भोपाल: राजस्व की सबसे अहम कड़ी कहे जाने वाले पटवारी यूं तो सरकार से आए दिन विभिन्न मुद्दों पर पंगा लेते रहते हैं, लेकिन इस बार विवाद उनके अपने ही कुनबे मे है, वजह बनी है प्रांत अध्यक्ष के निर्वाचन में हुई धांधली।
पटवारियों के सबसे बड़े संगठन म०प्र० पटवारी संघ के प्रांताध्यक्ष के निर्वाचन में उपेंद्रसिंह ने 40 मतों से जीत दर्ज की है जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी अश्विन सैनी ने 118 मत प्राप्त कर कड़ी टक्कर दी । प्रांताध्यक्ष उपेंद्रसिंह पर मतदाता सूची में धांधली करने के आरोप लगे । शिकायत फर्म्स एंव सोसाइटी तक पहुंची लेकिन कोशिशें नाकाम रही ।
प्रांताध्यक्ष के निर्वाचन में जिलाध्यक्ष , जिला सचिव और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य वोट कर प्रांताध्यक्ष निर्वाचित करते आए हैं। 38 जिलों में प्रांताध्यक्ष निर्वाचित हैं,बाकि जिलों में उपेंद्रसिंह द्वारा मनोनीत अस्थाई जिलाध्यक्ष हैं। इसके साथ ही प्रांतीय कार्यकारिणी में ऐसे पटवारियों को स्थान दिया था जिनका अपने ही जिले में जनाधार नहीं है, तथा विवादित भी हैं।
यहां तक कि अनुपातहीन संपत्ति में लोकायुक्त के छापे और कोर्ट में प्रकरण विचाराधीन होने के चलते 7 वर्षों से निलंबित चल रहे पटवारी तथा उसकी पत्नी को भी मतदाता सूची में शामिल किया गया था । ऐसे उपकृत और स्वामी भक्त पटवारियों के 148 वोट ने उपेंद्रसिंह को फिर से प्रांताध्यक्ष बनाया।रिजल्ट घोषित होने के बाद 38 जिलों ने प्रांताध्यक्ष का बहिष्कार किया है साथ ही नया संगठन बनाने की घोषणा की है ।
ऐसे हुई धांधली
० मनोनीत जिलाध्यक्ष को दो माह तक पद पर रहने का अधिकार है दो वर्षों से जिलाध्यक्ष बने हुए हैं।
० संगठन का संविधान संशोधन प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक में होता है। गुपचुप संविधान संशोधन किया संविधान संशोधन प्रस्ताव पर मात्र तीन पटवारियों के हस्ताक्षर हैं।
० निलंबित पटवारियों को मतदाता सूची में शामिल किया ।
० असली प्रांतीय कार्यकारिणी को विलोपित कर मनगढ़ंत कार्यकारिणी की सूचि को निर्वाचन के कुछ दिनों पहले जारी किया उसे ही मतदाता सूचि बताया।