डीएफओ के गलत जवाब-दावा देने पर वन बल प्रमुख को हाईकोर्ट में मांगनी पड़ी माफ़ी


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स्टोरी हाइलाइट्स

वन बल प्रमुख श्रीवास्तव ने विभाग की गलती स्वीकारते हुए उसे दुरुस्त करने के लिए एक माह का समय मांगा था पर हाई कोर्ट ने उन्हें 15 दिन की मोहलत दी है..!!

भोपाल: डीएफओ के निरंकुश और बेलगाम कार्यशैली के कारण वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव को हाई कोर्ट जबलपुर के  जस्टिस विवेक अग्रवाल की भरी अदालत में माफी मांगनी पड़ी। वन बल प्रमुख श्रीवास्तव ने विभाग की गलती स्वीकारते हुए उसे दुरुस्त करने के लिए एक माह का  समय मांगा था पर हाई कोर्ट ने उन्हें 15 दिन की मोहलत दी है।

उच्च न्यायालय जबलपुर में पदोन्नति को लेकर सेवानिवृत्ति रेंजर शीतल प्रसाद पांडेय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश विवेक अग्रवाल ने वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव को वताया कि उत्तर बालाघाट वन मंडल के सेवानिवृत्ति एवं तत्कालीन वन मंडलाधिकारी आरबीएस बघेल द्वारा जवाब - दावा में गलत दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। जस्टिस अग्रवाल ने विभाग की खिंचाई करते हुए कहा कि किसी ने भी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर अपना दिमाग लगाने की जहमत नहीं उठाई। 

यहां तक ​​कि सरकार द्वारा जो रिकॉर्ड भी पेश किया गया है वह याचिकाकर्ता के डिप्टी के पद पर पदोन्नति के मामले पर विचार के संबंध में है। रेंजर और रेंजर के पद पर नहीं। इस पर वन बल प्रमुख श्रीवास्तव ने 16 अप्रैल 24 को जस्टिस विवेक अग्रवाल की अदालत में यह स्वीकार किया कि उत्तर दाखिल करने में विभाग की ओर से कुछ गलतियां हुई हैं। वह इसके लिए बिना शर्त माफी मांगते हैं। उनका कहना है कि गलती सुधारने और उचित कदम उठाने के लिए उन्हें कुछ समय दिया जाए। विभाग के मुखिया के आग्रह पर जस्टिस अग्रवाल ने गलती को सुधारने और याचिकाकर्ता के दावों को देखने के लिए 15 दिन का समय दिया। 

क्या था मामला

याचिकाकर्ता शीतल प्रसाद पांडेय फॉरेस्ट गार्ड के रूप में वन विभाग में भर्ती हुए थे। 1976 -77 में उनके साथियों को डिप्टी रेंजर पद पर पदोन्नति दे दी गई किंतु शीतल प्रसाद पांडेय इससे महरूम हो गए, क्योंकि उनका  एसीआर क प्लस नहीं था। इसी प्रकार 1994 को उनके बैच के कर्मचारियों को डिप्टी से रेंजर के पद पर पदोन्नति कर दिया गया। पदोन्नति से वंचित  शीतल प्रसाद पांडेय ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष एक मामला दायर किया था जिसे ओए के रूप में पंजीकृत किया गया था। क्रमांक 1355/1995, जो उच्च न्यायालय में स्थानांतरित होने पर डब्ल्यूपी के रूप में पंजीकृत किया गया था। इस मामले में उच्च न्यायालय ने 14 नवंबर 06 को आदेश पारित किया था जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक द्वारा कहा कि याचिकाकर्ता का मामला अपने कनिष्ठों को वरीयता देते हुए पदोन्नति पर विचार करने का हकदार है। 

एसडीओ कल्पना के मामले में भी हो सकती है वन बल प्रमुख की खिंचाई

16 अप्रैल को हाईकोर्ट में वन बल प्रमुख द्वारा माफी मांगने के बाद अब चर्चा है कि कहीं डॉ असीम श्रीवास्तव को पन्ना दक्षिण में पदस्थ एसडीओ कल्पना तिवारी के मामले में भी उच्च न्यायालय की फटकार सुनना न पड़ जाय ? पन्ना दक्षिण वन मंडल में पदस्थ  एसडीओ कल्पना तिवारी ने जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया उच्च न्यायालय जबलपुर में 12 दिसंबर 23 को रिट पिटीशन (WP/30843/2023) दायर की। उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा 21 दिसम्बर 2023 को सुनवाई करते हुए को 45 दिनों में निर्णय लिये जाने हेतु आदेश पारित किया। 5 महीने बाद भी विभाग ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित किये गये निर्णय का पालन नहीं किया। न्यायालय के आदेश के बाद भी विभाग द्वारा निर्णय नहीं लिए जाने के कारण जहां विभाग के मुखिया को एक बार फिर न्यायालय की अवमानना का सामना करना पड़ सकता है वहीं एसडीओ कल्पना तिवारी आईएफएस की दौड़ से बाहर हो गई है। 

सूत्रों का कहना है कि जिस प्रकरण को लेकर कल्पना तिवारी ने हाई कोर्ट जबलपुर में दस्तक दी है उसमें वन विभाग के ओएसडी अनुराग कुमार और बालाघाट सीसीएफ एकेएस सेंगर मुख्यत: दोषी है और दो आईएफएस को बचाने के लिए एसडीओ कल्पना तिवारी को बलि का बकरा बनाया गया है। संक्षेप में मामला यह है कि टीकमगढ़ वन मंडल में हुई चैनलिंक  फेंसिंग और वायरवेड खरीदी में गड़बड़ी के मुख्य जिम्मेदार तत्कालीन डीएफओ एकेएस सेंगर और तत्कालीन प्रभारी डीएफओ एवं वर्तमान ओएसडी वन विभाग अनुराग कुमार है। सेंगर ने निर्धारित प्रक्रिया एवं मापदंड  के अनुसार खरीदी नहीं की और अनुराग कुमार ने भौतिक सत्यापन कराए बिना चालान के आधार पर भुगतान कर दिया है। यह मामला लोकायुक्त में लंबित है।