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सिद्धांत और सुविधा सियासी नीति

सार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सार्वजनिक जीवन में 75 साल के बाद रिटायरमेंट की  बात क्या कह दी नई राजनीतिक बहस छिड़ गई. वह स्वयं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस उम्र के करीब हैं..!!

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विस्तार

    मोदी विरोधियों को तो जैसे खुशी का मौका मिल गया, कि अगर बीजेपी ने रिटायरमेंट की नीति चली तो फिर मोदीबम से मुक्ति मिल जाएगी. यह बात सही है, कि भाजपा ने इस आयु सीमा के कई वरिष्ठ नेताओं को सक्रिय राजनीति से दूर मार्गदर्शक मंडल में भेजा. कई नेताओं के लोकसभा, विधानसभा के टिकट काटे गए. कई नेताओं को केवल इसलिए मंत्री नहीं बनाया गया, क्योंकि वह यह आयु सीमा पार कर चुके हैं. 

    यह कोई बीजेपी का संविधान नहीं है. बीजेपी की पार्टी विधान में ऐसी कोई समय सीमा रिटायरमेंट के लिए निर्धारित नहीं है. आयु सीमा का गणित पार्टी की रणनीति हो सकती है. यह कोई निर्धारित नीति नहीं है. इसलिए मोदीबम से मुक्ति की कल्पना करने वाले राजनेताओं को निराश होना पड़ सकता है.

     सियासत में रिटायरमेंट पार्टी और पर्सन पर निर्भर करता है. अब तक का इतिहास तो ऐसा नहीं है, कि कोई भी सक्सेसफुल राजनेता रिटायरमेंट लेता हो. कांग्रेस में तो उनके वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष ही 82 साल के ऊपर हैं. सोनिया गांधी भी इस आयु सीमा से अधिक आयु की हैं. शरद पवार भी 84 साल के ऊपर हैं. लोकतंत्र में पब्लिक एनवायरमेंट सियासी रिटायरमेंट तय करता है.

    मोदी के मामले में तो यह और ज्यादा साफ है, क्योंकि वह पहले राजनेता हैं जो प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे. जनादेश उन्हें प्रधानमंत्री के लिए मिला था. तब से लेकर लगातार मोदी के नाम पर ही बीजेपी को जनादेश मिल रहा है. जब कोई नेता पार्टी के लिए इतना लाभकारी होता है, तो पार्टी उसकी उम्र की चिंता नहीं करती. जब तक मोदी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और सक्षम रहेंगे, तब तक पार्टी उनके नेतृत्व में जन विश्वास को भुनाने की कोशिश करेगी. 

     मोदी रिकॉर्ड मेन हैं, अगर उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू के पीएम कार्यकाल का रिकॉर्ड तोड़ना है, तो फिर उन्हें अगले लोकसभा चुनाव के बाद भी पीएम पद ग्रहण करना पड़ेगा. मोदी सामान्य नेताओं से अलग हैं, यह तो देश समझ चुका है. वह स्वेच्छा से पद छोड़ने का निर्णय करके राजनीति में एक आदर्श स्थापित करने के लिए आगे बढ़े, तो बीजेपी के लिए संकट खड़ा हो सकता है.

    बीजेपी ने 75 साल की उम्र के आधार पर जहां कुछ नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजा. वहीं कुछ नेताओं को अपवाद स्वरूप दायित्व भी सौंपे हैं. एक प्रमुख नाम कर्नाटक के बी. एस. येदियुरप्पा का है. लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में ही ऐसे दो नेताओं को संसद के चुनाव में उतार गया जिनकी उम्र इस आयु सीमा से ऊपर थी. इनमें नागेंद्र सिंह और जगन्नाथ सिंह रघुवंशी शामिल हैं. इसलिए जो लोग मोदी के रिटायरमेंट की कल्पना में खुश हो रहे हैं, उन्हें कुछ हासिल होने की संभावना नहीं दिख रही है. 

    मोदी का एजेंडा अभी अनफिनिश्ड है. क्षणभंगुर जीवन में बहुत कल्पना जायज नहीं होती, लेकिन फिर भी सियासी प्लानिंग तो चलती है. 

    मोहन भागवत का इशारा भले ही नरेंद्र मोदी की तरफ ना हो, उन्होंने एक सिद्धांत के तहत स्वाभाविक लहजे में यह बात कही हो, लेकिन सियासत तो बाल में खाल खोज लेती है. मोदी की सियासत पहले दिन से ही कुछ खास लोगों को नहीं सुहा रही है. ऐसी ताकतों की राजनीति मोदी विरोध पर ही टिकी हुई है.

    अगर राजनीति को सेवा या व्यवसाय के रूप में देखा जाए, तब भी इसमें रिटायरमेंट जैसा कोई बंधन नहीं है. भारतीय संस्कृति जरूर 75 साल के बाद वानप्रस्थ की धारणा पर केंद्रित है. कोई भी इंसान जो भी दायित्व परफॉर्म कर रहा है, वह लीला जैसा दृश्य है. मंच पर परदा गिरने के साथ ही दृश्य समाप्त हो जाता है.

    हमारी संस्कृति में वानप्रस्थ की कल्पना जीवन के उद्देश्यों के साथ जुड़ी है. संस्कृति के संकेत व्यक्ति के लिए होते हैं. अभी तक जो सियासी प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है, उसमें तो रिटायरमेंट की सोच ही बेमानी लगती है. सत्ता का जीवन हो तो फिर तो रिटायरमेंट सजा जैसी हो जाती है. जब तक जनादेश साथ हो सत्ता पर काबिज हो, तब तक रिटायरमेंट इस तरीके से अकल्पनीय है, जैसे सुख के क्षणों में ईश्वर की भी याद नहीं आती.

    सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से रिटायरमेंट सुख शांति की मानसिक अवस्था के लिए जरूरी है. अनुभव की परिपक्वता रिटायरमेंट को सुखद बनाती है. सियासत भी सामाजिक जीवन से अलग नहीं है. रिटायरमेंट देश और समाज से ज्यादा व्यक्ति के लिए जरूरी है. सियासत में अगर आयु की अधिकतम सीमा वैधानिक रूप से निर्धारित की जाती है, तो यह भारतीय संस्कृति के अनुरूप होगा.

    राजनेता भी लोक सेवक होते हैं और शासकीय लोक सेवकों के लिए रिटायरमेंट की आयु सीमा निर्धारित है. जिस दिन सेवा में प्रवेश करते हैं, उसी दिन ही उन्हें इस तिथि का भान होता है. प्रकृति तो प्रवाह है .यह प्रवाह ना एक व्यक्ति से चलता है और ना किसी व्यक्ति के लिए रुकता है.

    प्रकृति और संस्कृति पर ही खतरे बढ़ रहे हैं. इनकी रक्षा के लिए इनके नियमों को सरकार और सियासत में अगर अपनाने की कोशिश की जाएगी तो इसका प्रवाह भी नेचुरल हो सकेगा. व्यक्ति की उम्र से ज्यादा पदों के अधिकतम कार्यकाल को अगर समय की सीमा में बांधा जाएगा, तो ज्यादा उपयुक्त होगा. हेल्थ इंडिकेटर्स यही बताते हैं, कि हमारी औसत आयु बढ़ रही है. सीनियर सिटीजन की उम्र भी बढ़ना चाहिए. 

    अमेरिका रूस चीन में जो नेता उन देशों का नेतृत्व कर रहे हैं. मोदी की उम्र तो उनसे कम है. भारत के मोदीबम की दुनिया में एटम बम जैसी धमक है. मोदी विरोधी भारत में उनकी उम्र पर राजनीतिक बहस कर रहे हैं और पाकिस्तान में मोदी के कार्यकाल का डर दिखाई पड़ रहा है.

    अब तक ना संविधान में राजनेताओं के रिटायरमेंट का कोई प्रावधान है और ना ही पार्टियों के विधान में इसका कोई उल्लेख है. इसके बावजूद रिटायरमेंट कुछ नया करने को प्रेरित करता है. 

    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उम्र तो अभी बहुत कम है, लेकिन फिर भी वह वेद-उपनिषद के अध्ययन और जैविक खेती को अपना रिटायरमेंट प्लान बता रहे है. मतलब जीवन में रिटायरमेंट कितना ज़रूरी है. ऐसे किसी विधान पर विचार अगर होगा तो ये मोदी जैसा रिकॉर्डमेन ही कर सकता है.