“युवा” हो तो युवा बनो, युवा दिखो….. अपने गौरव को पहचानो| P ATUL VINOD
भारत युवाओं का देश है| लेकिन ये सिर्फ उम्र के युवा हैं या इनमे यूथ जैसी कोई बात भी है?
उम्र से युवा होना अलग बात है लेकिन व्यक्तित्व और कृतित्व से युवा होना दूसरी बात|
युवा होने के साथ-साथ युवा दिखना बहुत जरूरी है
युवा तभी दिखेंगे जब हम शरीर, मन मस्तिष्क और आत्मा से स्वस्थ होंगे|
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को एक संदेश दिया “शारीरिक दुर्बलता से दूर रहो” | ये संदेश सभी के लिए है| हमारे दुखों का बड़ा कारण शारीरिक दुर्बलता है| स्वामी विवेकानंद ने कहा कि “तुम बलवान बनो” |
“जिस समय तुम्हारा शरीर तुम्हारे पैरों के बल पर दृढ़ता पूर्वक खड़ा होगा, जब तुम अपने को मनुष्य समझोगे तभी तुम उपनिषद और आत्मा की महिमा ठीक ठीक समझ सकोगे|”
शारीरिक पुष्टि के साथ-साथ युवा होने के लिए मानसिक पुष्टि होना भी जरूरी है|
मेंटल स्ट्रेंथ आती है सेल्फ कॉन्फिडेंस से|
आत्म विश्वास ही विजय का भाव लाता है| जब हम अपने आप में श्रद्धा रखेंगे तब हम शक्तिशाली दिखेंगे| हमारे कंधे उठे हुए होंगे, नसें फूली हुई होंगी| शरीर वज्र सा तना होगा|
अपने अंदर ये विश्वास कि हम महान कार्य करने के लिए बने हुए हैं| अपने अंदर ये भरोसा कि मैं कर सकता हूं|
जिसमें विश्वास नहीं वो मनुष्य नहीं| युवा होने का अर्थ ये है कि हम किसी पर निर्भर नहीं है परस्पर निर्भर है लेकिन स्वाबलंबी भी हैं|
जो अपनी सहायता खुद करता है, जो दूसरे को उठाने का साहस रखता है|
हुकूमत नहीं आज्ञा पालन में विश्वास रखता है|
दूसरों की सहायता के लिए तत्पर है|
जो अपनी शक्तियों को इधर उधर व्यर्थ नहीं गवाता|
वो जो आलस, स्वार्थ और ईर्ष्या से दूर है|
वो जो अपने अच्छे बुरे की जिम्मेदारी खुद लेता है|
वो जो संगठित होकर चलने में विश्वास रखता है|
वो जिसे विश्वास है कि वो इमानदारी के दम पर अपनी आजीविका चला लेगा|
वो जो छोटे-मोटे हवाओं के झोंके से परेशान होकर अपने आत्म स्वाभिमान से सौदा नहीं करता|
वो जो राष्ट्र का सेवक है|
वो जिसके अंदर सब के प्रति प्रेम है|
वो जो अपने राष्ट्र के लिए सब कुछ समर्पित करने का माद्दा रखता है|
वो जो हर हाल में सच के साथ खड़े होने की ताकत रखता है|
वो जिसके अंदर धैर्य है, वो जिसके अंदर अनंत ईश्वरीय सत्ता के प्रति अगाध श्रद्धा है|
वो “युवा” है|