केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जन नेता हैं. जनता के कनेक्ट से उनकी राजनीति शुरू हुई थी और यही उनका स्वभाव बन गया है. अगर कुछ दिनों तक जनता से उनका कनेक्ट कम हो जाता है, तो वह असहज हो जाते हैं. राजनीति में आने से पहले की पद यात्रा के कारण उन्हें पांव-पांव वाले भैया का खिताब मिला था..!!
फिर तो राजनीति में वह शिखर पर चढ़ते गए. मुख्यमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश में उन्होंने राजनीति के साथ गवर्नेंस में पब्लिक कनेक्ट को अपना आधार बनाया. एक बार चुनाव हारने के बाद, फिर कांग्रेस तोड़कर सरकार बनाई और उन्हीं के नेतृत्व में अगले चुनाव में फिर से बीजेपी को दो तिहाई बहुमत मिला. वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. पार्टी ने मोहन यादव को सीएम के रूप में चुना. फिर शिवराज विदिशा से सांसद बने और केंद्र में कृषि मंत्री बनाए गए.
खेती, किसानी और किसान शिवराज के पसंदीदा विषय हैं. पहले तो उनके कनेक्ट और संवाद में स्वाभाविकता होती थी फिर धीरे-धीरे राजनीति हावी होती गई. अब उन्होंने विकसित भारत संकल्प यात्रा अपने संसदीय क्षेत्र से प्रारंभ की है. संसदीय क्षेत्र उनका गृह क्षेत्र भी है और अब तक की राजनीति की कर्मभूमि भी यही अंचल रहा है. ओबीसी लीडर होने के कारण वर्तमान राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है. विदिशा संसदीय क्षेत्र की उनकी पदयात्रा का मोटिव तो वही बता सकते हैं, लेकिन इसके पीछे राजनीति से इनकार नहीं किया जा सकता.
मध्य प्रदेश में नई सरकार बनते समय तो शिवराज के बिना सरकार का अनुमान लगाना भी कठिन हो रहा था, लेकिन पार्टी ने दूसरा ओबीसी लीडर खड़ा कर दिया.
राज्य और दिल्ली की राजनीति का अलग-अलग स्वभाव है. दिल्ली में मैदान की राजनीति का बहुत अवसर नहीं है. नदियों के तैराक स्विमिंग पूल के अनुशासन में कई बार भ्रमित हो जाते हैं. दिल्ली में सरकारी कामकाज का अंदाज ब्यूरोक्रेसी आधारित है. पॉलीटिकल लीडरशिप पीएम गाइडेड ही होती है. राज्य के जो सफल नेता दिल्ली की राजनीति में उतरते हैं, वह अक्सर असहज होते देखे गए हैं.
राज्य की राजनीति में उनका ही प्लेग्राउंड, उनका ही चेहरा और उनकी ही जीत का परचम होता है. लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं हो पाता. शिवराज को कृषि मंत्री का प्रभार शायद इसीलिए मिला है, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए किसानों के लिए काम करने की ललक दिखाई थी. उनके पहले मध्य प्रदेश के नरेंद्र सिंह तोमर भी कृषि मंत्री रह चुके हैं. किसानों का आंदोलन उनके समय भी चला था और शिवराज को भी इस आंदोलन का सामना करना पड़ा.
मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान का एक छत्र राज था. कांग्रेस उनके मुकाबले में कहीं मैदान में दिखाई नहीं पड़ती थी. उनकी भाषा शैली और पब्लिक के लिए कल्याणकारी योजनाओं के नए-नए प्रयोग शिवराज को एमपी की राजनीति के बेताज बादशाह होने की अनुभूति देने लगे थे. हारने के बाद किसी को राज्य की राजनीति छोड़ना पड़े, तब तो उसे बर्दाश्त हो जाता है, लेकिन पार्टी को जिताने के बाद भी अगर राज्य की राजनीति से बाहर जाना पड़े, तो यह बहुत कष्टकारी होता है. दिल्ली की राजनीति अगर सूट नहीं करती तो फिर वहां की आबो-हवा में मन नहीं लगता.
शिवराज के जाने के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में जो नया नेतृत्व सामने आया उसने बहुत कम समय में ही अपनी डोर पार्टी नेतृत्व से जोड़ ली. पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के नए नेतृत्व को एक तरीके से आगे बढ़ाने की कमान अपने हाथ में ले ली. ऐसे हालात में शिवराज सिंह चौहान की भूमिका मध्य प्रदेश भाजपा की पॉलिटिक्स और गवर्नेंस में बिल्कुल कट सी गई. उनकी पदयात्रा के पीछे मध्य प्रदेश से अपने कनेक्ट को मजबूती देना तो है ही. संसदीय क्षेत्र को मैसेज देने के साथ ही राज्य की राजनीति के लिए भी ये एक संदेश यात्रा हो सकती है.
मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर में कृषि उद्योग समागम संपन्न हुआ है. इस कार्यक्रम में देश के उपराष्ट्रपति पहुंचे लेकिन मध्य प्रदेश के केंद्रीय कृषि मंत्री होने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान इस कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. इसके पहले भी मंदसौर में कृषि उद्योग समागम हो चुका है, इस कार्यक्रम में भी केंद्रीय कृषि मंत्री की अनुपस्थिति देखी गई थी. जिस कृषि मंत्री की मध्य प्रदेश में इतनी रुचि हो, उसे राज्य सरकार द्वारा उसके विभाग से जुड़े आयोजनों में नहीं बुलाना यही संकेत कर रहा है, कि भीतरखाने कुछ राजनीति चल रही है.
एमपी में बीजेपी की राजनीति में अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. नए अध्यक्ष की नियुक्ति का भी लंबे समय से इंतजार हो रहा है. कई नाम उछल रहे हैं. इस पर भी राजनीति चरम पर चल रही है.
शिवराज सिंह चौहान पब्लिक कनेक्ट के साथ ही इवेंट को भव्य स्वरूप देने में भी माहिर माने जाते हैं. उनकी पदयात्रा के जो दृश्य दिखाई पड़ रहे हैं, उससे यही लगता है कि पब्लिक कनेक्ट के मामले में उनका आधार कमजोर नहीं हुआ है. शिवराज सिंह का पूरा परिवार इस पदयात्रा में उनके साथ चल रहा है. उनके पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान तो बुधनी विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में दखल रखते हैं. अब तो यह भी कहा जा रहा है कि उनकी बहू भी राजनीति में रुचि रखती हैं. उनकी पदयात्रा का लक्ष्य परिवार की राजनीति को भी स्थापित करने का हो सकता है.
अभी तो यह यात्रा संसदीय क्षेत्र तक सीमित है, अगर यह यात्रा राज्य के दूसरे हिस्सों में होती है, तो फिर इसकी राजनीति खुलकर सामने आएगी. कमलनाथ दिल्ली की राजनीति से राज्य की राजनीति में आए थे. जो उन्हें रास नहीं आई. वहीं शिवराज सिंह चौहान राज्य की राजनीति छोड़कर दिल्ली की राजनीति में गए हैं. किसी को राज्य की राजनीति सूट नहीं करती तो, किसी को दिल्ली की, लेकिन राजनेता जो भी करता है, उसमें राजनीति नहीं होगी ऐसा सोचना नासमझी होगी.
शिवराज की पदयात्रा में राजनीति की मात्रा कितनी है और विकसित भारत का संकल्प कितना है, यह वक्त के साथ सामने आएगा. शिवराज ने पहली बार चुनाव हारने के बाद कमलनाथ सरकार को चुनौती देने के लिए कहा था टाइगर ज़िंदा है. अब पदयात्रा में टाइगर ज़िंदा होने की स्ट्राइक किस पर है, यह समझने की बात है.