाएंगे।