पर्यावरण मंजूरी के लिए गठित एंड एनवायरमेंट इंपेक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) का ही पर्यावरण प्रदूषित हो गया है. अथॉरिटी के अध्यक्ष और विभाग के प्रमुख सचिव के बीच टकराव हाई वोल्टेज ड्रामा तक पहुंच गया..!!
अध्यक्ष के ऑफिशियल कक्ष में ताला लगा दिया गया. जब वह कार्यालय पहुंचे तो बताया गया कि, प्रमुख सचिव के निर्देश पर ताला लगाया गया है. फिर उन्होंने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से इसकी शिकायत की. सीएम विदेश प्रवास पर है. जिस भी प्रयास से खुला लेकिन ताला खुल गया.
ईमानदारी और बेईमानी का बेताल ताले के पीछे है. कमरे पर ताला लगने के पहले अध्यक्ष के अधिकारों पर ताला लगा दिया गया था. इसी से विवाद की शुरुआत हुई.
सिया के अध्यक्ष सेवानिवृत्त एक आईएएस अधिकारी हैं. और प्रमुख सचिव इसी कैडर के सीनियर अफसर हैं. अध्यक्ष ने प्रमुख सचिव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. इसके लिए बाकायदा मुख्य सचिव को पत्र लिखकर जांच और एफआईआर करने की उनके द्वारा मांग की गई.
उनका आरोप है, पर्यावरण मंजूरी सिर्फ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय व राज्य की सिया अथॉरिटी द्वारा ही दी जा सकती है लेकिन एप्को भी ऐसा कर रहा है. एप्को में ही सिया का कार्यालय काम करता है. ताला खुल गया है लेकिन अधिकारों का विवाद सिस्टम के सिर पर अभी भी चढ़ा हुआ है.
दोनों एक दूसरे को गलत साबित कर रहे हैं. सिया चेयरमैन कहते हैं कि पीएस का भ्रष्टाचार उजागर किया इसलिए ताला लगवाया. जबकि प्रमुख सचिव अपनी सफाई में यह कहते हैं कि, इलेक्ट्रिकल फॉल्ट के कारण दफ्तर बंद कराया गया था.
सिया में माइनिंग प्रकरणों की पर्यावरण मंजूरी देने का दायित्व निभाया जाता है. माइनिंग शब्द आते ही धरती से सोना कमाने का भाव आता है. जो भी इसमें सोना कमाना चाहता है उसे सिस्टम के हर कोने तक सोना-सोना ही करना पड़ता है.
इस विवाद में कौन सच्चा है और कौन झूठा? यह जानना तो टेढ़ी खीर है. इतना तय है कि, माइनिंग के सिस्टम में कोई भी काम बिना मनी लांड्रिंग के नहीं होता, ऐसी जनधारणा बनी हुई है. माइनिंग का काम सीधा ‘मनी माइनिंग’ से जुड़ा हुआ है. सारे विवाद के पीछे अगर इसकी जड़ को तलाशा जाएगा तो करप्शन का पॉल्यूशन दिखाई पड़ेगा.
पूरा प्रशासनिक सिस्टम ऐसे विवादों से भरा होता है. कहीं विवाद सतह पर आ जाते हैं तो कहीं नीचे बने रहते हैं. हालत यह है कि पूरा सिस्टम इसमें ही व्यस्त रहता है, कि विवाद सतह पर नहीं आए. विवादों का सामने आना सुधार की गुंजाइश पैदा करता है. जब सब कुछ मिली भगत से होने लगता है तो फिर विवाद उभर कर नहीं दिखते लेकिन टारगेटेड आरोप प्रत्यारोप सामने आते हैं.
सरकारी सिस्टम की पूरी प्रक्रिया नियम कायदों की लक्ष्मण रेखा में बंधी हुई है. अब तो सारा सिस्टम लक्ष्मण रेखा को तोड़कर अपना काम निकालने में महारत हासिल कर चुका है. हर विभाग में ऐसे सिद्धहस्त लोग पाए जाते हैं, जो बिना फंसे फंसाए नियमों के साथ खेलते हुए कमाई का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.
मतभेदों के बावजूद शासन प्रशासन में एकजुटता की भावना भ्रष्टाचार की प्रणाली से ही अपना जीवन पाती है. मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी राजनीति के साथ तालमेल में अग्रणी दिखती है. ऐसे अफसर बहुत कम देखने को मिलेंगे जो सच को सच कहने का साहस दिखा सकते हैं. मुंह देखी बातें अघोषित रूप से शासन के कार्य संचालन नियम बन गए हैं .
ब्यूरोक्रेसी को स्टील फ्रेम के रूप में बनाया गया था ताकि राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के दौर में भी शासन व्यवस्था को जन सेवा के लक्ष्य से बांधे रखा जाए. सब एक दूसरे को नापसंद करते हैं फिर भी पसंदगी की बयार बहाई जाती है.
मुख्यमंत्री, मंत्री, सचिवों और प्रमुख सचिवों के बीच मनभेद होते हैं लेकिन मतभेद दिखाई नहीं पड़ते. मंत्रियों की हालत सबसे ज्यादा चिंतनीय होती है. वह जिस विभाग का नेतृत्व करता है वह उसके नियंत्रण में नहीं होता. इसका प्रमुख सचिव या सचिव, सरकार के कप्तान के नियंत्रण में काम करते हैं. परिपक्व और अनुभवी मंत्री इन परिस्थितियों को भी इसलिए गुजार देते हैं क्योंकि पद से बड़ा पावर इस जगत में दूसरा नहीं हो सकता.
अफसरों-अफसरों के बीच और मंत्रियों-अफसरों के बीच विवाद अक्सर होते रहते हैं. प्रसिद्ध व्यंगकार शरद जोशी अपनी रचना ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’ में जो दृश्य कल्पित किए हैं, वह शायद आज के हालातों को सोचकर लिखे गए थे. जब उनको लिखा गया था तब भी वह सही थे. अब धीरे-धीरे उनकी सत्यता जमीन पर चीख चीखकर साबित हो रही है.
मध्य प्रदेश में तो ऐसा भी रिकॉर्ड है, जब जांच में भ्रष्ट्राचार के आरोपी सीनियर अफसर को अदालत से केस वापस लेकर मुख्य सचिव का पद दिया गया. प्रशासन का यह सबसे बड़ा पद अब अपनी गरिमा के लिए संघर्ष कर रहा है. एक ऐसे भी मुख्य सचिव रहे हैं, जो पद से रिटायर हुए तब उनके घर पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा छापा डाला गया. बाद में न्यायालय से उन्हें राहत मिली. इतने बड़े पदों पर न केवल बेदाग होना जरूरी है बल्कि दिखना भी जरूरी है.
मीडिया में उछलने के कारण भ्रष्टाचार के आरोपों पर चर्चा हो रही है. धीरे-धीरे इस चर्चा को दबा दिया जाएगा. करप्शन का पॉल्यूशन तो फैलता जाएगा लेकिन उस पर विवाद को नियंत्रित कर लिया जाएगा. माइनिंग के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान को जानने के लिए कोई बड़ा विज्ञान समझने की जरूरत नहीं है. आए दिन दुर्घटनाएं होती है.
माइनिंग माफियाओं के ट्रैक्टर और ट्रकों के नीचे सिस्टम कुचल दिया जाता है. अगर कोई ईमानदारी से अपना काम करना चाहे तो उसके दम को घोंट दिया जाता है. उसकी हत्या कर दी जाती है. यह अनादिकाल से चल रहा है, इसके बाद भी सिस्टम ईमानदारी को अपनी ताकत बताता है.
पर्यावरण मंजूरी के लिए राज्य की अथॉरिटी को सिया कहा जाता है. सिया ने कभी नहीं सोचा होगा कि, ऐसा भी दौर आएगा, जब वहां ईमानदारी की बात होगी. प्रसिद्ध भजन सिस्टम पर सटीक अटैक करता है. ‘रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुगेगा दाना दुनका और कौवा मोती खाएगा'.