इजरायल-ईरान में सीजफायर विश्व संकट को कितना कम करेगा. दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी है. दुनिया हथियार बनाने पर जुटी हुई है. मानवता की हत्या के लिए परमाणु बम का निर्माण विश्व के देश अपने वर्चस्व के विकास का पैमाना मान रहे हैं..!!
जितनी तेजी से युद्ध के लिए हथियार बनाए जा रहे हैं, उतनी तेजी से दूसरे काम नहीं हो रहे हैं. विश्व प्रगति का दावा करता है. सुपर पावर देश भी गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त हैं, लेकिन अपनी ताकत से दूसरे देश को झुकाने के लिए जुटे हुए हैं.
रूस और यूक्रेन युद्ध चलते हुए सालों निकल गए हैं. कोई हल नहीं हुआ है. भारत-पाकिस्तान तो चार दिन में ही युद्ध से बाहर आ गए थे. इजराइल और ईरान को 12 दिन लगे. अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर B2 बॉम्बर बमों से हमला कर अपनी सुप्रीमेसी साबित करने से नहीं चूका.
विश्व की कूटनीति माइट इज राइट की नीति पर आगे बढ़ रही है. प्रॉक्सी वॉर से जो देश दूसरे देशों पर हमले कर रहे थे, उनका एक्स्पोज़र हो गया है. ईरान, इजराइल ने ईरान के प्रॉक्सी वॉर को सीधे युद्ध में बदल दिया. उसे अमेरिका का साथ मिला. जो दिखता है, उससे तो यही लगता है कि ईरान को ही इस युद्ध में हार मिली है. युद्ध में नुकसान तो दोनों का होता है. इजराइल को भी नुकसान हुआ है, लेकिन इजराइल अपने लक्ष्य हासिल करने में सफल दिखाई पड़ रहा है.
सुपर पावर अमेरिका के एक्शन को ज्यादती इसलिए नहीं कोई कहता क्योंकि उसके पास ताकत है. मुस्लिम देशों ने भी ईरान का खुलकर समर्थन नहीं किया. रूस और चीन ने समर्थन जरुर किया, लेकिन लड़ाई में तो जुबानी समर्थन का बहुत मतलब नहीं है.
पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिफ मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच देकर जो भी डिप्लोमेसी की गई हो लेकिन इससे ना अमेरिका का कद बढ़ा है और ना ही पाकिस्तान का. इसे राजा और रंक के रूप में ही देखा जा सकता है. अमेरिका को ईरान पर हमले के लिए पाकिस्तान का एयर स्पेस चाहिए था. लड़ाई बढ़ने पर उनके बेस चाहिए थे. आसिफ मुनीर को अमेरिका से डॉलर चाहिए था.
पाकिस्तान को राष्ट्र की संप्रभुता का कोई सवाल ही नहीं है, उनकी सेना तो किराए पर युद्ध लड़ती है. अफगानिस्तान के समय भी पाकिस्तान की सेना ने ऐसा ही किया और इस बार भी ईरान के खिलाफ अमेरिका के सामने सरेंडर करके वही चरित्र दोहराया गया है.
जहां तक भारत का सवाल है, भारत ने ईरान और इजरायल दोनों के साथ अपनी दोस्ती को न केवल स्वीकारा है, बल्कि शांति बहाली के लिए प्रयास किया. ईरान के राष्ट्रपति ने भी भारत के प्रधानमंत्री को फोन किया और इजरायल की ओर से भी सतत संपर्क बनाए रखा गया. दोनों देशों में भारतीय नागरिकों को निकालकर लाने में आपसी सहयोग बड़ी कूटनीतिक सफलता है.
भारत का स्टैंड सही साबित हुआ है. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान को उठाना पड़ा है. मुस्लिम भाईचारे को पाकिस्तान ने तिलांजलि दी. ईरान के खिलाफ अमेरिका के सामने सरेंडर किया, जबकि ऑपरेशन सिंदूर के समय ईरान ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का ही सहयोग किया था. संघर्ष विराम के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और फील्ड मार्शल धन्यवाद देने के लिए तेहरान गए थे.
ईरान और इजरायल के बीच ना तो क्षेत्रफल में कोई तुलना है ना आबादी में कोई बराबरी है, ना सैन्य बल में कोई बराबरी है. इसके बावजूद इजराइल ने चौतरफा अपने अस्तित्व को ना केवल कायम रखा है, बल्कि डेवलपमेंट में भी इस देश ने उल्लेखनीय काम किया है.
अगर युद्ध बढ़ता तब भारत पर भी प्रभाव पड़ता. मिडिल ईस्ट में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं. कच्चा तेल भी भारत वहां से खरीदता है.
फील्ड मार्शल आसिफ मुनीर का ट्रंप को नोबेल पुरस्कार वाला दांव उल्टा पड़ गया है. पाकिस्तान मुस्लिम वर्ल्ड में भी एक्सपोज हो गया है. चीन भी पाकिस्तान से नाराज हो गया है. भारत के लिए यह अनुकूल परिस्थितियां दिखाई पड़ती हैं, जो इजरायल- ईरान को परमाणु संपन्न देश बनने के प्रयास को नष्ट करने के लिए युद्ध शुरू कर सकता है, वह इजरायल आगे पीछे परमाणु संपन्न पाकिस्तान की क्षमता को भी नष्ट करने का प्रयास करेगा. ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते इस युद्ध में ना केवल खराब हुए हैं, बल्कि ईरान के स्वाभिमान को चोट लगी है, जिसका दुष्परिणाम पाकिस्तान को भुगतना पड़ेगा.
पाकिस्तान के सामने आंतरिक चुनौतियां, बाहरी चुनौतियों से भी ज्यादा हैं. तालिबान उनके खिलाफ हैं. अब ईरान खिलाफ हो जाएगा. भारत के साथ तो उनका दुश्मनी वाला व्यवहार है. अमेरिका के साथ पाकिस्तान की नजदीकी के कारण चीन भी उनसे दूरी बनाएगा. ऐसे हालत में अगर पाकिस्तान के आंतरिक विद्रोह को हवा देने में इन देशों की ओर से प्रॉक्सी सहयोग दिया गया तो फिर पाकिस्तान के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा.
भारत ने सिंधु जल संधि निलंबित कर रखी है. पाकिस्तान में इसको लेकर हाहाकार मचा हुआ है, लेकिन भारत के साथ उनकी बातचीत की कोई संभावना नहीं है. सारी परिस्थितियां पाकिस्तान के लिए विस्फोटक बनी हुई हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ प्यार का इजहार कर विश्व कूटनीति में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए अवसर दे दिया है. दुनिया के हर आतंकवादी घटना में पाकिस्तान का हाथ निकलता है. अमेरिका इसी हाथ को थमना चाहता है.
भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था दुनिया के सुपर पावर देशों को चुनौती लग रही है. भारत में आतंक के विरुद्ध न्यू नॉर्मल को अब दुनिया को स्वीकार ही करना पड़ेगा. विश्व को मानवता की जीत के लिए एकजुट होना जरूरी है. किसी देश की जीत-हार का नैरेटिव उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना मानवता की जीत.
भारत तो बुद्ध का देश है. शांति उसका डीएनए है. राष्ट्रवाद उसकी ताकत है. मेड इन इंडिया उसका नया शास्त्र है. उसका सामर्थ्य नया नैरेटिव है.
डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार देने की अनुशंसा वैसे ही है, जैसे झूठ-झूठ से कह रहा है, कि सच बोलो. बम बरसाने वालों को नोबेल शांति पुरस्कार मिलेगा, तो फिर अशांति का नोबेल किसको मिलेगा?