महर्षि महेश योगी: वो बाबा जो भक्तों को उड़ना सिखाते थे!


स्टोरी हाइलाइट्स

महर्षि महेश योगी: वो बाबा जो भक्तों को उड़ना सिखाते थे! Yogi
महर्षि योगी ने वैदिक ज्ञान से संपूर्ण विश्व को आलौकित किया और उनके हृदयग्राही सरस प्रवचनों ने हिन्दुस्तान के जबलपुर से लेकर हॉलैण्ड तक कई शहरों के श्रोताओं को सम्मोहित किेया। 

महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास ही स्थित पांडुका गांव में हुआ। उनके पिता का नाम रामप्रसाद श्रीवास्तव था। महर्षि योगी का वास्तवित नाम महेश प्रसाद श्रीवास्तव था।

पश्चिम में जब हिप्पी संस्कृति का बोलबाला था तो दुनिया भर में लाखों लोग महर्षि महेश योगी के दीवाने हो रहे थे.

ये आज के दौर में मशहूर बाबा रामदेव और दूसरे योग गुरुओं से पहले की बात है.

वो महर्षि महेश योगी ही थे जिन्हें योग और ध्यान को दुनिया के कई देशों में पहुँचाने का श्रेय दिया जाता है.

5 फ़रवरी, 2008 को महर्षि महेश योगी का नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया था.

उन्होंने 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के ज़रिए दुनिया भर में अपने लाखों अनुयायी बनाए थे.

उड़ना सिखाने वाले बाबा

महर्षि महेश योगी इस बात के लिए के लिए सुर्खियों में आए थे कि उन्होंने अपने भक्तों को 'उड़ना सिखाने का दावा' किया था.

ये महर्षि योगी के 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) का ही एक हिस्सा था. इसमें उनके भक्त फुदकते हुए उड़ने की कोशिश करते थे.

'फ़्लाइंग योगा' को महर्षि ने 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन सिद्धी प्रोग्राम' का नाम दिया था और इसे ध्यान चिकित्सा के तौर पर प्रायोजित किया था.

महर्षि का दावा था कि 'फ़्लाइंग योगा' की उनकी थिअरी पूरी तरह से शोध के बाद विकसित की गई है.

उनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थे। नौकरी के सिलसिले में उनका तबादला जबलपुर हो गया। लिहाजा पूरा परिवार गोसलपुर में रहने लगा। योगी का प्रारंभिक बचपन यहीं बीता। उन्हें यहां की प्रकृति बहुत पसंद थी। यहां के हितकारिणी स्कूल से मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी की उपाधि ली और साथ ही गन कैरिज फैक्टरी में उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। फैक्टरी की छोटी-सी नौकरी से लेकर विश्वविख्यात महर्षि बनने तक की यात्रा में कई रोचक पड़ाव भी आए।

जब एक दिन वे साइकिल से बड़े भाई के घर की तरफ जा रहे थे तभी उनके कानों में सुमधुर प्रवचन सुनाई पड़े। सम्मोहक बोल सुनते ही वे साइकिल को एक तरफ पटक कर वहां खिंचे चले गए। जैसे ही उन्होंने स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को देखा और सुना तो अपनी सुध-बुध खो बैठे। उसी क्षण उनके मन में वैराग्य जागृत हो गया। उसके बाद योगी फिर कभी घर नहीं गए। उनके लिए पूरा विश्व एक परिवार की तरह हो गया।


अपने गुरु स्वामी ब्रहानंद सरस्वती से आध्यात्म साधना ग्रहण कर भावातीत ध्यान की अलख जगाने के लिए महर्षि विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने करीब सौ से अधिक देशों की यात्रा की।

1953 में ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद को जब वाराणसी के दशमेश घाट पर जल समाधि देने लगे तब शोकाकुल गुरुभक्त महेश ने भी गंगा में छलांग लगा दी। फिर काफी मशक्कत के बाद गोताखोरों ने उन्हें किसी तरह बाहर निकाला।

पांच फरवरी 2008 को महाशून्य में निलय हुए महर्षि महेश योगी ने कहा - 'मेरे न होने से कुछ नुकसान नहीं होगा। मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा...' उनके इन शब्दों से महर्षि पहले से अधिक प्रासंगिक और ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे।

महर्षि योगी ने भावातीत ध्यान के माध्यम से पूरी दुनिया को वैदिक वांग्मय की संपन्नता की सहज अनुभूति कराई। नालंदा व तक्षशिला के अकादमिक वैभव को साकार करते हुए विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय की सुपरंपरा को गति दी। महर्षि द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान एक विशिष्ठ व अनोखी शैली है, जो चेतना के निरंतर विकास को प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है।

योगी ने भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक, आध्यात्मिक महापुरुष, विश्व बंधुत्व और आधुनिकता व संसार के महान समन्वयक होने का गौरव हासिल किया। नर्मदा के तट पर बसी ऋषि जाबालि की पवित्र नगरी जबलपुर से भावातीत उड़ान भरने वाली इस दिव्य विभूति ने अपने वैदिक ज्ञान से संपूर्ण विश्व को आलौकित किया।

योग और ध्यान के आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी का नीदरलैंड्स स्थित अपने घर में पांच फरवरी 2008 को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।

महेश प्रसाद ने महर्षि महेश योगी बनकर संपूर्ण दुनिया को शांति और सदाचार की शिक्षा दी और विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया।