कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया है. यह कांग्रेसी हाईकमान के उस नाटक के कारण खड़ा हुआ है जिसमें दो नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को ढाई-ढाई साल के लिए बांट दिया गया था..!!
अब वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ढाई साल पूरे कर रहे हैं, लेकिन कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं है. डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार के समर्थक हाईकमान से अपना कमिटमेंट पूरा करने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस ने बीजेपी को एक्सपोज कर बेहतर गवर्नेंस के लिए सरकार बनाई थी लेकिन वहां ठीक उल्टा हो रहा है. अब तो हालात ऐसे बन गए हैं कि राज्य की सरकार का चलना भी बाधा दौड़ के साथ ही हो सकेगा.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से ही आते हैं. ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले पर जब उनसे पूछा गया, तब वह कहते हैं कि, यह मसला हाईकमान के ध्यान में है और इस पर वो ही निर्णय करेगा. इससे एक नया विवाद शुरू हो गया कि, राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा दूसरा कौन हाई कमान है? इससे यह बात भी एक्सपोज हो गई कि उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी परिवार ने बनाया
गांधी परिवार में भी सोनिया गांधी उम्र के कारण अब लगभग पार्टी गतिविधियों से दूर हो गई हैं. अब तो कांग्रेस हाईकमान राहुल प्रियंका भाई-बहन ही बने हुए हैं. ढाई-ढाई साल का फार्मूला कांग्रेस ने कई राज्यों में अपनाया. पहले जिसको ढाई साल का मौका मिला, उसने दूसरे के लिए जगह नहीं छोड़ी. फिर जो बगावत हुयी, उसके कारण पार्टी की सरकारों को चुनाव में पराजित होना पड़ा.
राजस्थान में अशोक गहलोत, सचिन पायलट और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल तथा टीएस सिंहदेव के बीच में भी ढाई ढाई साल वाला ही विवाद था, जिसका खामियाजा राज्य हितों को उठाना पड़ा. गांधी परिवार पार्टी की समस्याओं के समाधान के लिए किसी नीतिगत लाइन पर चलने की बजाय ऐसे समझौते करता है, जो ना संवैधानिक होते हैं और ना ही पार्टी के हित में.
मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के बीच में भी गांधी परिवार ने ऐसा समझौता कराया था कि,पार्टी अध्यक्ष का पद वह छोड़ देंगे और वह सिंधिया गुट को मिलेगा. यह कमिटमेंट भी जमीन पर नहीं उतर पाया और कांग्रेस को अपनी सरकार गंवानी पड़ी.
कर्नाटक में भी ऐसा ही माहौल दिखाई पड़ रहा है. अब तो डी.के. शिवकुमार के समर्थक विधायक सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने लगे हैं कि, उनके नेता को यदि सीएम नहीं बनाया गया तो पार्टी को इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा.
संविधान में डिप्टी सीएम का कोई पद नहीं है. सीएम के नेतृत्व में मंत्री परिषद होती है. डिप्टी सीएम का ट्रेडीशन भाजपा द्वारा यह जातिगत समीकरण साधने की दृष्टि से की गई. बीजेपी ने ऐसा कभी नहीं किया कि, किन्हीं भी दो नेताओं के बीच ढाई-ढाई साल सीएम कुर्सी को बांटा हो. कांग्रेस ने तो जहां भी डिप्टी सीएम बनाया वहां ढाई-ढाई साल का फंडा है. पद के बंटवारे को ही निर्णय का आधार बनाया जो आगे चलकर फ्लॉप साबित हुआ.
ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्री पद बांटने का हाईकमान का निर्णय संसदीय व्यवस्था का मखौल है. मुख्यमंत्री का चयन विधायकों द्वारा किया जाता है. अगर विधायक दल ने नेता के चयन का मामला हाईकमान पर भी छोड़ा है, तो ढाई-ढाई साल की पद्धति संवैधानिक नहीं कहीं जा सकती. यह तो सौदेबाजी हुई. जहां सरकारों में सीएम पद ही सौदेबाजी से शुरू हुई है, वहां तो पूरी सरकार सौदेबाजी पर ही सिमट जाएगी.
एक बार जो मुख्यमंत्री बन गया वह फिर सरकारी सिस्टम को एटीएम के रूप में हाई कमान के लिए उपयोग करता है. जब एटीएम फुल होता है तो फिर अपने कमिटमेंट से हाईकमान पलट जाता है. उसका टारगेट पार्टी नहीं बल्कि पर्सनल गेन होता है.
राजनीतिक दलों में हाईकमान पद्धति एक सच्चाई बनी हुई है. बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर बाकी देश की सारी पार्टियाँ परिवारवादी पार्टियों के रूप में काम कर रही हैं. इसलिए उन दलों में परिवार ही हाईकमान के रूप में काम करता है.
बीजेपी और वामपंथी दलों में संसदीय बोर्ड को हाईकमान कहा जाता है लेकिन इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता कि सभी दलों में निर्णय कुछ खास स्तर पर लिए जाते हैं. अगर कोई राजनीतिक दल केंद्र की सत्ता पर काबिज है, तो फिर तो प्रधानमंत्री ही मूल रूप से हाईकमान की भूमिका निभाता है.
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वहां तो गांधी परिवार ही हाईकमान है. लोगों को भ्रम में डालने के लिए भले ही निर्वाचन की प्रक्रिया करके किसी को भी अध्यक्ष बना दिया जाए लेकिन निर्णय तो गांधी परिवार के हाथ में ही रहता है. वह भी आजकल भाई-बहन पर सिमट गया है.
कांग्रेस हाई कमान ने कर्नाटक में ढाई-ढाई साल का यदि असंसदीय कमिटमेंट किया है तो उसको पूरा किया जाना चाहिए. वैसे भी कर्नाटक में जब कांग्रेस सत्ता में आई थी उस समय पार्टी की कमान डी.के. शिवकुमार के हाथ में थी. कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि, इस फार्मूले की सौदेबाजी किस कीमत पर की गई है? इस सौदेबाजी को पूरा करने के लिए कर्नाटक करप्शन का शिकार हो गया है.
जिस कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ करप्शन के आरोप पर अपना अभियान चलाया था, वह सरकार में आने के बाद खुद ही इतनी भ्रष्टाचार घिर गयी कि, भाजपा सरकार के एक भी आरोपों की ना तो जांच करा पाई ना ही किसी नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकी.
ढाई-ढाई साल की सौदेबाजी अगर राहुल गांधी का संगठन सृजन का आधार है तो फिर कांग्रेस का विकार कोई भी दूर नहीं कर सकता. विकार को ही लाभ का प्रकार मानने वाली कांग्रेस की नीति पदों को बेचने खरीदने की नीति बन गई है. यह लोकतंत्र के लिए घातक है.