दूसरे देशों के लोग जो कहें सो कहें,लेकिन स्वयं अनेक भारतवासी भी इस बात से सहमत नहीं हैं कि प्राचीन भारत में विमान होते थे और कोई विमान कला भी मौजूद थी| वेदों और रामायण आदि ग्रंथों में विमानों के उल्लेख को वे कपोल कल्पना मानते हैं| हमारे समक्ष एक ऐसा ग्रन्थ उपस्थित है जिससे यह मानना पड़ेगा कि विमान के विषय में हमारे पूर्वजों ने कितने कोटि के वैज्ञानिक तत्त्व और प्रविधि को ढूंढ निकाला था । ग्रन्थ है-प्राचीनतम महर्षि भरद्वाज की रचना ‘यन्त्रसर्वस्व’ ।
यह ग्रन्थ बड़ौदा राज्य के पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में वर्तमान हैं, जो कुछ खंडित है । उसका ‘वैमानिक प्रकरण’ बोधानंद की बनायीं हुई वृति के साथ छप चुका है ।
इसकेपहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पचास ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें अगस्त्यकृत ‘शक्तिसूत्र’, ईश्वरकृत ‘सौदामिनी कला’, भरद्वाजकृत ‘अंशुमत्तन्त्र’, ‘आकाश शास्त्र’ तथा ‘यन्त्रसर्वस्व’, शाकटायनकृत ‘वायुतत्वप्रकाश’, नारदकृत ‘वैश्वानरतंत्र’ एवं ‘धूमप्रकरण’ आदि है ।
विमान की परिभाषा बताते हुए कहा गया है-
पृथिव्यप्स्वन्तरिक्षेषु खगवद्वेगत: स्वयम् ।
य: समर्थो भवेद् गन्तुं स विमान इति स्मृत: ।।
अर्थात् “जो पृथ्वी, जल और आकाश में पक्षियों के समान वेगपूर्ण चल सके, उसका नाम विमान हैं ।” ‘रहस्यज्ञोऽधिकारी’ (भरद्वाज-सूत्र अ| १, सू| २)
वृति-
वैमानिकरहस्यानि यानि प्रोक्तानि शास्त्रत: ।
द्वात्रिंशदिति तान्येव यानयन्तृत्व्कर्माणि ।।
एतेन यानयन्तृत्वे रहस्यज्ञानमन्तरा ।
सूत्रेऽधिकारसंसिद्धिर्नेति सूत्रेण वर्णितम् ।।
विमानरचने व्योमारोहणे चालने तथा ।
स्तंभ्ने गमने चित्रगतिवेगादिनिर्णये ।।
वैमानिकरहस्यार्थज्ञानसाधनमन्तरा ।
यतोऽधिकारसंसिद्धिर्नेति सम्यग्विनिर्णितम् ।।
शास्त्र में कहा गया है कि विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है । शास्त्रों में बत्तीस वैमानिक रहस्य बताये गए हैं|विमान-चालकों को उनका ठीक से ज्ञान होना ही चाहिए| सूत्र के अर्थ से यह सिद्ध हुआ कि रहस्य जाने बिना मनुष्य यान चलाने का अधिकारी नहीं हो सकता| विमान बनाना, उसे भूमि से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना, टेढ़ी-मेढ़ी गीत से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना आदि वैमानिक रहस्यों का पूर्ण अनुभव हुए बिना यान चलाना असंभव है। विमान चलाने के बत्तीस रहस्य कहे गये है ।
इस वैमानिक प्रकरण में कहे गए ग्रन्थ और ग्रंथकारों के नामों से यहस्पष्ट होता है कि हमारे पूर्वज विमान-शास्त्र में निपुण थे| आजकल वैज्ञानिक विमान द्वारा जिन कलाओं का उपयोग करते हैं, वे सभी कलाएं उन लोगों के पास थीं|इन ग्रंथों के अनुसार दूरबीन की भांति कोई दूरदर्शक यंत्र उनके पास थे । आजकल वैज्ञानिकों के समान दूर से प्रत्येक शत्रु-विमान का पता लगा लेने की कला भी उनके पास थी । वे लोग गैस, बम आदि द्वारा शत्रु-संहार करते थे|
सामान्यतः आजकल यह माना जाता है कि पक्षियों की तरह आकाश में उड़ने का मानव का स्वप्न राइट बंधुओं ने सन् 17 दिसम्बर 1903 में विमान बनाकर पूरा किया और विमान विद्या विश्व को पश्चिम की देन है । इसमें संशय नहीं कि आज विमान विद्या अत्यंत विकसित अवस्था में पहॅंच चुकी है । परंतु महाभारत काल तथा उससे पूर्व भारतवर्ष में भी विमान विद्या का विकास हुआ था । न केवल विमान अपितु अंतरिक्ष में स्थित नगर रचना भी हुई थी इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वांग्मय में मिलते हैं ।
पुराणों में विभिन्न देवी देवता , यक्ष , विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं इस प्रकार के उल्लेख आते हैं । त्रिपुरा याने तीन असुर भाइयों ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का निर्माण किया था , जो पृथ्वी, जल, व आकाश में आ जा सकते थे और भगवान शिव ने जिन्हें नष्ट किया । रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन है । महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आता है । भागवत में कर्दम ऋषि की कथा आती है । तपस्या में लीन रहने के कारण वे अपनी पत्नी की ओर ध्यान नहीं दे पाए । इसका भान होने पर उन्होंने अपने विमान से उसे संपूर्ण विश्व कादर्शन कराया ।
उपर्युक्त वर्णन जब आज का तार्किक व प्रयोगशील व्यक्ति सुनता या पढ़ता है तो उसके मन में स्वाभाविक विचार आता है कि यें सब कपोल कल्पनाएं हैं मानव के मनोंरंजन हेतु गढ़ी कहानियॉ हैं । ऐसा विचार आना सहज व स्वाभाविक है क्योंकि आज देश में न तो कोई प्राचीन अवशेष मिलते हैं जों सिद्ध कर सकें कि प्राचीनकाल में विमान बनाने की तकनीक लोग जानते थें ।
भरद्वाज मुनि ने विमान की परिभाषा , विमान का पायलट जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया , आकाश मार्ग , वैमानिक के कपड़े , विमा के पुर्जे , ऊर्जा , यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का वर्णन किया है ।
विमान की परिभाषा
अष् नारायण ऋषि कहते हैं जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है ।
शौनक के अनुसार- एक स्थान से दूसरे स्थान को आकाश मार्ग से जा सके , विश्वम्भर के अनुसार - एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सके, उसे विमान कहते हैं ।
रहस्यज्ञ अधिकारी ( पायलट ) - भरद्वाज मुनि कहते हैं, विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधकारी है ।
शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं ।
इस ग्रन्थ में विमानचालक (पाइलॉट) के लिये 32 रहस्यों (systems) की जानकारी आवश्यक बतायी गयी है। इन रहस्यों को जान लेने के बाद ही पाइलॉट विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है। ये रहस्य निम्नलिखित हैं-
मांत्रिक, तान्त्रिक, कृतक, अन्तराल, गूढ, दृश्य, अदृश्य, परोक्ष, संकोच, विस्तृति, विरूप परण, रूपान्तर, सुरूप, ज्योतिर्भाव, तमोनय, प्रलय, विमुख, तारा, महाशब्द विमोहन, लांघन, सर्पगमन, चपल, सर्वतोमुख, परशब्दग्राहक, रूपाकर्षण, क्रियाग्रहण, दिक्प्रदर्शन, आकाशाकार, जलद रूप, स्तब्धक, कर्षण।
वैमानिक शास्त्र में कुल 8 अध्याय और 3000 श्लोक हैं।
विमान विज्ञान विषय पर कुछ मुख्य प्राचीन ग्रन्थों का ब्योरा इस प्रकार हैः-
1. ऋग्वेद- इस आदि ग्रन्थ में कम से कम 200 बार विमानों के बारे में उल्लेख है। उन में तिमंजिला, त्रिभुज आकार के, तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हे अश्विनों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था। उन में साधारणत्या तीन यात्री जा सकते थे। विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण, रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उन के दोनो ओर पंख होते
याता-यात के लिये ऋग वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है-
जल-यान – यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 6.58.3)
कारा – यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद 9.14.1)
त्रिताला – इस विमान का आकार तिमंजिला था। (ऋग वेद 3.14.1)
त्रिचक्र रथ – यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता था। (ऋग वेद 4.36.1)
वायु रथ – रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 5.41.6)
विद्युत रथ – इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। (ऋग वेद 3.14.1).
विमानिका शास्त्र–1875 ईसवी में भारत के एक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ को ईसा से 400 वर्ष पूर्व का बताया जाता है तथा ऋषि भारदूाज रचित माना जाता है। इस का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है। इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं। खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं।
इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थेः-
विमान के संचलन के बारे में जानकारी, उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी, तुफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा के उपाय, आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि। इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी।
विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है। ऐक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।
यन्त्र सर्वस्वः– यह ग्रन्थ भी ऋषि भारद्वाज द्वारा रचित है। ग्रन्थ में ऋषि भारदूाजने विमानों को तीन श्रेऩियों में विभाजित किया हैः-
अन्तरदेशीय– जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
अन्तरराष्ट्रीय– जो एक देश से दूसरे देश को जाते
अन्तीर्क्षय– जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते
इन में सें अति-उल्लेखलीय सैनिक विमान थे जिन की विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं.
समरांगनः सूत्रधारा– य़ह ग्रन्थ विमानों तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में जानकारी देता है।इस के 230 पद्य विमानों के निर्माण, उडान, गति, सामान्य तथा आकस्माक उतरान एवम पक्षियों की दुर्घटनाओं के बारे में भी उल्लेख करते हैं।
समरांगनः सुत्रधारा के अनुसार सर्व प्रथम पाँच प्रकार के विमानों का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु, यम, कुबेर तथा इन्द्र के लिये किया गया था। पश्चात अतिरिक्त विमान बनाये गये। चार मुख्य श्रेणियों का ब्योरा इस प्रकार हैः-
रुकमा– रुकमानौकीले आकार के और स्वर्ण रंग के थे।
सुन्दरः–सुन्दर राकेट की शक्ल तथा रजत युक्त थे।
त्रिपुरः–त्रिपुर तीन तल वाले थे।
शकुनः– शकुनः का आकार पक्षी के जैसा था।
कथा सरित-सागर– यह ग्रन्थ उच्च कोटि के श्रमिकों का उल्लेख करता है जैसे कि काष्ठ का काम करने वाले जिन्हें राज्यधर और प्राणधर कहा जाता था। यह समुद्र पार करने के लिये भी रथों का निर्माण करते थे तथा एक सहस्त्र यात्रियों को ले कर उडने वालो विमानों को बना सकते थे। यह रथ-विमान मन की गति के समान चलते थे।
कोटिल्य के अर्थ शास्त्र में अन्य कारीगरों के अतिरिक्त सोविकाओं का उल्लेख है जो विमानों को आकाश में उडाते थे । उपरोक्त तथ्यों को केवल कोरी कल्पना कह कर नकारा नहीं जा सकता. कल्पना को भी आधार के लिये किसी ठोस धरातल की जरूरत होती है।
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