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लाभ के बावजूद चुनौतियाँ बरकरार

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 29 Jun

सार

मार्च तिमाही में सूचीबद्ध सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ 1,55,704 करोड़ रुपये रहा जो साल भर पहले की तुलना में 4.45 प्रतिशत अधिक था..!!

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विस्तार

जनवरी-मार्च 2025 में निजी और सरकारी बैंकों का प्रदर्शन कैसा रहा? इस दौरान सात निजी और एक सरकारी बैंक को छोड़कर सभी का परिचालन लाभ बढ़ा। मार्च तिमाही में सूचीबद्ध सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ 1,55,704 करोड़ रुपये रहा जो साल भर पहले की तुलना में 4.45 प्रतिशत अधिक था। इसमें छोटे फाइनैंस बैंक शामिल नहीं हैं। उधर निजी बैंकों का परिचालन लाभ 2.9 फीसदी कम हुआ। सभी सरकारी बैंकों के मामले में यह 12.1 प्रतिशत बढ़ा। शुद्ध मुनाफे में भी ऐसा ही रुझान देखा जा सकता है। 

प्रोविजनिंग और आकस्मिक व्यय के लिए फंड अलग करने के बाद सूचीबद्ध बैंकों का कुल शुद्ध लाभ मार्च तिमाही में सालाना आधार पर 4.35 फीसदी बढ़ा और 93,936 करोड़ रुपये हो गया। यहां भी सात निजी बैंकों और एक सरकारी बैंक के शुद्ध मुनाफे में गिरावट देखने को मिली। हालांकि यह गिरावट उतनी नहीं थी जितनी परिचालन मुनाफे में देखी गई। निजी बैंकों का शुद्ध मुनाफा 3.4 फीसदी कम हुआ जबकि सरकारी बैंकों का 12.9 फीसदी बढ़ा।

कम से कम 12 बैंकों के प्रोविजनिंग और आकस्मिक व्यय फंड में गिरावट आई। अतीत के उलट अब उद्योग को फंसे हुए कर्ज से निपटने के लिए भारी भरकम प्रावधान की जरूरत नहीं है क्योंकि परिसंपत्तियों की गुणवत्ता खराब नहीं हो रही है। सूचीबद्ध बैंकों ने मार्च 2024 के 34,691 करोड़ रुपये की तुलना में मार्च 2025 में 31,367 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जो करीब 10 फीसदी की गिरावट है। निजी बैंकों ने इस अवधि में जहां प्रोविजनिंग पर व्यय तथा आकस्मिक व्यय में 33 फीसदी की कमी की वहीं सरकारी बैंकों की प्रोविजनिंग 24 फीसदी बढ़ी।

विशुद्ध संदर्भ में सालाना आधार पर इन बैंकों का सकल फंसा हुआ कर्ज यानी एनपीए 11.2 फीसदी कम होकर 4.17 लाख करोड़ रुपये रह गया। सरकारी बैंकों ने 16.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की जबकि निजी बैंकों का एनपीए 2.5 फीसदी बढ़ा। प्रोविजनिंग के बाद मार्च 2025 में शुद्ध एनपीए घटकर 90,517 करोड़ रुपये रहा जो मार्च 2024 के 1.04 लाख करोड़ रुपये से 12.75 फीसदी कम था। सरकारी बैंकों के शुद्ध एनपीए में 23.3 फीसदी की गिरावट आई जबकि निजी बैंकों में यह 11.7 फीसदी बढ़ा।

रिजर्व बैंक द्वारा परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा शुरू करने के बाद मार्च 2008 में देश के बैंकों ने 10.39 लाख करोड़ रुपये का एनपीए और 4.02 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध एनपीए दर्ज किया था जो एक रिकॉर्ड है।

प्रतिशत में देखें तो केवल पांच बैंकों (सभी निजी) के सकल एनपीए में इजाफा हुआ। इंडसइंड का सकल एनपीए 1.92 फीसदी से बढ़कर 3.13 फीसदी पहुंच गया। बंधन बैंक लिमिटेड का सकल एनपीए मार्च तिमाही में 4.71 फीसदी रहा। यह इकलौता बैंक है जिसका सकल एनपीए 4 फीसदी से अधिक है। इंडसइंड बैंक के अलावा चार निजी तथा छह सरकारी बैंकों का सकल एनपीए 3 फीसदी से अधिक और 4 फीसदी से कम रहा। सरकारी बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक का सकल एनपीए 3.95 फीसदी था।

शुद्ध एनपीए की बात करें तो छह बैंकों (सभी निजी) ने इजाफा दर्ज किया। केवल 4 का शुद्ध एनपीए 1 फीसदी से अधिक था। वे हैं: कर्णाटका बैंक (1.31 फीसदी), बंधन बैंक (1.28 फीसदी), सिटी यूनियन बैंक लिमिटेड (1.25 फीसदी) और डीसीबी बैंक लिमिटेड (1.12 फीसदी)।

जिन बैंकों का शुद्ध एनपीए 0.5 फीसदी से कम है उनमें आईडीबीआई बैंक लिमिटेड (0.15 फीसदी), बैंक ऑफ महाराष्ट्र (0.18 फीसदी), इंडियन बैंक (0.19 फीसदी), करुर वैश्य बैंक लिमिटेड (0.2 फीसदी), आरबीएल बैंक लिमिटेड (0.29 फीसदी), येस बैंक लिमिटेड (0.3 फीसदी), कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड (0.31 फीसदी), ऐक्सिस बैंक लिमिटेड (0.33 फीसदी), इंडियन ओवरसीज बैंक (0.37 फीसदी), पंजाब नैशनल बैंक (0.4 फीसदी), आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड (0.42 फीसदी), एचडीएफसी बैंक लिमिटेड (0.43 फीसदी), फेडरल बैंक लिमिटेड (0.44 फीसदी) और भारतीय स्टेट बैंक (0.47 फीसदी) शामिल हैं। यूको बैंक का शुद्ध एनपीए 0.5 फीसदी रहा।

रिजर्व बैंक की दिसंबर 2024 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए सितंबर 2023 में 2.6 फीसदी के साथ 12 वर्ष के निचले स्तर पर आ गया था। इस दौरान शुद्ध एनपीए 0.6 फीसदी के करीब रहा। रिपोर्ट ने यह भी कहा कि बैंकों का प्रोविजनिंग कवरेज अनुपात सितंबर 2024 में सुधरकर 77 फीसदी रहा क्योंकि सरकारी बैंकों ने इसमें सक्रियता दिखाई।

कम एनपीए और उच्च प्रोविजनिंग अनुपात व्यवस्था की मजबूती दिखाता है। किसी बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) उसके मुनाफे की कुंजी है। साल-दर-साल बहुत कम बैंक इसमें इजाफा कर पाए हैं। जिन बैंकों ने यह मार्जिन बढ़ाया है उनमें येस बैंक, पंजाब ऐंड सिंध बैंक और धनलक्ष्मी बैंक के अलावा जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक लिमिटेड, इंडिया ओवरसीज बैंक, इंडियन बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और आईसीआईसीआई बैंक शामिल हैं।

बंधन बैंक का एनआईएम सर्वाधिक 6.7 फीसदी है। वहीं आईडीएफसी फर्स्ट का 5.95 फीसदी, कोटक महिंद्रा बैंक का 4.97 फीसदी, आरबीएल बैंक का 4.89 फीसदी, आईसीआईसीआई बैंक का 4.41 फीसदी, करुर वैश्य बैंक का 4.05 फीसदी, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 4.01 फीसदी और आईडीबीआई बैंक का 4 फीसदी रहा। कम लागत वाले चालू और बचत खाते (कासा) बैंकों के मुनाफे के लिए अहम हैं। वित्त वर्ष 25 में येस बैंक, फेडरल बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को छोड़कर हर बैंक का कासा नीचे गया।

बैंक ऑफ महाराष्ट्र का कासा सर्वाधिक रहा उसके बाद सेंट्रल बैंक, जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक, आईडीबीआई बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, ऐक्सिस बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक का नंबर आता है। इन सभी का कासा 40 फीसदी से अधिक रहा। अन्य सभी बैंकों का कासा 40 फीसदी से कम है। भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा में यह 39.97 फीसदी रहा जबकि बंधन बैंक और इंडसइंड बैंक ने वर्ष के दौरान कासा में सबसे तेज गिरावट देखी। कुल मिलाकर अधिकांश मानकों पर सरकारी बैंकों का प्रदर्शन निजी बैंकों से बेहतर रहा है। वित्त वर्ष 25 में उन्होंने 14 सालों में पहली बार ऋण वृद्धि के मामले में भी निजी बैंकों को पीछे छोड़ दिया।

बैंकिंग व्यवस्था ऋण वृद्धि के दबाव में है। ऐसे में अधिकांश बैंकों के लिए मुनाफा बरकरार रखना मुश्किल होगा क्योंकि मार्जिन आगे और भी अधिक दबाव में रहेगा। नीतिगत दर में 1 फीसदी की कटौती के बाद उनके पास बाहरी बेंचमार्क से जुड़ी ऋण दरों में कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन क्या वे जमा दरों में भी उतनी ही कटौती कर सकते हैं? भले ही कुछ बैंक ऐसा कर लें लेकिन पहले से मौजूद जमा राशि पर पुरानी दरें ही लागू रहेंगी। मुनाफे से इतर एनआईएम को बरकरार रखना और परिसंपत्ति गुणवत्ता पर ध्यान देना भी आगे चुनौती बना रहेगा। ये तीनों आपस में संबंधित हैं।