चिंता की बात यह है कि अभी भी अर्थव्यवस्था में नकली करेंसी की मौजूदगी बनी हुई है, केंद्रीय बैंक आरबीआई के गवर्नर ने एक संसदीय समिति को जानकारी दी है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान कुल छह करोड़ से ज्यादा नोटों में से पांच सौ रुपये के 1.18 लाख नोट नकली पाए गए हैं..!!
यूँ तो भारत पूरी दुनिया में डिजिटल लेनदेन के मामले में अग्रणी बना हुआ है और यहां दुनिया भर में होने वाले लगभग आधे रियल टाइम लेन-देन डिजिटल भुगतान के जरिये ही होते हैं। हालांकि, नकदी रहित अर्थव्यवस्था का सरकारी महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के मार्ग में अभी तमाम बाधाएं विद्यमान हैं।
चिंता की बात यह है कि अभी भी अर्थव्यवस्था में नकली करेंसी की मौजूदगी बनी हुई है। केंद्रीय बैंक आरबीआई के गवर्नर ने एक संसदीय समिति को जानकारी दी है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान कुल छह करोड़ से ज्यादा नोटों में से पांच सौ रुपये के 1.18 लाख नोट नकली पाए गए हैं। केंद्रीय बैंक की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि इन नोटों की संख्या में एक साल में 37 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। जो यह दर्शाता है कि कालाबाजारी करने वाले राष्ट्र विरोधी तत्व देश में मुद्रा की मांग का गलत फायदा उठा रहे हैं।
विडंबना यह है कि राजस्व खुफिया निदेशालय द्वारा नोट में इस्तेमाल होने वाले आयातित कागज और नकली नोट छापने में शामिल ऑपरेटरों पर लगातार कार्रवाई के बावजूद यह गंभीर समस्या बनी हुई है। निस्संदेह, हाल के वर्षों में, भारत ने नकली नोटों की कालाबाजारी पर अंकुश लगाने व काले धन पर रोक के लिये डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिये अपनी स्थिति खासी मजबूत की है। सरकार की सोच है कि काले धन पर रोक लगाने के लिए नगद लेन-देन को हतोत्साहित किया जाए।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई ने भारत के आर्थिक लेन-देन तंत्र में क्रांति ला दी है। भुगतान के तमाम विकल्पों ने भारतीय नागरिकों के आर्थिक व्यवहार को बहुत आसान बना दिया है। हालांकि, अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो डिजिटल माध्यम से लेन-देन में परहेज करते हैं। निस्संदेह, नकदी पर उनकी निर्भरता का मूल कारण डिजिटल शिक्षा का अभाव ही है। साथ ही इसके कारणों में भ्रष्टाचार और कर चोरी की नीयत भी शामिल है। ऐसे में सरकार को डिजिटल खाई को पाटने की दिशा में रचनात्मक पहल करनी चाहिए।
वहीं दूसरी आर्थिक अनियमितताएं करने वाले तत्वों से भी सख्ती से निबटा जाना चाहिए। हालांकि, दो हजार के नोट अब प्रचलन से बाहर हो चुके हैं, लेकिन उनका कानूनी आधार बना हुआ है। इस दिशा में यथाशीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए। यह भी चिंता की बात है कि नोटबंदी के आठ साल बाद भी रियल एस्टेट क्षेत्र में काले धन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल बना हुआ है।
निस्संदेह, डिजिटल युग में भी ‘नकदी ही राजा है’ मानने वालों को रोकने के लिये जांच और कानूनों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। साथ ही इस दिशा में भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश में लगी विदेशी ताकतों की नकली करेंसी के प्रसार में कितनी बड़ी भूमिका है। विगत में पाकिस्तान से ड्रग मनी व आतंकी संगठनों की मदद के लिये नकली करेंसी के उपयोग की खबरें सामने आती रही हैं।