भोपाल: राज्य सरकार ने नई एसओपी (स्टेण्डर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर) जारी की है जिसके तहत वनाधिकार कानून के तहत वनवासियों को मिले वन भूमि के पट्टों का क्षेत्रफल बढ़ाया जायेगा। यह एसओपी चार विभागों के प्रमुखों के हस्ताक्षर से संयुक्त रुप से जारी की गई है जिसमें एसीएस वन अशोक बर्णमाल, प्रमुख सचिव राजस्व विवेक पोरवाल तथा जनजातीय कार्य विभाग एवं पंचायत विभाग के प्रमुख सचिव गुलशन बामरा शामिल हैं।
एसओपी में कहा गया है कि वन ग्रामों के सेंपल सर्वेक्षण में ज्ञात हुआ है कि कुछ वन ग्रामों में अधिकतम 4 हेक्टेयर की सीमा तक अधिकार पत्र दिये गए हैं जिसके कारण वन ग्रामों के पट्टेधारियों को उनके पट्टे से कम क्षेत्रफल पर अधिकार पत्र जारी किए गए हैं।
यह भी ज्ञात हुआ है कि वन ग्रामों के अधिकांश अन्य परम्परागत वन निवासी पट्टेधारियों को वन अधिकार पत्र वितरित नहीं किए गए हैं। इसलिये एसओपी के तहत वन विभाग के नक्शे में वन ग्राम की जो बाह्य सीमा दर्शायी गयी है, उसका स्थल सत्यापन करना होगा। वन अधिकार समिति और वन विभाग के कर्मचारी तथा पटवारी साथ-साथ वनग्राम सीमा का भ्रमण कर मुनारों के स्थान का सत्यापन करेगी। इससे वनग्राम की बाह्य सीमा की समझ बनेगी।
बाह्य सीमा निर्धारण के बाद पूरे क्षेत्र का नक्शा जीपीएस से सर्वे कर वन अधिकार समिति, वनरक्षक तथा पटवारी संयुक्त रूप से तैयार करेगें। इसके बाद वन अधिकार पत्र धारकों/पट्टेधारियों की सूची तैयार की जायेगी। नक्शे में पूर्व से जारी वन अधिकार पत्रों की स्थिति दर्ज की जायेगी।
ऐसे पट्टेधारी जिन्हें वन अधिकार पत्र जारी नहीं किया गया या आंशिक वन अधिकार पत्र किया गया है, उनकी शेष भूमियों जिन पर उनका कब्जा है, का विवरण दर्ज किया जायेगा। कब्जा केवल वन ग्राम की सीमा के अंदर ही होना चाहिए। पट्टेधारी जिनकी मृत्यु हो गई है, उनके वारिसों के नाम लिखे जाएंगे। इस सूची में इनकी भूमियों पर खड़े वृक्षों को सूची में दर्ज किया जायेगा।
एसओपी में आगे कहा गया है कि 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व या बाद के कब्जे के निर्धारण हेतु यथासंभव वनाधिकार अधिनियम में वर्णित अन्य साक्ष्यों के साथ-साथ वन विभाग में उपलब्ध सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग अनिवार्य रूप से करना है। वन अधिकार समिति द्वारा उक्त कार्य में वन अमले व पटवारी के साथ-साथ सरकारी सहायक अधिकारी पेसा मोबिलाइजर्स, जन अभियान परिषद का सहयोग लिया जाएगा।
जनजाति कल्याण विभाग से मान्यता प्राप्त/लंबित/निरस्त दावों की सूची प्राप्त कर वन अधिकार समिति द्वारा ग्राम से मिले अधिकार पत्रों के साथ उसका मिलान किया जावे। सूची में खेतों घरों के सामने वन अधिकार मान्य हुये हैं अथवा नहीं, स्पष्ट रूप से दर्ज करना होगा। ऐसे पट्टा धारी चाहे वे किसी भी वर्ग के हो, जिन्हें पूर्व में दिये गये पट्टे से कम क्षेत्रफल की भूमि वन अधिकार में मिली है और जो 13 दिसम्बर, 2005 को शेष पट्टे की भूमि पर काबिज थे, उनके फार्म भरे जायेंगे।
वनग्राम के ऐसे अतिक्रामक जिनका कब्जा 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व से है और वन अधिकार पत्र जारी नहीं किया गया है, उनके वन अधिकार पत्र के आवेदन भरे जायेंगे। वनग्राम में किसी निवासी के पास 5 हेक्टेयर का वन पट्टा है तो उसे 5 हेक्टेयर का वन अधिकार पत्र जारी होगा। दो वारिस होने पर दोनों को आधा-आधा वन भूमि पट्टा दिया जायेगा।
यदि एक वारिसदार 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व पट्टे के रकबे सहित कुल 3 हेक्टेयर वन भूमि पर काबिज है तो उसे पात्र होने पर अतिरिक्त 0.5 हेक्टेयर का वन अधिकार पत्र जारी होगा। इसी प्रकार यदि दूसरा वारिसदार पट्टे के रकबे सहित कुल 5 हेक्टेयर वन भूमि पर काबिज है तो उसे पात्र होने पर अतिरिक्त 1.5 हेक्टेयर का वन अधिकार पत्र जारी होगा।