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‘मुफ्त रेवडिय़ां’ देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 22 Jul

सार

‘ग्लोबल साउथ’ के किसी भी देश की इतनी अर्थव्यवस्था नहीं है। एक राष्ट्र के तौर पर भारत पर करीब 200 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है, औसत नागरिक पर 4 लाख रुपए से अधिक का कर्ज है, लेकिन देश के सामने यह कभी भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इतना कर्ज क्यों है, कर्ज किस वास्ते लेना पड़ा? यह स्थिति तब है, जब भारत 4 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक की अर्थव्यवस्था वाला देश है और विश्व में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है..!! 

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विस्तार

फ़्री  बिजली की ‘रेवडिय़ां’ बांटने के कारण राज्यों पर 96 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। यह राशि भारत के सालाना राष्ट्रीय बजट से भी बहुत अधिक है। इस कर्ज पर 13 प्रतिशत ब्याज देना पड़ रहा है। ‘ग्लोबल साउथ’ के किसी भी देश की इतनी अर्थव्यवस्था नहीं है। एक राष्ट्र के तौर पर भारत पर करीब 200 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। औसत नागरिक पर 4 लाख रुपए से अधिक का कर्ज है, लेकिन देश के सामने यह कभी भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इतना कर्ज क्यों है? कर्ज किस वास्ते लेना पड़ा? यह स्थिति तब है, जब भारत 4 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक की अर्थव्यवस्था वाला देश है और विश्व में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 

ताजातरीन मामला बिहार का है, तो वह भी 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक कर्ज में डूबा है, जबकि उसकी प्रति व्यक्ति आय 70,000 रुपए सालाना से कम है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है। बेशक यह नितांत ‘चुनावी रेवड़ी’ है। बिहार में अगस्त माह में जो घरेलू बिल आएंगे, उनमें जुलाई के दौरान 125 यूनिट बिजली की खपत करने वालों का बिल ‘शून्य’ होगा। अजीब विरोधाभास यह है कि नीतीश कुमार मुफ्त बिजली सरीखी ‘चुनावी रेवडिय़ों’ के धुर विरोधी रहे हैं।

विधानसभा के भीतर और बाहर सार्वजनिक तौर पर उन्होंने ‘रेवडिय़ों’ के खिलाफ बयान दिए हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी खुले मंच से कह चुके हैं कि ‘मुफ्त रेवडिय़ां’ देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकती हैं, लेकिन बिहार में क्या हुआ? वहां तो भाजपा सरकार में है। यही नहीं, भाजपा शासित राज्यों-दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उप्र, उत्तराखंड, मप्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा से लेकर महाराष्ट्र-में भी ‘मुफ्त बिजली’ मुहैया कराई जा रही है। बेशक ‘रेवडिय़ों’ की यह चुनावी परंपरा अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में 200 यूनिट बिजली मुफ्त बांट कर शुरू की थी। उनकी यह ‘चुनावी रेवड़ी’ पंजाब में भी बेहद कामयाब साबित हुई और आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनी। उसके बाद ‘आप’ ने तो इसे ‘चुनावी करिश्मा’ बना लिया।

देखा-देखी भाजपा और कांग्रेस ने भी खूब ‘रेवडिय़ां’ बांटीं। कांग्रेस की तीन राज्य सरकारें मुफ्त बिजली बांट रही हैं। यह दीगर है कि उन राज्यों पर भी लाखों करोड़ रुपए के कर्ज हैं। तमिलनाडु में विपक्षी दल द्रमुक की सरकार है और उस पर 9 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है, लेकिन सरकार पॉवरलूम कर्मचारियों को 1000 यूनिट तक बिजली मुफ्त दे रही है। दरअसल इन सरकारों और राजनीतिक दलों को देश की अर्थव्यवस्था की जरा-सी भी चिंता नहीं है। दिल्ली अर्धराज्य है, संघशासित क्षेत्र है। वहां भारत सरकार और संसद भी है।

दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी बेहतर है। दिल्ली महानगर के निवासियों को किसी ‘मुफ्त रेवड़ी’ की जरूरत ही नहीं है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए यह हथकंडा भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी है, तो उसने ‘आप’ सरकार की 200 यूनिट मुफ्त बिजली की योजना जारी रखी है। नीतीश कुमार जब पहली बार मुख्यमंत्री बने और उनकी सत्ता को स्थायित्व मिला, तो उन्होंने महिलाओं की खातिर राज्य में शराबबंदी लागू की। हालांकि उन्हें एहसास था कि इससे खजाने को करोड़ों का घाटा होगा, लेकिन सामाजिकता की खातिर उन्होंने यह कदम उठाया। हालांकि शराबबंदी पूरी तरह नाकाम रही, लेकिन उसका राजनीतिक और चुनावी प्रभाव गहरा रहा।

अब बिजली बोर्ड और बिजली वितरण कंपनियों के व्यापक घाटे के बावजूद मुख्यमंत्री ने मुफ्त बिजली मुहैया कराने का निर्णय लिया है, तो वह भी जनता को राहत और सुविधा पहुंचाने के मद्देनजर किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार बिजली बोर्डों के वित्तीय संकट और घाटे का मुद्दा देश के सामने रखा था। सरकार ने लाखों करोड़ रुपए के ‘बेल पैकेज’ राज्य बिजली बोर्डों को दिए हैं, लेकिन अब भी कर्ज कितना है, यह देश के सामने है। बिहार सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की घोषणा की है, लेकिन उससे पहले बिहार से अपराध का खात्मा किया जाए।