अध्यात्म के मार्ग पर गुरु ही साक्षात ईश्वर हैं, गुरु वाक्य पर दृढ़ विश्वास रखने वाले पाते हैं परम लक्ष्य.. दिनेश मालवीय

स्टोरी हाइलाइट्स
धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलने वालों के लिये सद्गुरु ही ईश्वर का साक्षात रूप होते हैं। कहा जा सकता है कि ईश्वर न दिखाई देने वाले गुरु हैं...
अध्यात्म के मार्ग पर गुरु ही साक्षात ईश्वर हैं, गुरु वाक्य पर दृढ़ विश्वास रखने वाले पाते हैं परम लक्ष्य.. दिनेश मालवीय
धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलने वालों के लिये सद्गुरु ही ईश्वर का साक्षात रूप होते हैं। कहा जा सकता है कि ईश्वर न दिखाई देने वाले गुरु हैं और गुरु दिखाई देने वाले ईश्वर। भारत की अध्यात्म परम्परा मे गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। बड़ा सुंदर श्लोक है-
ध्यान मूलं गुरुर्मूति, पूजा मूलम गुरुर्पदम,
मंत्र मूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरुर्कृपा।
अर्थात- गुरु की छवि ध्यान का मूल है, पूजा का मूल गुरु के चरण। मंत्र का मूल गुरु के वाक्य हैं, मोक्ष का मूल गुरुकृपा।
हम एक ऐसे गुरुभक्त बालक की कथा दिखाने जा रहे हैं, जिसने गुरुवाक्य पर पूरा विश्वास और अमल कर अध्यात्म की सबसे ऊँची स्थिति प्राप्त की। आज युगों बाद भी उसका नाम अध्यात्म के आकाश मे ध्रुव तारे की तरह चमकता है। उसका जीवन अध्यात्म पथ के पथिकों के लिये प्रकाश स्तंभ की तरह है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पुराण प्रसिद्ध अद्भुत गुरुभक्त बालक उपमन्यु की।
प्राचीन समय मे एक महान तपस्वी गुरु वन मे आश्रम बनाकर रहकर ईश आराधन करते थे। उनका नाम था महर्षि आयोद धौम्य। वहाँ वे अपने शिष्यों को भी ज्ञान देते थे। शिष्यों को अनेट तरह के काम सौपकर वह ख़ुद मी श्रम करते थे। उनका एक बहुत निश्छल मन का शिष्य था, जिसका नाम उपमन्यु था। गुरु ने उसे गायों को चराने का काम सौंपा था। वह दिनभर गाय चराता और रात को आश्रम मे लौट आता।
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जैसाकि हम सभी जानते हैं, जीवन मे कुछ बड़ा पाने के लिये परीक्षा देनी पड़ती है। महान सद्गुरु शिष्य की आस्था की दृढ़ता सिद्ध होने पर ही शिष्यों को गूढ़ ज्ञान देते हैं। एक दिन उपमन्यु को काफी हृष्टपुष्ट देखकर गुरुजी ने पूछा-"बेटा उपमन्यु, तू आश्रम मे भोजन नहीं करता, फिर तू हृष्टपुष्ट कैसे है ? उपमन्यु ने कहा कि मैं भिक्षा माँगकर अपने शरीर का निर्वाह करता हूँ। गुरुजी ने कहा कि बिना गुरु को अर्पण किये भिक्षा मे मिले भोजन को ग्रहण करना पाप है। लिहाजा, भिक्षा मे जो भी मिला करे, उसे पहले मुझे अर्पण किया करो। मैं दूँ, तभी भोजन किया करो।
उपमन्यु रोज़ाना भिक्षा लाकर गुरुजी को अर्पित करने लगा। गुरुजी तो परीक्षा ले रहे थे। वह पूरी भिक्षा ख़ुद रख लेते और उपमन्यु को कुछ नहीं देते थे। कुछ दिनों बाद गुरुजी ने देखा कि उपमन्यु पहले जैसा ही हृष्टपुष्ट बना हुआ है। उन्होंने पूछा कि आजकल तुम क्या खाते हो ? उपमन्यु ने कहा कि भिक्षा आपको अर्पित करके मैं फिर से भिक्षा माँग लेता हूँ। उसीको ग्रहण करता हूँ। गुरुजी ने इसे धर्मविरुद्ध बताकर कहा कि इससे गृहस्थों पर बोझ बढ़ता है। तुम आज से दुबारा भिक्षा नहीं माँगना।
उपमन्यु ने ऐसा ही किया। कुछ दिनों बाद गुरुजी ने देखा कि उपमन्यु जैसा था वैसा ही है। पूछने पर उसने बताया कि वह केवल गाय का दूध पीता है। गुरुजी ने कहा कि यह तुम क्या अनर्थ कर रहे हो। मेरे बिना पूछे गाय का दूध नहीं पीना। शिष्य ने यह बात भी मान ली। थोड़े दिन बाद गुरु ने फिर उपमन्यु को पहले की तरह हृष्टपुष्ट देखा। उन्होंने पूछा कि अब तुम क्या खाते हो ? उसने कहा कि बछड़ों के मुख से निकलने वाला फैन पीता हूँ। गुरु ने कहा कि इस तरह तो बछड़े भूखे रह जाते होंगे। तुम ऐसा मत किया करो। उपमन्यु ने यह आज्ञा भी मान ली।
उपमन्यु उपवास करने लगा। वह दिनभर गाय चराता और कुछ भी नहीं खाता पीता। इस तरह उपमन्यु का शरीर कमज़ोर होने लगा। भूख सहन न होने पर एक दिन वह आक के पत्तों को खा गया। इससे उसकी आँखों की रोशनी चली गयी। वह धीरे धीरे आवाज़ के सहारे गायों के पीछे चलने लगा। आगे एक कुआं था, जिसमें वह गिर पड़ा। रात को जब उपमन्यु नहीं आया, तो गुरुजी ने देखा कि गायें तो आ गयी हैं पर उपमन्यु नहीं आया। लगता है भूख सहन नहीं कर पाने के कारण भाग गया। गुरुजी उसे जंगल मे खोजने निकल पड़े। वह ज़ोर उसका नाम पुकारते रहे। उपमन्यु ने गुरुजी की आवाज़ सुन ली। उसने कहा कि मैं कुएँ मे पड़ा हूँ। गुरुजी ने उसे बाहर निकाल कर उससे सब बात जानकर उसकी गुरुभक्ति पर वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुये।
उन्होंने उससे आँखों की रोशनी वापस पाने के लिये देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों की स्तुति करने को कहा। अश्विनीकुमारों ने उसे एक पूआ देखर खाने को कहा, जिससे उसकी आँखों की रोशनी वापस आ जाएगी। उपमन्यु ने कहा कि वह गुरु को अर्पित किये बिना पूआ नहीं खा सकता। इससे प्रसन्न होकर अश्विनीकुमारों ने उपमन्यु की आँखें ठीक करने के साथ ही उसे सभी विद्याओं का ज्ञाता होने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार गुरुभक्ति से उपमन्यु ने परम ज्ञान प्राप्त किया। धर्म ही नहीं, किसी भी क्षेत्र मे गुरु के वचनों का पालन करके हम सर्वश्रेष्ठ प्राप्त कर सकते हैं।
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