राजनीति के थानेदार राहुल गांधी इलेक्शन कमीशन पर वोट की चोरी का आरोप लगा रहे हैं. बिहार में मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ़ चक्का जाम आंदोलन में महाराष्ट्र में वोट की चोरी का उदाहरण दिया..!!
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई के एक दिन पहले संवैधानिक संस्था के विरुद्ध चक्का जाम की गलत परंपरा लोकतांत्रिक मान्यताओं के साथ कितना मेल खाती है. महाराष्ट्र की मतदाता सूची को लेकर राहुल गांधी लगातार विवाद खड़े कर रहे हैं. यहां तक कि, कांग्रेस की ओर से हाईकोर्ट में भी मामला ले जाया गया था लेकिन उनके आरोप टिक नहीं पाए.
बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे जारी रखने पर अपनी सहमति दी है. मामले में सुनवाई चलती रहेगी. चुनाव आयोग जब अपनी प्रक्रिया निर्धारित अवधि में पूरी करने पर अडिग है, हर पात्र मतदाता को उसमें शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, गैर भारतीय किसी भी व्यक्ति को मतदाता सूची से बाहर करने के लिए आयोग सुनिश्चित कर रहा है तो फिर किसी भी राजनीतिक दल के विरोध का कारण समझ नहीं आता?
सुप्रीम कोर्ट में केवल बिहार के लिए याचिकाएं नहीं लगाई गई है बल्कि बंगाल और दूसरे राज्यों के भी याचिकाकर्ता इसके खिलाफ गए हैं. जहां अभी प्रक्रिया चालू नहीं हुई है, वह इस आशंका पर कि, उनके राज्य में भी यह होगा, इसलिए इस प्रक्रिया को पहले से ही रुकवा देना बेहतर है. मतदाता सूची पुनरीक्षण चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के सहयोग से ही करता है.
निर्धारित प्रक्रिया में पहले ड्राफ्ट लिस्ट आती है. फिर आपत्तियां आती है. उनका निराकरण होता है. यह पारदर्शी ढंग से राजनीतिक दलों के सामने होता है. फिर भी इसका विरोध समझ के बाहर है. आधार कार्ड को पहचान दस्तावेजों में नहीं शामिल करने के कारण विरोध की बात, तब सही कही जा सकती हैं जबकी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ऐसी स्थितियां निर्मित होती है कि, बड़ी संख्या में मतदाता छूट जाते हैं.
छूटे हुए मतदाताओं का अलग से इंटेंसिव वेरीफिकेशन आधार कार्ड के साथ अन्य दस्तावेजों और स्थानीय पहचान के साथ की जा सकती है. सारी याचिकाएं राजनीतिक दलों ने लगाई है. किसी मतदाता ने कोई याचिका नहीं लगाई. यह विरोध ठीक उसी प्रकार से हो रहा है जैसे एनआरसी और सीएए का विरोध किया गया था. इससे तो ऐसा ही लगता है कि वोट की चोरी अब तक कैसे हो रही थी? और जब उनको हटाने की बात हो रही है तो फिर विरोध की आवाज़ कौन उठा रहा है?
पुनरीक्षण होने दिया जाए. जो लोग छूट जाएंगे उनकी बात उसके बाद करना न्यायसंगत होगा. किसी भी पात्र का नाम मतदाता सूची से नहीं हटना चाहिए लेकिन कोई भी अपात्र उसमें होना भी लोकतंत्र के लिए घातक है.
राहुल गांधी जब वोट की चोरी की बात लोकतंत्र में कर ही रहे हैं तो फिर उन्हें उसमें राजनीति की चोरी से भी दो-चार होना पड़ेगा. लोकतंत्र, लोकसेवा के साथ सहयोग से नेतृत्व विकसित होने की प्रक्रिया है. जो नेतृत्व स्वाभविक रूप से विकसित होने के बदले परिवार वादी राजनीति के कारण पैराशूट से उतारे जाते हैं, वह राजनीति लोकतंत्र की चोरी कही जाएगी.
कांग्रेस को ही देखा जाए तो राहुल गांधी जब पार्टी की राजनीति में आए थे, आते ही उन्हें संसद का टिकट मिला. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. अब तो लोकसभा में विपक्ष के नेता भी परिवार के कारण ही बनने में सफल हुए हैं. क्या कांग्रेस के भीतर इतनी तेज गति से कोई भी नेता राजनीति में विकास कर पाया है.
कितने राजनेता कांग्रेस में ही दशकों तक आम लोगों के साथ सहयोग और काम करते रहे. ऐसे नेताओं की चप्पलें घिस गईं लेकिन उन्हें पार्षद का भी चुनाव लड़ने का पार्टी में मौका नहीं मिल पाया. राहुल गांधी ऐसे नेता है, जिन्हें बिना किसी राजनीतिक अनुभव और संघर्ष के सब कुछ केवल इसलिए मिल गया कि, वह गांधी परिवार से आते हैं? यह तो लोकतंत्र की बुनियाद के खिलाफ है.
केवल राहुल गांधी नहीं है. जिन भी क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद की राजनीति है वहां लोकतंत्र की चोरी हो रही है. बिहार में तेजस्वी यादव, मुख्यमंत्री के उम्मीदवार क्या लोकतंत्र के स्वाभाविक संघर्ष के कारण बन पाए हैं? उन्हें इसलिए यह अवसर मिल रहा है क्योंकि वह लालू प्रसाद यादव के पुत्र हैं. यह तो राजनीति में लोकतंत्र की चोरी का ही नमूना है.
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था तब उनके परिवार के ही दशकों तक जन सेवा में जुटे लोगों को दरकिनार किया गया था. शायद इसीलिए परिवारवादी राजनीति के जितने भी युवा वर्तमान में सक्रिय दिखाई पड़ते हैं, उनकी सोच और शैली में लोकतंत्र परिलक्षित नहीं होता. उनके आरोपों में भी लोकतंत्र की बुनियाद दिखाई नहीं पड़ती.
वोटों की चोरी जैसा शब्द लोकतंत्र में तपा तपाया कोई भी परिपक्व नेता नहीं बोल सकता है. यह वही कह सकता है, जिसके बैक ऑफिस में पेडमैन राजनीतिक आइडिया देते हैं. राजनीतिक डायलॉग देते हैं. संविधान की लाल किताब की राजनीति का आईडिया देते हैं. ऐसे युवा नेताओं को वर्तमान लोकतंत्र इसीलिए नहीं सुहाता है, क्योंकि वह तो सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं.
इन लोगों ने तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि, लोकतंत्र उन्हें कभी सड़कों पर आने के लिए मजबूर करेगा. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की गोद में पले बढ़े परिवारवादी राजनेता सही मायने में लोकतंत्र को चुराकर दूसरों के हक को कुचलकर अपने परिवार की ताकत से मुकाम हासिल किया है.
परिपक्व होते लोकतंत्र के फैसले जिनको भी चोरी लगते हैं. जो भी अपने को लोकतंत्र का थानेदार समझते हैं. उन्हें आरोपों की नहीं, जनसेवा की राजनीति से कुछ भी हासिल हो सकता है. देश में परिवारवादी राजनीति कमजोर हो रही है तो इसका मतलब है कि, लोकतंत्र राजनीति की चोरी से ऊपर उठने की कोशिश कर रहा है.
राहुल डायलाग डिलीवरी में अपने को साबित कर सकते हैं लेकिन लोकतंत्र को अपने भविष्य की पहचान है. कभी राजनीति को जहर बताने वाले राहुल गांधी, सत्ता की छटपटाहट में अब बिना प्रमाण के वोट की चोरी तक का आरोप लगाकर लगा रहे हैं. यह तो बिलकुल ऐसा हो रहा है जैसे कि ‘ घटने लगा जल तो मछलियों में होने लगी हलचल’.