कोई रस-भाव का प्यासा कहीं मिल जाए, मिलवाना - दिनेश मालवीय "अश्क"
स्टोरी हाइलाइट्स
न जो पोखर-सा सीमित हो,सदा नदिया-सा बहता होजगत के व्यंग्य दृढ़ता से, पहाड़ो-सा जो सहता होजिसे दुनिया की कुछ परवा,नहीं मन में होडर कोईभरी दुनिया में रहकर भी, हमेशा ख़ुद में रहता हो
कोई रस-भाव का प्यासा कहीं मिल जाए, मिलवाना
कोई रसवंत पगला-सा कहीं मिल जाए,मिलवाना।
नहीं हो लक्ष्य जिसका लूटना, केवल लुटाना हो
किसीको भी नहीं केवल, स्वयं को ही मिटाना हो
कि जिसके पास में दौलत कोई कुछ और हो ना हो
लबालब प्रेम से दिल का भरा जिसका ख़जाना हो
अलग हो बात दुनिया से, अदा जिसकी निराली हो
कोई खिसका जो थोड़ा-सा कहीं मिल जाए,मिलवाना।
न जो पोखर-सा सीमित हो,सदा नदिया-सा बहता हो
जगत के व्यंग्य दृढ़ता से, पहाड़ो-सा जो सहता हो
जिसे दुनिया की कुछ परवा,नहीं मन में होडर कोई
भरी दुनिया में रहकर भी, हमेशा ख़ुद में रहता हो
न मस्ती के लिए हो जो किसी भी बात पर निर्भर
कोई ख़ुद में ही डूबा-सा कहीं मिल जाए, मिलवाना।
जो फूलों को खिला देखे,तो ख़ुद खिल जाए फूलों-सा
कि जिसका भाव हो निश्छल,लड़कपन जैसी भूलों सा
नहीं जिसको डिगा पाए, प्रलोभन कोई भी जग का
कि हो क़िरदार जिसका ठोस शाइर के उसूलों-सा
जो हो बाहर से पत्थर और भीतर से बहुत कोमल
कोई तुमको जो दुर्वासा कहीं मिल जाए, मिलवाना।