शब्दों में धार नहीं आधार होना चाहिए. धार मन को काटती है और आधार मन को जीतती है. हमारे शब्द ही सबको स्पर्श करते हैं. संवाद ही जिनका धंधा है, बहुमत जिनकी पूंजी है, उनको तो संत कबीर की “ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होए,” दोहे को कभी नहीं भूलना चाहिए. जब मंत्री, विधायक, सांसद की बोली मुद्दा बन जाए तो फिर इसे पब्लिक लाइफ की हार ही माना जाएगा..!!
डिजिटल अरेस्ट साइबर फ्रॉड है, लेकिन विकास के लिए डिजिटल वॉइस लाइव डेमोक्रेसी है. मध्य प्रदेश में पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह और सीधी के सांसद राजेश मिश्रा के बोल और शब्द राष्ट्रीय चर्चा में आ गए हैं. सीधी की गर्भवती महिला लीला साहू ने अपने गांव की कीचड़ भरी सड़क को बनाने का वायदा पूरा नहीं करने पर उसी बदहाल रोड पर खड़े होकर वीडियो बनाकर वायरल किया. एक सामान्य महिला डिजिटल पावर का उपयोग अपनी आवाज को जिम्मेदारों के कानों तक पहुंचाने के लिए जिस ढंग से कर रही है, वह लोकतंत्र के भविष्य की ओर इशारा कर रहा है. इसमें भी सड़क निर्माण का मामला है.
सांसद महोदय ने सड़क बनाने पर जो भी बात की उसमें ऐसी बात कह दी जो जन भावनाओं को आहत कर गई. वह कह गए कि गर्भवती महिला की डिलीवरी की ऐस्टीमेटेड डेट होती है. गर्भवती महिलाएं उन्हें वह डेट बता देंगी तो पहले से ही उनको उठा लिया जाएगा. विवाद के बाद तो उन्होंने सफाई दी कि अस्पताल में बीमार को उठाकर शिफ्ट करने का ही शब्द प्रचलित है.
सांसद के शब्द, भाषा और लहजा लोकतंत्र के असली मालिक के लिए परेशान करने वाला है. लीला साहू के वायरल वीडियो पर जब पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह से पूछा गया, तब वह कहते हैं, कि वायरल वीडियो से सड़क नहीं बनती है. सड़क बनाने की एक प्रक्रिया है. सड़कों पर गड्ढों पर भी पीडब्ल्यूडी मंत्री जो कहते हैं, वह राष्ट्रीय स्तर पर खबर बन जाती है. उनका कहना है कि जब तक सड़के हैं, तब तक गड्ढे रहेंगे. उन्हें गड्ढों के पीछे करप्शन नहीं दिखा.
डिजिटल इंडिया की लिटरेसी सरकार ही बढ़ा रही है. अब कोई ऐसा गांव नहीं होगा जहां स्मार्ट फोन नहीं हैं. हर गांव में सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर मिल जाएंगे. ऐसे वीडियो जब वायरल होते हैं, तब उन पर देश-दुनिया में प्रतिक्रिया होती है. पहले जनप्रतिनिधियों को देखने, सुनने और समझने के लिए सोशल मीडिया की तत्काल व्यवस्था नहीं थी. अब तो जनप्रतिनिधियों की भाषा, बोली, बॉडी लैंग्वेज सब कुछ देखने, सुनने, समझने को मिल जाता है.
डिजिटल अवेयरनेस डेवलपमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. जो आंखों से दिख रहा है, वह झूठ नहीं हो सकता. अगर लीला साहू खराब सड़कों के कारण लोगों की जिंदगी की बदहाली उजागर कर रही हैं, तो इससे किसी भी जनप्रतिनिधि के अहंकार पर चोट नहीं लगनी चाहिए. सांसद जरूर पहली बार बने हैं, लेकिन मंत्री तो विधायक बनने से पहले कई टर्म तक सांसद रह चुके हैं. उन्हें संसदीय जीवन का अनुभव नहीं है, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता. वह मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
इसके पहले दूसरे मंत्री विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर शर्मसार करने वाली टिप्पणी की थी. जो अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
केवल भाजपा में ही नहीं कांग्रेस सहित दूसरी दलों के जनप्रतिनिधि और उनके परिवार के लोग अक्सर ऐसा बोलते या आचरण करते पाए जाते हैं, जो आपराधिक श्रेणी में आता है. अभी हाल ही में अलीराजपुर के कांग्रेस विधायक के बेटे द्वारा जिस तरह से पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने का प्रयास किया गया, वह भी ताकत के अहंकार का आवेग ही कहा जाएगा. टिमरनी विधायक द्वारा भी पुलिस के साथ अभद्र व्यवहार की घटना प्रकाश में आई है. इस तरह के मामले दूसरे राज्यों में भी आए दिन घटित होते हैं.
हर मानसून में राज्यों की सड़कों और पुलों के निर्माण में भ्रष्टाचार की परतें उखड़ती हैं. बड़े-बड़े "गड्ढे" सुर्खियां बनते हैं, पुल टूट जाते हैं, सैकड़ो लोगों की जान चली जाती है. कई गड्ढे तो ऐसे दिखते हैं जैसे कि सड़कों को हार्ट अटैक आ गया है और उनकी मौत हो गई है. चमकती सड़कें अचानक गड्ढे में तब्दील हो जाती हैं. पीड्ब्लयूडी के इन्हीं कारनामों को देखते हुए, मध्य प्रदेश के कालजयी व्यंगकार शरद जोशी ने पीडब्ल्यूडी को भ्रष्टाचार का कल्पवृक्ष बताया है.
कल्पवृक्ष इच्छा की पूर्ति करता है. भ्रष्टाचार का कल्पवृक्ष सिस्टम के हर जवाबदार को उसकी इच्छा के मुताबिक भ्रष्टाचार करने का अवसर देता है. जिस ढंग से एक बरसात में हीं सड़कें गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं. पुल धराशाई हो जाते हैं. उनसे तो यही लगता है कि इस विभाग में केवल भ्रष्टाचार की इच्छा पूरी होती है. कोई भी नागरिक यह सुनकर सिहर जाएगा, कि भोपाल में 90 डिग्री के ओवर ब्रिज का कारनामा सामने आने के बाद प्रदेश में डिजाइन की जांच के लिए बनी हाई लेवल कमेटी ने 355 फ्लाईओवर और आरओबी की डिजाइन रद्द कर दी हैं. इनमें 1200 करोड़ के 140 निर्माणाधीन प्रोजेक्ट भी शामिल हैं.
इसका मतलब है, कि यह सारी डिजाइन डिफेक्टिव हैं. इनको पीडब्ल्यूडी ने भ्रष्टाचारी कल्पवृक्ष के भ्रष्टाचार की इच्छा पूर्ति के लिए बनाया. इनको बनाने में भी लाखों रुपए खर्च किए गए होंगे. मंत्री को लीला साहू का वायरल वीडियो तो चोट कर जाता है, लेकिन भ्रष्टाचार का यह नमूना हलचल भी नहीं पैदा करता. जब विभाग ही भ्रष्टाचार का कल्पवृक्ष है, तो फिर मंत्री तो इस वृक्ष के सबसे बड़े पुजारी ही कहे जाएंगे.
आजकल मंत्री विधानसभा क्षेत्र तक ही सीमित हो गए हैं. कई मंत्री तो संपूर्ण राज्य का दौरा तक नहीं करते. मंत्री तक जन भावनाओं के शब्द भले नहीं पहुंचात हो लेकिन उनके अहंकारी शब्द नागरिकों के मन तक पहुंच जाते हैं. इससे व्यक्तित्व का ही नुकसान नहीं है बल्कि सरकार और पार्टी भी इसका खामियाजा भुगतती है. शायद इसीलिए मंत्री, सांसद, विधायक के लिए प्रशिक्षण कराया जाता है, लेकिन प्रशिक्षण से बेसिक संस्कार तो नहीं बदल सकते.
एआई और डिजिटल इंडिया का विस्तार और अवेयरनेस ऐसे मंत्री, सांसद, विधायकों के लिए खतरे की घंटी हैं, जिनकी बोली, भाषा और आचरण लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं होता. जन भावनाएं निशब्द मूकदर्शक अब शायद नहीं रहेंगी. यही लोकतंत्र के लिए जरूरी है.