इन केबल की क्षमता हर दो से ढाई साल में दोगुनी हो जाती है, हर साल इनमें 70,000 से एक लाख किलोमीटर का इजाफा होता है और इन पर 10 अरब डॉलर का निवेश होता है..!!
इसमें कोई संदेह नहीं कि समुद्र के भीतर बिछी केबल (सबमरीन केबल) इस दौर की मूक जीवनरेखाएं हैं, जो वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक का संचालन करने में अहम भूमिका निभाती हैं और हमारी अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक विकास को गति देती हैं। इन केबल की क्षमता हर दो से ढाई साल में दोगुनी हो जाती है। हर साल इनमें 70,000 से एक लाख किलोमीटर का इजाफा होता है और इन पर 10 अरब डॉलर का निवेश होता है।
वर्ष 2024 तक, दुनिया भर में 550 से ज्यादा केबल सिस्टम बिछे हुए थे जिनकी कुल लंबाई 14 लाख किलोमीटर है यानी ये इतनी लंबी हैं कि इनसे पृथ्वी को 35 बार घेरा जा सकता है। भारत में डेटा इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में उसके लिए भी समुद्र के भीतर केबल नेटवर्क का बढ़ना बहुत जरूरी है। अभी तक, निजी कंपनियों के बदौलत इस उद्योग में तेज वृद्धि हुई है लेकिन यह काम थोड़ा बेतरतीब रहा है। लूजोन स्ट्रेट और मलक्का स्ट्रेट जैसे कुछ खास जगहों पर इन केबलों का बेहद घना क्लस्टर है, जिससे उनके टूटने का खतरा बना हुआ है। इन सबमरीन केबल के बेहतर प्रबंधन के लिए कोई औपचारिक नियम-कानून नहीं है, जिससे सुरक्षा संबंधी दिक्कतें पैदा होने पर भविष्य में गंभीर रणनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
एक रणनीतिक बदलाव यह परिभाषित कर रहा है कि देश समुद्र के नीचे केबलों को किस प्रकार अहमियत दे रहे हैं। दरअसल, अब इन्हें सिर्फ वाणिज्यिक बुनियादी ढांचा ही नहीं बल्कि देश की संप्रभुता और वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने वाली चीज मानी जा रही है। अमेरिका का लंबे समय से इस क्षेत्र में दबदबा रहा है, लेकिन चीन अपनी ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ योजना का इस्तेमाल कर, प्रमुख संचार मार्गों पर अपना नियंत्रण करने में तेजी से आगे बढ़ रहा है। पाकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाकर, चीन के साथ मिलकर ‘डिजिटल सिल्क रोड’ में अपनी भूमिका तैयार कर रहा है।
चीन द्वारा बनाई गई केबल को लेकर बढ़ती चिंता के कारण, अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान ‘स्वच्छ केबल’ समूह बनाने पर जोर दे रहे हैं। भूराजनीतिक दबाव के कारण, दक्षिण पूर्व एशिया-पश्चिम एशिया-पश्चिमी यूरोप 6 केबल परियोजना से चीन की कंपनियों के हटने के बाद, उन्होंने यूरोप-पश्चिम एशिया-एशिया परियोजना के तहत फिर से मिलकर काम शुरू किया। चाइना टेलीकॉम, चाइना मोबाइल और चाइना यूनिकॉम के नेतृत्व में, चीन अब हॉन्गकॉन्ग, हेन्नान, सिंगापुर, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र और फ्रांस को जोड़ रहा है जिसके लिए हुआवे मरीन टेक्नॉलजीज भी मुख्य ठेकेदार कंपनी के रूप में मौजूद है।
दुर्घटना से होने वाले नुकसान के अलावा, सबमरीन केबलों को क्षतिग्रस्त करने का एक बड़ा खतरा है, क्योंकि इसे आसानी से अंजाम दिया जा सकता है। हाल ही में, चीन के एक जहाज शुनशिंग-39 ने ताइवान के कीलंग हार्बर के पास समुद्र के नीचे की केबलों को काट दिया जो चीन की सीधे-सीधे युद्ध घोषित किए बिना किसी को परेशान करने की नीति के तहत ही केबल हमलों के इस्तेमाल का संकेत है।
चीन केबल बिछाने, केबल शिप बनाने और दोहरे उपयोग वाले समुद्री बुनियादी ढांचा तैयार करने में अपनी भूमिका तेजी से बढ़ा रहा है। पश्चिमी देशों और जापान की कंपनियां अब भी केबल मरम्मत में आगे हैं, लेकिन चीन अपनी क्षमता को बढ़ा रहा है और चार से छह मरम्मत करने वाले जहाजों का संचालन कर रहा है, जिनमें से कम से कम एक का संबंध, पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीन की सेना से बताया जाता है।
इसके विपरीत, भारत के पास ऐसा केवल एक निजी जहाज है और यह बड़े पैमाने पर विदेशी जहाजों पर निर्भर है। यह निश्चित रूप से कमजोर स्थिति को दर्शाता है खासतौर पर संकट के दौरान, क्योंकि इससे देरी का खतरा बना रहता है। भारत को अपनी केबल मरम्मत क्षमता बढ़ाने पर विचार करना चाहिए और यह संभवतः किसी सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड के माध्यम से होना चाहिए। इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि चीन के जहाजों से सावधान रहने वाले क्षेत्रीय भागीदारों को भी सहयोग मिलेगा।
सबमरीन केबल से जानकारी चुराने के खतरे से निपटने के लिए, महत्त्वपूर्ण रास्तों की लगातार निगरानी करने के साथ ही समुद्र तल के नीचे आधुनिक क्षमताएं विकसित करना जरूरी है, जिनमें सेंसर और मानवरहित जहाज शामिल हैं। आईडेक्स पहल के तहत एक दर्जन से अधिक ऐसी तकनीकें खरीदी जा रही हैं और इन्हें तेजी से पूरा किया जाना चाहिए।