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पाक सेना आतंकवाद को हवा देने में जुटी

सार

पाकिस्तान में आतंकवादियों और आर्मी की एक्टिविटीज फिर से बढ़ गई हैं. ऐसा लगता है, ऑपरेशन सिंदूर में भारत द्वारा घुसकर मारने से बिलबिलाए आतंकवादी और वहां की सेना फिर कोई साजिश रचने में लगे हुए हैं..!!

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विस्तार

    जिहादी फील्ड मार्शल आसिफ मुनीर फिर से भारत के खिलाफ़ ज़हर उगल रहे हैं. जम्मू-कश्मीर  में आतंकवादियों को पॉलीटिकल डिप्लोमेटिक और मोरल समर्थन की खुली बात कर रहे हैं. वह कह रहे हैं कि भारत भले ही उन्हें आतंकवादी माने लेकिन पाकिस्तान की सेना जम्मू-कश्मीर के लिए संघर्ष करने वालों को पूरा समर्थन देगी. वह हिंदू-मुस्लिम की बात भी कर रहे हैं.

    पहलगाम के पहले भी आसिफ मुनीर ने ऐसी ही तकरीरें की थीं और अब फिर इस प्रकार की भड़काऊ बातें कर रहे हैं. आतंकवादियों के साथ उनकी साठ-गांठ साफ-साफ दिखाई पड़ रही है. आतंकी ठिकानों को फिर से निर्मित करने के लिए पाकिस्तान सरकार धन उपलब्ध करा रही है.

    वैसे तो भारत की नीति यही है, कि ऑपरेशन सिंदूर केवल स्थागित है. भारत को छेड़ा जाएगा तो फिर घुसकर मारेंगे. भारत ने वॉर अगेंस्ट टैरर के लिए न्यू नॉर्मल बना दिए हैं. आतंकी हमले को देश के खिलाफ़ युद्ध माना जाएगा. इसके साथ ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी और सेना में कोई अंतर नहीं करते हुए युद्ध लड़ा जाएगा.

    पाकिस्तान में जिस तरह का माहौल बना हुआ है, उसमें घोषित मार्शल लॉ  भले लागू नहीं हो, लेकिन फील्ड मार्शल का लॉ पूरे देश में लागू है. तख्ता पलटकर पूर्व सेना प्रमुखों की तरह राष्ट्रपति का पद हासिल करना अगर मुनीर का लक्ष्य है, तो पाकिस्तान में कोई भी उन्हें रोक नहीं सकता है.

    पाकिस्तान सेना को वहां के कट्टरपंथी अवाम के समर्थन के लिए भारत से लड़ते हुए देखना बड़ा हथियार होता है. वहां कटुता इस सीमा तक पहुंच गई है, कि उन्हें पाकिस्तान और भारत का इस्लाम भी अलग-अलग दिखता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ आसिफ मुनीर के लंच के जो भी कारण और परिस्थितियों हो, लेकिन यह उन्हें उत्साहित तो कर रहा है. 

    जैसे इजरायल में यहूदी शासन इस्लामिक कट्टरता और प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहा है, लगभग वैसी ही परिस्थितियां भारत के खिलाफ़ भी बनी हुई हैं, पाकिस्तान और बांग्लादेश इस्लामी राष्ट्र हैं. दोनों देशों में भारत के विरुद्ध कट्टरता फैलाई जा रही है, हिंदुओं के खिलाफ़ माहौल बनाया जा रहा है. चीन के साथ भी भारत के परंपरागत रूप से विवाद के मसले हैं. 

    चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों को मदद कर रहा है. ऐसी हालत में परिस्थितियां ऐसी बनी हुई हैं, कि भारत को अपने पड़ोसियों के साथ आतंकवाद के मामले में हर समय युद्ध के लिए तैयार रहने का समय आ गया है. पूरी दुनिया डबल स्टैंडर्ड पर काम कर रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान पर इसलिए हमला कर देते हैं कि वह परमाणु हथियार बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान एटम बम की खुलेआम धमकियां देता है, फिर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती. 

    इजराइल जरूर पाकिस्तान को बार-बार इशारा कर रहा है. उसके निशाने पर जरूर पाकिस्तान का इस्लामिक एटम बम हो सकता है. उसको ऐसा लगता है, कि इस्लामी आतंकवाद के मामले में हर आतंकवादी का कहीं ना कहीं गठजोड़ है. शायद इसीलिए पाकिस्तान का इस्लामी बम इजराइल के खिलाफ उपयोग हो सकता है.

    वैसे भारत और पाकिस्तान की सैन्य क्षमता की कोई तुलना ही नहीं है. ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने अपनी ताकत दुनिया को दिखाई है. भारत की राजनीतिक सत्ता भी राष्ट्रवाद के लिए सब कुछ करने को तत्पर हो सकती है. पाकिस्तान में भारत की सरकार को हिंदूवादी सरकार के रूप में प्रचारित कर इस्लामिक कट्टरता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है. भारतीय सेमा युद्ध में तो पाकिस्तान को धूल चटाती रही है. भारत जो अब तक झेलता रहा है, वह है आतंकवादी हमले.

    अगर इस बार फिर पाकिस्तान कोई आतंकवादी हमला करता है और फिर भारत अटैक करता है, तो यह युद्ध काफी बड़ा हो सकता है. भारत को अपनी सुरक्षा तैयारियों को इस तरह से चाक-चौबंद रखना है. इंटेलिजेंस को इतना सतर्क रखना है, की साजिश करके भी पाकिस्तान कोई आतंकवादी हमला भारत में अब नहीं कर पाएं. भारत ने कूटनीतिक सफलता से पाकिस्तान को काफी हद तक मुस्लिम देशों के बीच अलग-थलग कर दिया है. जो कुछ देश पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं, वह भी अपने देश के हितों को देखते हुए भविष्य में छिटक सकते हैं.

    भारत के सामने जो समस्या दिखती है, वह बाह्य इस्लामिक कट्टरता के साथ ही देश के भीतर भी ऐसी सोच का होना है, इस सोच को विस्तारित करने का काम राजनीति करती है. वक़्फ़ के नाम पर जिस तरह से चुनावी राजनीति में लाभ के लिए राजनीतिक दल प्रयास कर रहे हैं, उससे वोटो का ध्रुवीकरण और काउंटर ध्रुवीकरण खतरनाक मोड़ ले सकता है.

    वैसे भी सामान्य रूप से देश की वर्तमान सरकार को मुस्लिम समाज का वैसा भरोसा हासिल नहीं दिखता जो दूसरे समाजों का दिखाई पड़ता है.

    इजराइल जैसे यहूदी और इस्लाम धर्म के युद्ध में फंसा हुआ है, कमोवेश वैसी ही परिस्थितियों भारत और पाकिस्तान के बीच में बनती जा रही हैं. पाकिस्तान में जितने मुसलमान रहते हैं, उससे ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं. राजनीतिक कारणों से मुसलमानों में असंतोष विकसित करना कई राजनीतिक दलों का राजनीतिक हथियार बना हुआ है. इसके कारण परिस्थितियां थोड़ी असामान्य हो जाती हैं.

    भारत बाहरी ताकतों से तो निपटने में पूरी तरह से सक्षम है. लेकिन जब भीतर इस तरह की कट्टरता को बढ़ाया जाता है, तो फिर कठिनाई दिखती है. यद्यपि ऑपरेशन सिंदूर में देश के मुसलमानों ने जिस तरह पाकिस्तान के खिलाफ़ खुलकर स्टैंड लिया, मुस्लिम सांसदों ने दुनिया में जाकर जिस तरह से पाकिस्तान को एक्सपोज़ किया,  उससे यह भरोसा तो मजबूत होता है, कि पाकिस्तान की इस्लामिक कट्टरता को भारत में समर्थन नहीं मिल सकता.

    युद्ध की रणनीतियां बदल गई हैं. इस्लामिक देश आतंकवाद को अपने युद्ध नीति बनाए हुए हैं. आमने-सामने के बजाए अब कांटेक्ट लेस युद्ध होने लगे हैं.

    विश्व में भारत की बढ़ती हैसियत कुछ ताकतवर देशों को परेशान कर सकती है. भारत के विकास की तेज की गति को आतंकवाद से उलझाया नहीं जा सकता. लेकिन अगर पाकिस्तान ने हिमाक़त की तो फिर इस बार का भारत-पाक युद्ध निर्णायक हो सकता है.