झूठ है यह बात कि घास की रोटियां खाईं
भारतीय इतिहास के एक प्रकाशमान नक्षत्र हैं चित्तौड़ के राणा प्रताप । जो न किसी प्रलोभन से झुके और न किसी बड़े आक्रमण से भयभीत हुये । उन्होंने स्वाधीनता और स्वाभिमान के लिये जीवन भर संघर्ष किया और अकबर को पराजित किया ।
मुगल सेना ने चित्तौड़ पर चार बड़े आक्रमण किये । चारों में महाराणा ही जीते । राणाजी के जीवनकाल में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर ही न पाया । अकबर ने चार संदेश वाहक भी भेजे भारी प्रलोभन के साथ इनमें तीन राजा टोडरमल, बीरबल और राजा मानसिंह थे । पर कोई भी प्रलोभन उन्हे न डिगा सका और न किसी धमकी से वे भयभीत हुये ।
उनका जन्म 9 मई 1540 को हुआ । राणाजी का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को चित्तौड़ में । उनके जन्म स्थान के बारे में दो साहित्यकारों के अलग-अलग मत हैं । जेम्स टाॅड ने राणा जी का जन्म स्थान कुम्भलगढ किला माना है । जबकि इतिहासकार विजय नाहर ने पाली राजमहल । पाली राजमहल राणा जी का ननिहाल था । उनकी माता जयवंति बाई पाली महाराज सोनगरा की बेटी थीं ।
इतिहासकार विजय नाहर की पुस्तक हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप के अनुसार-
1 .महाराणा उदय सिंह ने युद्ध की नयी पद्धति - छापामार युद्धप्रणाली आरंभ की थी। इसका उपयोग करके ही महाराणा प्रताप, महाराणा राज सिंह एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों पर सफलता प्राप्त की ।
इतिहास कार विजय नाहर ने दावा किया है कि महाराणा प्रताप मुग़ल सम्राट अकबर से कभी नहीं हारे। उलटे मुगल सेनापतियो को धूल चटाई । हल्दीघाटी के युद्ध में भी महाराणा प्रताप ही जीते और अकबर पराजित हुआ । हल्दीघाटी में मुगल सेना के पराजित होने के बाद अकबर स्वयं जून से दिसम्बर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण करने आया, परंतु अकबर और उसकी सेना महाराणा को खोज ही नहीं पाए, बल्कि महाराणा के जाल में फँसकर मुगल सेना को पानी भोजन का भारी अभाव का सामना करना पड़ा । थक हारकर अकबर बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया। पूरे सात माह मेवाड़ में रहने के बाद भी जब महाराणा प्रताप पर विजय न पा सका तो हाथ मलता हुआ अरब चला गया । मुगलों की ये सेनायें तीन बार शाहबाज खान के नेतृत्व में चित्तौड़ आईं । पर असफलता ही हाथ लगी । उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में सेना भेजी गई । यह सेना भी भारी नुकसान उठाकर लौटी । 9 वर्ष तक निरन्तर अकबर पूरी शक्ति से महाराणा के विरुद्ध आक्रमण करता रहा। नुकसान उठाता रहा अन्त में थक हार कर उसने मेवाड़ की और देखना ही छोड़ दिया ।
इतिहास कार विजय नाहर ने दावा किया है कि ऐसा कुअवसर प्रताप के जीवन में कभी नहीं आया कि उन्हें घास की रोटी खानी पड़ी या अकबर को सन्धि के लिए पत्र लिखना पड़ा हो। इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने सुंगा पहाड़ पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया और सुन्दर बगीचा लगवाया । महाराणा की सेना में एक राजा, तीन राव, सात रावत, 15000 अश्वरोही, 100 हाथी, 20000 पैदल और 100 वाजित्र थे। इतनी बड़ी सेना को खाद्य सहित सभी व्यवस्थाएँ महाराणा प्रताप करते थे। फिर ऐसी घटना कैसे हो सकती है कि महाराणा के परिवार को घास की रोटी खानी पड़ी हो । उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में चित्तौड़ के किले की मरम्मत की, सम्पूर्ण मेवाड़ पर शुशाशन स्थापित करते हुए उन्नत जीवन दिया ।
यदि राणा जी अकबर से पराजित होते या अभाव होता तो यह विकास और समृद्धि प्रयास संभव ही नहीं थे ।
कोटिशः नमन् परम् वीर यौद्धा राणा प्रताप जी को ।