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काँवड़-नमाज तुलना में छिपा, कांग्रेस के पतन का राज

सार

दिग्विजय सिंह कांग्रेस के अकेले नेता हैं, जो दस वर्षों तक लगातार मुख्यमंत्री के पद पर रहे हैं. ऐसा कोई दूसरा नेता कांग्रेस में अभी नहीं है. अशोक गहलोत भी टुकड़ों टुकड़ों में सीएम रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    भगवा आतंकवाद से लगाकर अब तक हिंदू मुस्लिम राजनीति में धार्मिक प्रतीकों,आयोजन, घटनाओं और व्यक्तित्व को लेकर पैदा हुई हर कंट्रोवर्सी में दिग्विजय सिंह का नाम जुड़ जाता है. ताजा विवाद फेसबुक पर उनकी एक पोस्ट से पैदा हुआ है. जिसमें सावन महीने में चल रही काँवड़ यात्रा का पुलिस द्वारा स्वागत करते हुए और सड़क पर नमाज के एक दृश्य में पुलिस द्वारा सख्ती दिखाते हुए चित्रों को ‘एक देश, दो कानून’ की टिप्पणी के साथ पोस्ट किया गया है. 

    मूल मूल रूप से यह पोस्ट कांग्रेस प्रायोजित वॉलिंटियर्स द्वारा संचालित ‘विद कांग्रेस’ द्वारा की गई है. कांग्रेस इसे अपना ऑफिशल हैंडल नहीं मानती. दिग्विजय सिंह ने वालंटियर समूह के इस पोस्ट को फेसबुक पर पोस्ट कर इसे कांग्रेस का ऑफिशल वर्जन बना दिया है. शायद इसीलिए बीजेपी की ओर से त्वरित प्रतिक्रिया दी गई. यह प्रतिक्रिया भी राजनितिक है.

    बीजेपी दिग्विजय सिंह को हमेशा मुस्लिम परस्त और सनातन विरोधी साबित करने की कोशिश में लगी रहती है. यद्यपि निजी आचरण के स्तर पर दिग्विजय सिंह पक्के सनातनी है. लेकिन राजनीति में कंट्रोवर्सी उनकी आदत बन गई है. जब भी उनके बयानों पर विवाद खड़े हुए, तब वह अपने तर्कों पर अड़े रहे. लेकिन इससे उनकी राजनीतिक छवि को जरूर नुकसान पहुंचा है.

    एक देश दो कानून का जो पोस्ट है. उसको हिंदू मुस्लिम के नजरिए से अगर देखा जाएगा तो सबसे पहला सवाल जो कांग्रेस पर खड़ा होता है, वह यही है कि, एक देश एक कानून का खून किसने किया है? इस देश में प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून अगर नहीं लागू हो सका तो इसके लिए कांग्रेस के अलावा दूसरा कौन जिम्मेदार हो सकता है? एक देश दो कानून तो कांग्रेस ने स्वयं बनाए हैं, जो अब तक चल रहे हैं.

   बीजेपी का तो बेसिक एजेंडा यही है कि, एक देश, एक विधान, एक संविधान, एक निशान होना चाहिए. जम्मू-कश्मीर में इसके लिए तो बीजेपी ने लंबा संघर्ष किया. वहां धारा 370 और 35 ए समाप्त कर एक देश एक कानून के अपने एजेंडे को बीजेपी ने पूरा किया. जब तक कांग्रेस के बस में रहा तब तक जम्मू कश्मीर में डॉ. अम्बेडकर का संविधान लागू नहीं था. वहां का ध्वज भी अलग था. कांग्रेस को अब एक देश दो कानून दिखाई पड़ रहा है, जब उनमें सत्ता की शक्ति नहीं बची है. 

    जब कानून बनाने की हैसियत समाप्त हो गई है तो फिर वोट बैंक की राजनीति के लिए इस तरह के पोस्ट किए जा रहे हैं. भले ही अनजाने में सही लेकिन कांग्रेस की ओर से एक देश दो कानून की बात इतिहास की सच्चाई सिर चढ़कर बोलने जैसी है. संविधान निर्माता एक देश एक कानून के समर्थन में थे. आजादी के बाद कांग्रेस ने संविधान में ऐसे-ऐसे बदलाव किये, जो एक देश दो कानून के आधार बने हैं.

    एक देश एक कानून का बीजेपी का दूसरा सबसे बड़ा एजेंडा समान नागरिक संहिता का है. संविधान में समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है. यहां तक की सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनेक बार इसके लिए सरकारों को निर्देश दिया लेकिन कांग्रेस सरकारों ने एक देश दो कानून की अपनी चुनावी स्ट्रेटजी के कारण इस पर कभी भी विचार नहीं किया.

    अब जब बीजेपी सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता लाने की बात की जा रही है तो कांग्रेस ही उसके सामने सबसे बड़ा रोड़ा है. जिन राज्यों में यूसीसी लाई गई है, वहां भी कांग्रेस इसके विरोध में खड़ी है. उत्तराखंड में इसे लागू कर दिया गया है. बाकी राज्यों में इसे लागू करने की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में है. कांग्रेस एक देश दो कानून कि अपराधी है. अब ऐसी बातें करके अपने अपराध को ही उजागर कर रहे हैं.

    कांग्रेस ने बहुसंख्यक समाज के लिए हिंदू विवाह अधिनियम के रूप में एक विधान बनाया जबकि मुस्लिम समाज के लिए संविधान में पर्सनल कानून को जगह दी. जो कि, संविधान निर्माताओं की भावनाओं के खिलाफ था. यह है एक देश दो कानून की असली पिक्चर? इसी प्रकार मुसलमानों के लिए वक्फ़ कानून लाया गया. क्या कांग्रेस ने कभी सनातन धर्म के लिए ऐसे कानून पर विचार किया? एक तरफ वक्फ़ बोर्ड बनाया गया. उन्हें धार्मिक यात्राओं पर सब्सिडी दी गई दूसरी तरफ बहुसंख्यक समाज को जातियों में बांटा गया. 

    कांग्रेस की एक देश दो कानून की तुष्टिकरण वाली सोच ही है, जिसके अंतर्गत अल्पसंख्यकों को तो धार्मिक शिक्षा का अधिकार दिया गया. इसके लिए सब्सिडी दी गई. दूसरी तरफ सनातन धर्म से धार्मिक शिक्षा के अधिकार को छीन लिया गया. एक देश दो कानून के इस टाइमबम से आज देश में हिंदू मुस्लिम विवाद चरम पर पहुंच गए हैं. कांग्रेस शायद यही चाहती थी कि, एक समूह के वोट बैंक का तुष्टिकरण कर सत्ता की सीढ़ी चढती रहे और दूसरे समूह को जातियों में बांटकर लड़वाए रखा जाए. कांग्रेस आज भी वही कर रही है.

    वक्फ़ बोर्ड में मुस्लिम समाज की निचली बिरादरियों को कानून के तहत कोई जगह नहीं दी गई. हाल ही में वक्फ़ कानून में जो संशोधन हुआ है उसमें मुस्लिम समाज की पिछड़ी बिरादरियों को भी मौका दिया गया है. इसका भी कांग्रेस इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि, एक देश दो कानून बनाकर चल रही वोट बैंक के तुष्टीकरण की उसकी राजनीति टूट सकती है.

    जो कांग्रेस एक देश, एक कानून की खूनी है. जो कांग्रेस एक देश दो कानून बनाने वाली है, वहीं कांग्रेस आज दो द्रश्यों की तुलना कर दोनों धर्म के बीच कटुता बढाकर अपना राजनीतिक हित साधना चाहती है. देश में धर्म की पूरी स्वतंत्रता है. हर धर्म के आयोजन को समुचित सम्मान मिलता है. कांवड़ यात्रा वर्ष में एक बार सावन के महीने में आयोजित होती है जबकि नमाज हर दिन का विषय है. इन दोनों की कोई तुलना नहीं है.

    दिग्विजय सिंह की राजनीतिक काबिलियत असंदिग्ध है. वह ना डरते हैं, ना झुकते हैं. लेकिन छवि से तो सबको डरना चाहिए. जब कोई साधु जैसा हो और उसको शैतान जैसा बताया जाए तब तो सुनने वालों को खराब लगता है.  

    धार्मिक प्रतीकों की राजनीति, कांग्रेस का पेशा  रहा है. कांवड़ और नमाज की तुलना की सोच नई नहीं है.. इसी सोच में कांग्रेस के पतन का इतिहास छिपा है.