राहुल गांधी देश के ऐसे नेता हैं, जिन्हें सर्वाधिक मानहानि के मुकदमों का सामना करना पड़ा है. मानहानि के मामले अक्सर समझौते पर खत्म होते हैं, लेकिन राहुल गांधी को इसके लिए बाकायदा सजा सुनाई गई. उनकी संसद सदस्यता रद्द हुई..!!
अब ताजा मामला एक सैन्य अफसर द्वारा उनके खिलाफ सेना के मानहानि कारक वक्तव्य के लिए लगाया गया है. इसी मामले में राहुल गांधी ने लखनऊ की अदालत में समर्पण किया. उन्हें जमानत दी गई. उनके खिलाफ यह मुकदमा चलाया जाएगा.
कांग्रेस भले ही कभी भी राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार घोषित कर चुनाव मैदान में नहीं उतरी हो, लेकिन पार्टी का यही सपना है. इसी सपने के साथ उन्हें राजनीति में उतारा गया था. सांसद तो बीस वर्षों से हैं. अब तो संवैधानिक नेता प्रतिपक्ष के पद पर विराजमान हैं. संसदीय लोकतंत्र में नेता प्रतिपक्ष को शैडो प्राइम मिनिस्टर के रूप में देखा जाता है. संसदीय पद्धति में सकारात्मक राजनीति के लिए ऐसी कल्पना की गई थी.
राहुल गांधी कभी सरकार के पद पर नहीं रहे. इसलिए उनके शासन के दृष्टिकोण का तो देश को अनुभव नहीं है. लेकिन सांसद के रूप में उन्होंने तीन लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया है. अमेठी, वायनाड और अब रायबरेली का लोकसभा में वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. किसी भी लोकसभा क्षेत्र में विकास के लिए ऐसा कोई सकारात्मक क्रांतिकारी विचार या उनका काम अब तक तो सुर्खियां नहीं पा सका.
राहुल गांधी मीडिया के लिए हमेशा न्यूज़ होते हैं. उनके द्वारा कोई सकारात्मक प्रयोग उनके लोकसभा क्षेत्रों में किया गया होता तो उसको प्रचार नहीं मिला होता ऐसा तो नहीं माना जा सकता.
राहुल गांधी के राजनीतिक विकास को ध्यान से देखा जाएगा तो वह नकारात्मकता पर खड़ा हुआ है. एक दशक से तो उनका मुकाबला पीएम नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार से है. उसके पहले यूपीए सरकार में भी वह अपने को एंग्री यंग मैन के रूप में दिखाते रहे. पीएम मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनके द्वारा अध्यादेश को फाड़ना उनके चर्चित कारनामों में से एक रहा है.
पब्लिक लाइफ में काम करने वाले नेता विशेषकर ऐसे परिवार के युवा के लिए जिस परिवार ने देश को तीन-तीन प्रधानमंत्री दिए हों, सकारात्मक राजनीति की ही अपेक्षा की जाती है. राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि के मुकदमे, सोची-समझी योजना का हिस्सा लगते हैं.
वीर सावरकर पर उनकी टिप्पणी पर मानहानि का मुकदमा पुणे में चल रहा है. मोदी समाज की मानहानि के मामले में तो उनको सजा सुनाई गई. उनकी संसद सदस्यता रद्द हुई. इस न्यायिक मामले को भी उन्होंने राजनीतिक रंग देकर नकारात्मक प्रचार का जरिया बनाया. उन्हें न्यायिक सजा मिली थी और न्यायालय से ही राहत मिली. न्यायालय के निर्णय पर ही उनकी सदस्यता गई थी और न्यायालय के निर्णय पर उसे बहाल किया गया.
फिर भी इसको राजनीतिक रूप देना उनकी नकारात्मक राजनीति का ही उदाहरण है. जो मामला न्यायिक होता है, उसको राजनीति के नजरिये से प्रचार पाने के लिए उपयोग करना ना केवल अनुचित है, बल्कि संविधान विरोधी भी है.
पीएम को चौकीदार चोर है, कहने पर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में उन्हें माफी मांगना पड़ी. अब तो सारी हदें पार हो गई हैं, जब सेना के अपमान के लिए उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा चलाया गया है.
राहुल गांधी पर आरोप है, कि उन्होंने भारतीय सेना का अपमान किया है. यह मामला 16 दिसंबर 2022 का है, जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने कहा था “चीनी सैनिक हमारे सैनिकों को मार रहे हैं लेकिन मीडिया उनसे सवाल नहीं करता.” एक रिटायर्ड सैन्य अफसर ने उनके इस बयान को सेना की छवि धूमिल करने वाला मानते हुए परिवाद लगाया. जिसे अदालत द्वारा मंजूर कर लिया गया.
राहुल गांधी इस मामले में अनेक बार सम्मन के बाद भी अदालत में पेश नहीं हो रहे थे. इस मामले को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में भी केस लगाया था. लेकिन कोई राहत नहीं मिली. फिर उन्होंने अंतिम अवसर होने के कारण कोर्ट के सामने सरेंडर किया.
भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम पर पूरे देश को गर्व है. सेना पर अपमानजनक टिप्पणी के लिए किसी नेता के खिलाफ मानहानि का मुकदमा शर्मनाक स्थिति है. पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी राहुल गांधी के कई बयानों को पाकिस्तान में प्रमुखता मिली. इस ऑपरेशन में भारत को हुए नुकसान पर उन्होंने सवाल उठाया जबकि सामान्य रूप से युद्ध में देश की जीत देखी जाती है, नुकसान कोई मायने नहीं रखता. देश की वीर सेना देश के लक्ष्य को हासिल करती है .
अब सवाल यह है कि राहुल गांधी ऐसे वक्तव्य अनजाने में देते हैं या राजनीति के तहत जानबूझकर नकारात्मकता को अधिक प्रचार की परिस्थितियों को भुनाने के लिए देते हैं. मानहानि के मामले में अगर ग़लती से भी कुछ ऐसी बात निकल जाती है, जिससे किसी को तकलीफ होती है तो कोई भी पीड़ित व्यक्ति से माफी मांगने को तैयार हो जाता है.
क्षमा मांगना हार नहीं, बल्कि विजय का प्रतीक है. सकारात्मक व्यक्ति क्षमा मांग कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है. क्षमा मांगने का साहस वही नहीं करता जिसका व्यक्तित्व नकारात्मकता पर खड़ा होता है.
राहुल गांधी अक्सर यह कहते हैं कि वह सावरकर नहीं गांधी हैं और गांधी कभी माफी नहीं मांगते. लोकतंत्र है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यह स्वतंत्रता राष्ट्रघात और सेना के अपमान के लिए तो किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं हो सकती.
लोकतंत्र जनादेश है, इसमें किसी को भी राज्य और केंद्र की सरकार के नेतृत्व का मौका सौंप सकती है. राहुल गांधी और दूसरा कोई भी नेता पीएम बनने का सपना देख सकता है. यह सपना पूरा करने की शक्ति तो जनादेश के पास है, लेकिन अपने व्यक्तित्व को पीएम पद की गरिमा के अनुरूप बनाना उस नेता के ही हाथ होती है.
नकारात्मक राजनीति कभी भी दूरगामी फलदायी नहीं हो सकती. राहुल गांधी तो अडानी, अंबानी और पीएम मोदी को लेकर जितने मानहानिकारक बयान देते हैं, उन सब पर अगर वह अदालतों में जाने लगें तो फिर साल के हर दिन उन्हें अदालतों में ही केस लड़ते रहना पड़ेगा.
नेशनल हेराल्ड में जांच प्रक्रिया और अदालती कार्रवाई को जिस तरह से राजनीतिक रंग दिया गया, वह भी नकारात्मक राजनीति का उदाहरण है. राहुल गांधी की नकारात्मक राजनीति कांग्रेस की विरासत पर भारी पड़ रही है.
नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातिवादी राजनीति के खिलाफ रहे हैं. जबकि राहुल गांधी जातिवादी राजनीति को ही अपनी सफलता की सीढ़ी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
नकारात्मकता से अगर जीत भी मिल जाती है, तो वह भी व्यक्तित्व के हार पर ही खड़ी होगी. राहुल गांधी मानहानि फाइल्स बहुत लंबी है. यह एक मसालेदार चर्चित फिल्म के लिए अच्छी स्क्रिप्ट हो सकती है.
नकारात्मक फेस दूसरा पेश करे तो बात अलग है, जब कोई खुद ही उसी को अपना फ्यूचर समझने लगे तो फिर इसे लोकतंत्र का ही अनफॉर्च्युनेट कहा जाएगा.