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देश के गुरुर पर, राजनीति का नासूर

सार

ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को ही करारा सबक नहीं दिया है बल्कि भारत को भी कई सबक सिखा दिए हैं. सर्वदलीय प्रतिदिन मंडल एकजुट राष्ट्र पेश कर रहे हैं तो देश की राजनीति इस पर बंटी हुई है. यहां तक की एक ही दल के नेता बंटे हुए दिखाई पड़ रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की हो रही है. ऑपरेशन सिंदूर पर, ऑपरेशन थरूर दूरगामी असर डालेगा. जो बीजेपी थरूर की आलोचना करती थी, वह उनके पक्ष में खड़ी हो गई है तो कांग्रेस अपने ही नेता के खिलाफ रुख दिखा रही है.

     प्रतिनिधिमंडल में सभी दलों के नेता गए हैं. यह सारे नेता विदेश की धरती पर भारत का डंका बज़ा रहे हैं. पाकिस्तान को एक्सपोज कर रहे हैं. आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की भारतीय नीति को स्थापित कर रहे हैं. भारत की इस कूटनीति पर आमतौर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही है. यहां तक कि, थरूर के नेतृत्व में गए प्रतिनिधिमंडल द्वारा पक्ष रखने के बाद कोलंबिया सरकार ने पाकिस्तान के पक्ष में दिए गए अपने स्टेटमेंट को वापस ले लिया है.

    सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश में तो भारत के लिए काम कर रहें हैं, लेकिन इसकी शुरुआत में ही अंदरूनी राजनीति में विवाद चालू हो गए हैं. बीजेपी सरकार ने  कांग्रेस से नाम मांगे. कांग्रेस से जो नाम दिए गए उनको छोड़कर शशि थरूर, मनीष तिवारी और सलमान खुर्शीद को चुन लिया गया. उस लिस्ट से केवल आनंद शर्मा का नाम ही लिया गया. यही से विवाद शुरू हुआ. 

    ममता बनर्जी ने भी अभिषेक बनर्जी का नाम शामिल कराया. विश्व में जिन नेताओं की चर्चा हो रही है उनमें सबसे चर्चित असदुद्दीन ओवैसी है. वैसे तो शशि थरूर और सलमान खुर्शीद सहित कांग्रेस के चारों नेता अपने स्टैंड को लेकर इसलिए सुर्खियों में है, क्योंकि उनके विचार कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से मेल नहीं खा रहे हैं.

  अभिषेक बनर्जी, प्रियंका चतुर्वेदी, तमिलनाडु से कनिमोझी और एनसीपी की सुप्रिया सुले सहित सभी नेताओं की डिप्लोमेसी की सराहना हो रही है. ओवैसी अकेले नेता हैं, जो अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं. उनकी राजनीति एंटी बीजेपी रही है और आगे भी रहेगी. ऑपरेशन सिंदूर पर उन्होंने जो स्टैंड लिया है. पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह से उन्हें आग उगलते देखा गया है, उससे असदुद्दीन ओवैसी की इमेज में अचानक इजाफा हुआ है.

    मुस्लिम देशों में जाकर जिस तरीके से उन्होंने भारत में मुसलमानों की स्थिति और पाकिस्तान में आतंक के हालात पर अपने विचार रखे हैं, उससे उनकी छवि में चार चांद लगे हैं.

     सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का प्रतीक ऑपरेशन थरूर बन गए हैं. जैसे अभी ऑपरेशन सिंदूर ज़ारी है. वैसे ही विदेश से वापस आने के बाद भी ऑपरेशन थरूर जारी रह सकता है. इसके राजनीतिक फॉलआउट बाद में दिखाई पड़ेंगे. शशि थरूर एक बौद्धिक नेता हैं. वैचारिक रूप से वह हमेशा सुर्खियों में रहे. निजी लाइफ को लेकर उन पर हमेशा सवाल खड़े होते रहे. 

    कांग्रेस के भीतर उन पर चर्चा तब चालू हुई, जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन में चुनाव लड़ने का साहस दिखाया. न केवल चुनाव लड़े बल्कि उन्हें एआईसीसी डेलिगेट्स के एक हज़ार वोट मिले थे. गांधी परिवार द्वारा मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना प्रत्याशी बनाए जाने के बाद भी उन्हें इतने मत प्राप्त होना, एक बड़ी घटना है. ऑपरेशन थरूर जब पूर्णता पर आएगा तब इसके वास्तविक परिणाम दिखाई पड़ेंगे. 

    राहुल गांधी ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के मामले में सरकार द्वारा नाम मांगे जाने पर एक रणनीतिक गलती कर दी. उनके सामने यह अवसर था कि वह सरकार को चुनौती में डालते हुए अपना नाम स्वयं डेलीगेशन को लीड करने के लिए सरकार को दे सकते थे.

     यह उनके पास एक ऐसा अवसर था, जब विपक्ष के नेता के रूप में दुनिया के देशों में ऑफीशियली जाकर भारत के शैडो प्राइम मिनिस्टर के रूप में अपने को प्रूफ कर सकते थे. इसके बदले उन्होंने ऐसे नाम दिए, जिन पर सरकार ने असहमति दिखाई और फिर ऐसे नेताओं को चुना जो सामान्य रूप से कांग्रेस के भीतर विरोधी आवाज के रूप में माने जाते हैं. सलमान खुर्शीद को जरूर इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता लेकिन बाकी नेताओं को तो इसी श्रेणी में माना जाता है.

    शशि थरूर ने कांग्रेस के स्टैंड को विदेश में एक तरह से गलत साबित किया. उन्होंने साफ-साफ कहा कि वर्ष 2016 के बाद भारत ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की है. इस पर विवाद खड़ा हुआ. कांग्रेस के प्रवक्ता ने इस पर आपत्ति की, जिस पर उन्होंने सफाई भी दी. इसके साथ ही भारत को हुए नुकसान पर भी उन्होंने देश के स्टैंड को सपोर्ट किया. शशि थरुर ने तो यहां तक कहा कि वह राष्ट्र के लिए डिप्लोमेसी कर रहे हैं. भारत लौटने के बाद जब दल और राजनीति की स्थिति आएगी तब उस पर अपनी राय व्यक्त करेंगे.

   ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान में घुसकर पाकिस्तान को हिला दिया. साथ ही भारत में सभी दलों की राजनीति को उलट-पुलट कर दिया है. हर दल कह रहा है कि, यह सेना  का अभियान है लेकिन हर दल इसका चुनावी लाभ लेने के लिए अपने-अपने ढंग से अभियान भी चला रहा है.  ना तो पाकिस्तान के लिए ऑपरेशन सिंदूर खत्म हुआ है और ना ही भारत की चुनावी राजनीति में ऑपरेशन सिंदूर खत्म हुआ है.  पाकिस्तान और भारत दोनों देशों में इस ऑपरेशन के दूरगामी प्रभाव दिखाई पड़ेंगे.

    सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी के भी सांसद गए हुए हैं लेकिन उनकी तो कोई खास चर्चा नहीं हो रही है. सारी चर्चा विपक्षी दलों से जुड़े सांसदों की हो रही है. विपक्षी दल के जो सांसद उनके दलों में अपना नूर खोते दिख रहे थे, उन्हें अब देश का गुरूर और कोहिनूर बताया जा रहा है.

   भारत ने पाकिस्तान पर अपना टारगेट हासिल किया तो दुनिया की डिप्लोमेसी में भी अपना टारगेट पूरा किया. राहुल गांधी अगर जाते तो उन्हें भी भारत का कोहिनूर बनने का मौका मिलता. इसे सियासी चूक ही कहा जा सकता हैकि राहुल ने मिला मौका छोड़ कर, थरूर को कोहिनूर बना दिया.