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आख़िर ऐसा क्यों?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 29 May

सार

इंदौर जिले के महू के रायकुंडा गांव में एक कार्यक्रम में उन्होंने भारतीय सेना की पहली महिला इंफेंट्री अधिकारी, कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताया, वीडियो के वायरल होने के बाद न सिर्फ मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर में शाह के खिलाफ लोगों ने विरोध व्यक्त किया है..!!

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विस्तार

इसे क्या कहें? मध्यप्रदेश में हुए पूरे घटनाक्रम पर राष्ट्रीय महिला अयोग मूकदर्शक बना हुआ है। इससे साफ जाहिर है कि आयोग पार्टी और सरकारों के इशारे के बगैर काम नहीं करते, बेशक एक जैसे मामले ही क्यों न हों…

राजनीतिक दल सत्ता की सुविधा के हिसाब से सारी कार्रवाई तय करते हैं। कहने को कानून की पालना और समानता की दलील देने वाले नेता मौका पडऩे पर स्पष्ट भेदभाव बरतने में कसर बाकी नहीं रखते। विपक्ष बेशक कितना ही शोर-शराबा क्यों न मचाए, सत्ताधारी दलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बेशक फर्क बिल्कुल पानी की तरह साफ हो, पूरा देश उनकी सच्चाई को जानता हो, यहां तक कि देश की शीर्ष अदालत भी कह दे, तब भी राजनीतिक दल बेशर्मी की चादर ओढ़े रहते हैं। इसे मौजूदा तीन ज्वलंत उदाहरणों से समझा जा सकता है कि राजनीतिक दल निहित स्वार्थों के चलते एक जैसे मामले में किस तरह दोहरी नीति अपनाते हैं। पहला मामला है मध्यप्रदेश के भाजपा नेता और मंत्री विजय शाह का।

इंदौर जिले के महू के रायकुंडा गांव में एक कार्यक्रम में उन्होंने भारतीय सेना की पहली महिला इंफेंट्री अधिकारी, कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताया। वीडियो के वायरल होने के बाद न सिर्फ मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर में शाह के खिलाफ लोगों ने विरोध व्यक्त किया है। हाईकोर्ट के निर्देश पर मंत्री विजय शाह के खिलाफ इंदौर के मानपुर थाने में केस दर्ज हुआ। सुनवाई के दौरान कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए एफआईआर की कॉपी रखी गई। एफआईआर देखकर जस्टिस अतुल श्रीधरण और अनुराधा शुक्ला हैरान रह गईं। दोनों ने देखा कि एफआईआर में अपराध का जिक्र ही नहीं है। इसके बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर को कमजोर और असंतोषजनक बताया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि केस को कमजोर करने के लिए राज्य सरकार ने घोर छल किया है। एफआईआर इस तरह से लिखी गई है कि आगे चलकर खारिज हो जाए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि छल को शुरू से ही रोकने की जरूरत है।

हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मंत्री शाह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने भी शाह को खरी-खोटी सुनाने में कसर बाकी नहीं रखी। इसी मामले में मंत्री विजय शाह के माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। साथ ही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें माफी की जरूरत नहीं है, यह अवमानना नहीं है। हम इसे कानून के अनुसार संभाल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ लोग तो इशारों से माफी मांगते हैं। कुछ घडिय़ाली आंसू बहाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्री के बयान से पूरा देश शर्मसार है और मंत्री को उचित माफी मांगकर या माफी के साथ खेद व्यक्त करके खुद को सही साबित करना चाहिए था।

यह  एक ऐसा देश हैं जो कानून के शासन का पालन करता है और यह उच्चतम से निम्नतम स्तर तक के लिए समान है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए एसआईटी बनाने का आदेश दिया। दूसरा मामला हरियाणा का है। सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गईं। एक प्राथमिकी हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और दूसरी सोनीपत जिले के जठेरी गांव के सरपंच योगेश जठेरी ने कराई। प्रो. महमूदाबाद ने फेसबुक पर पोस्ट की थी, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में आतंकवाद को वहां की सरकार से अलग करके नहीं देखा जा सकता। खुद इससे पीडि़त होने का नाटक कर पाकिस्तान इन कार्रवाइयों से बच नहीं सकता। उन्होंने सैन्य कार्रवाई को आतंकी ठिकानों तक सीमित रखने और नागरिक तथा सैनिक ठिकानों को उससे अलग रखने के लिए भारतीय सेना की सराहना की है। ]

पोस्ट के दूसरे हिस्से में युद्ध का विरोध किया गया। उन्होंने कहा कि युद्ध सबसे ज्यादा नुकसान गरीब लोगों को पहुंचाता है। वह मानते हैं कि ऐसे हालात में युद्ध को टाला नहीं जा सकता, लेकिन यह भी कहते हैं कि सैन्य कार्रवाई से कोई राजनीतिक समस्या हल नहीं होती। उनकी फेसबुक पोस्ट का तीसरा हिस्सा सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसमें लिखा है कि कर्नल सोफिया कुरैशी व विंग कमांडर व्योमिका सिंह को सैन्य कार्रवाई की जानकारी देने की जिम्मेदारी सौंपना देखने में महत्वपूर्ण है, लेकिन इस भाव को जमीन पर वास्तविकता में बदलना चाहिए, वरना यह एक पाखंड बनकर रह जाएगा। उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ करने वाले दक्षिणपंथियों को चुनौती दी है कि उन भारतीय नागरिकों की रक्षा के लिए भी आगे आएं जो मॉब लिंचिंग और बुलडोजर के मनमाने उपयोग के शिकार हैं। तीसरा उदाहरण राजस्थान का है।

इन उदाहरणों में महत्वपूर्ण यह भी है कि जिन तीनों राज्यों के ये मामले हैं, उनमें भाजपा की सरकार है।

एक तरफ मध्यप्रदेश में मंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने और शीर्ष अदालत की कड़ी फटकार खाने के बाद भी राज्य की भाजपा सरकार ने उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की। यही वजह है कि आरोपी मंत्री से इस्तीफा लेने तक की जेहमत नहीं उठाई गई। दूसरी तरफ हरियाणा का मामला है, जहां प्रोफेसर को टिप्पणी करने पर गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। आश्चर्य की बात यह है कि हरियाणा महिला आयोग ने प्रोफेसर महमूदाबाद पर महिलाओं के अपमान का आरोप लगाया और एफआईआर दर्ज कराई, जबकि मध्यप्रदेश का महिला आयोग आरोपी मंत्री शाह के मामले में चुप्पी साधे हुए है। विडंबना यह भी है कि मध्यप्रदेश में हुए पूरे घटनाक्रम पर राष्ट्रीय महिला अयोग मूकदर्शक बना हुआ है। इससे साफ जाहिर है कि आयोग पार्टी और सरकारों के इशारे के बगैर काम नहीं करते, बेशक एक जैसे मामले ही क्यों न हों।