स्टोरी हाइलाइट्स
पंच तत्वों का बना हुआ मानव-शरीर ब्रह्माण्ड का ही एक छोटा प्रतिरूप है. स्वरविज्ञान और ज्योतिष शास्त्र,भविष्य का ज्ञान, दैनिक जीवन में स्वर विज्ञान का महत्व
स्वरविज्ञान और ज्योतिष शास्त्र,भविष्य का ज्ञान, दैनिक जीवन में स्वर विज्ञान का महत्व, Jyotish mai Swar Vigyan ka Mahatwa
स्वर(SWAR) विज्ञान
पंच तत्वों का बना हुआ मानव-शरीर ब्रह्माण्ड का ही एक छोटा प्रतिरूप है. परमात्मा प्रभु की असीम कृपासे जन्मके साथ ही मानव को स्वरोदय ज्ञान मिला है. यह विशुद्ध वैज्ञानिक आध्यात्मिक ज्ञानदर्शन है. मनुष्य के नासिक में दो छिद्र हैं-दाहिना और बाँया. दो छिद्रों में से केवल एक छिद्र से ही वायु का प्रवेश और बाहर निकलना होता रहता है, दूसरा छिद्र बन्द रहता है. जब दूसरे छिद्र से वायुका प्रवेश एवं बाहर निकलना प्रारम्भ होता है तो पहला छिद्र स्वतः ही स्वाभाविक रूपसे बन्द होता है. अर्थात् एक छिद्र क्रियाशील रहता है तो दूसरा बन्द हो जाता है. इस प्रकार वायु का संचार की क्रिया-श्वास-प्रश्वास का ही स्वर(SWAR) कहते हैं. स्वर(SWAR) ही श्वास है, श्वास ही जीवन का प्राण है. स्वर(SWAR)का दिन-रात चौबीस घण्टे बना रहना ही जीवन है और स्वर(SWAR)का बन्द होना मृत्युका प्रतीक है. स्वर(SWAR)का उदय सूर्योदय के समय के साथ प्रारम्भ होता है. साधारणतया स्वर(SWAR) प्रतिदिन प्रत्येक ढाई घड़ी पर अर्थात् एक घंटे के बाद दायाँ-से-बायाँ और बायाँ-से दायाँ बदलता है और इन घड़ियोंके बीच स्वरोदयके साथ पाँच तत्त्व-पृथ्वी (२० मिनट), जल ( १६ मिनट), अग्नि (१२ मिनट), वायु (८ मिनट) एवं आकाश (४ मिनट) भी एक विशेष समय-क्रमसे उदय होकर क्रिया करते हैं. प्रत्येक (दायाँ-बायाँ) स्वर(SWAR)का स्वाभाविक गति से एक घण्टेमें ९०० श्वास-संचार का क्रम होता है और पाँच तत्व ६० घड़ी में १२ बार बदलते हैं. एक स्वस्थ व्यक्तिकी श्वास-प्रश्वास क्रिया दिन-रात अर्थात् २४ घण्टेमें २१६०० बार होती है. नासिकाके दाहिने छिद्रको दायाँ स्वर(SWAR) या सूर्य स्वर(SWAR) या पिंगला नाडी-स्वर(SWAR) कहते हैं तथा बाँयें छिद्रको बायाँ स्वर(SWAR) या चन्द्र स्वर(SWAR) या इडा नाडी-स्वर(SWAR) कहते हैं. कभी-कभी दोनों छिद्रोंसे वायुप्रवाह एक साथ निकलना प्रारम्भ हो जाता है, जिसे नाडी-स्वर(SWAR) कहते इसे उभय स्वर(SWAR) भी कहते हैं. इन स्वरोंका अनुभव व्यक्ति स्वयं ही करता है कि कौन-सा स्वर(SWAR) चलित है, कौन-सा स्वर(SWAR) अचलित है. यही स्वर(SWAR)विज्ञान-ज्योतिष है.
स्वर(SWAR) विज्ञान के परिणाम :
सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को अगर वाम स्वर(SWAR) यानी बाई(LEFT) नासिका से स्वर(SWAR) चल रहा हो तो यह श्रेष्ठ होता है. इसी प्रकार अगर मंगलवार, शनिवार और रविवार को दक्षिण स्वर(SWAR) यानी दाईं(RIGHT) नासिका से स्वर(SWAR) चल रहा हो तो इसे श्रेष्ठ बताया गया है.
अगर स्वर(SWAR) इसके प्रतिकूल हो तो
रविवार को शरीर में वेदना महसूस होगी
सोमवार को कलह का वातावरण मिलेगा
मंगलवार को मृत्यु और दूर देशों की यात्रा होगी
बुधवार को राज्य से आपत्ति होगी
गुरु और शुक्रवार को प्रत्येक कार्य की असिद्धी होगी
शनिवार को बल और खेती का नाश होगा
स्वर(SWAR) को तत्वों के आधार पर बांटा भी गया है. हर स्वर(SWAR) का एक तत्व होता है.
यह इडा या पिंगला (बाई(LEFT) अथवा दाई नासिका) से निकलने वाले वायु के प्रभाव से नापा जाता है.
श्वास का दैर्ध्य 16 अंगुल हो तो पृथ्वी तत्व
श्वास का दैर्ध्य 12 अंगुल हो तो जल तत्व
श्वास का दैर्ध्य 8 अंगुल हो तो अग्नि तत्व
श्वास का दैर्ध्य 6 अंगुल हो तो वायु तत्व
श्वास का दैर्ध्य 3 अंगुल हो तो आकाश तत्व होता है.
यह तत्व हमेशा एक जैसा नहीं रहता. तत्व के बदलने के साथ फलादेश भी बदल जाते हैं.
आगे हम देखेंगे तत्व के अनुसार क्या क्या फल सामने आते हैं.
शुक्ल पक्ष में नाडि़यों में तत्व का संचार देखें तो आमतौर पर वाम स्वर(SWAR) शुभ होते हैं और दक्षिण स्वर(SWAR) अशुभ.
पृथ्वी तत्व चले तो महल में प्रवेश
अग्नि तत्व चले तो जल से भय, घाव, घर का दाह
वायु तत्व चले तो चोर भय, पलायन, हाथी घोड़े की सवारी मिलती है.
आकाश तत्व चले तो मंत्र, तंत्र, यंत्र का उपदेश देव प्रतिष्ठा, व्याधि की उत्पत्ति, शरीर में निरंतर पीड़ा
अगर किसी भी समय में दोनों नाडि़यां एक साथ चलें तो योग में इसे उत्तम माना जाता है, लेकिन फल प्राप्ति के मामले में देखें तो फलों का समान फल कहा गया है. इसे बहुत उत्तम नहीं माना जाता है. यात्रा के संबंध में कहा जाता है कि यात्रा के दौरान इडा नाड़ी का चलना शुभ है लेकिन जहां पहुंचता है वहां पहुंचकर घर, ऑफिस या स्थल में प्रवेश करते समय पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए. अगली बार जब आप घर से बाहर निकलें तो यह जांच कर लें कि आपका कौनसा स्वर(SWAR) चल रहा है. इसी से आपको एक फौरी अनुमान हो जाएगा कि आप जिस काम के लिए निकल रहे हैं वह पूरा होगा कि नहीं.
स्वर(SWAR) विज्ञान एक बहुत ही आसान विद्या है. इनके अनुसार स्वरोदय, नाक के छिद्र से ग्रहण किया जाने वाला श्वास है, जो वायु के रूप में होता है. श्वास ही जीव का प्राण है और इसी श्वास को स्वर(SWAR) कहा जाता है. स्वर(SWAR) के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय कहा गया है तथा विज्ञान, जिसमें कुछ विधियाँ बताई गई हों और विषय के रहस्य को समझने का प्रयास हो, उसे विज्ञान कहा जाता है. स्वरोदय विज्ञान एक आसान प्रणाली है, जिसे प्रत्येक श्वास लेने वाला जीव प्रयोग में ला सकता है.
स्वरोदय अपने आप में पूर्ण विज्ञान है. इसके ज्ञान मात्र से ही व्यक्ति अनेक लाभों से लाभान्वित होने लगता है. इसका लाभ प्राप्त करने के लिए आपको कोई कठिन गणित, साधना, यंत्र-जाप, उपवास या कठिन तपस्या की आवश्यकता नहीं होती है. आपको केवल श्वास की गति एवं दिशा की स्थिति ज्ञात करने का अभ्यास मात्र करना है. यह विद्या इतनी सरल है कि अगर थोड़ी लगन एवं आस्था से इसका अध्ययन या अभ्यास किया जाए तो जीवनपर्यन्त इसके असंख्य लाभों से अभिभूत हुआ जा सकता है.
सूर्य, चंद्र और सुषुम्ना स्वर(SWAR)
सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को महसूस करने का प्रयत्न कीजिए. देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है. स्वरोदय विज्ञान के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर(SWAR) होगा. इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वर(SWAR) होगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से निःश्वास निकलता महसूस करें तो यह सुषुम्ना स्वर(SWAR) कहलाएगा. श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वरोदय विज्ञान का आधार हैं.
सूर्य स्वर(SWAR) पुरुष प्रधान है. इसका रंग काला है. यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर(SWAR) स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात् पार्वती का रूप है. इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात् इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर(SWAR) स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर(SWAR). सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर(SWAR) कहलाएगा.
स्वर(SWAR) को पहचानने की सरल विधियाँ
(1) शांत भाव से मन एकाग्र करके बैठ जाएँ. अपने दाएँ हाथ को नाक छिद्रों के पास ले जाएँ. तर्जनी अँगुली छिद्रों के नीचे रखकर श्वास बाहर फेंकिए. ऐसा करने पर आपको किसी एक छिद्र से श्वास का अधिक स्पर्श होगा. जिस तरफ के छिद्र से श्वास निकले, बस वही स्वर(SWAR) चल रहा है.
(2) एक छिद्र से अधिक एवं दूसरे छिद्र से कम वेग का श्वास निकलता प्रतीत हो तो यह सुषुम्ना के साथ मुख्य स्वर(SWAR) कहलाएगा.
(3) एक अन्य विधि के अनुसार आईने को नासाछिद्रों के नीचे रखें. जिस तरफ के छिद्र के नीचे काँच पर वाष्प के कण दिखाई दें, वही स्वर(SWAR) चालू समझें.
जीवन में स्वर(SWAR) का चमत्कार
स्वर(SWAR) विज्ञान अपने आप में दुनिया का महानतम ज्योतिष विज्ञान है जिसके संकेत कभी गलत नहीं जाते. शरीर की मानसिक और शारीरिक क्रियाओं से लेकर दैवीय सम्पर्कों और परिवेशीय घटनाओं तक को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला स्वर(SWAR) विज्ञान दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है. स्वर(SWAR) विज्ञान का सहारा लेकर आप जीवन को नई दिशा दृष्टि दे सकते है. दिव्य जीवन का निर्माण कर सकते हैं, लौकिक एवं पारलौकिक यात्रा को सफल बना सकते हैं. यही नहीं तो आप अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति और क्षेत्र की धाराओं तक को बदल सकने का सामर्थ्य पा जाते हैं.
अपनी नाक के दो छिद्र होते हैं. इनमें से सामान्य अवस्था में एक ही छिद्र से हवा का आवागमन होता रहता है. कभी दायां तो कभी बांया. जिस समय स्वर(SWAR) बदलता है उस समय कुछ सैकण्ड के लिए दोनों नाक में हवा निकलती प्रतीत होती है. इसके अलावा कभी - कभी सुषुम्ना नाड़ी के चलते समय दोनों नासिक छिद्रों से हवा निकलती है. दोनों तरफ सांस निकलने का समय योगियों के लिए योग मार्ग में प्रवेश करने का समय होता है. बांयी तरफ सांस आवागमन का मतलब है आपके शरीर की इड़ा नाड़ी में वायु प्रवाह है. इसके विपरीत दांयी नाड़ी पिंगला है. दोनों के मध्य सुषुम्ना नाड़ी का स्वर(SWAR) प्रवाह होता है. अपनी नाक से निकलने वाली साँस को परखने मात्र से आप जीवन के कई कार्यों को बेहतर बना सकते हैं. सांस का संबंध तिथियों और वारों से जोड़कर इसे और अधिक आसान बना दिया गया है. जिस तिथि को जो सांस होना चाहिए, वही यदि होगा तो आपका दिन अच्छा जाएगा. इसके विपरीत होने पर आपका दिन बिगड़ा ही रहेगा. इसलिये साँस पर ध्यान दें और जीवन विकास की यात्रा को गति दें.
मंगल, शनि और रवि का संबंध सूर्य स्वर(SWAR) से है जबकि शेष का संबंध चन्द्र स्वर(SWAR) से. आपके दांये नथुने से निकलने वाली सांस पिंगला है. इस स्वर(SWAR) को सूर्य स्वर(SWAR) कहा जाता है. यह गरम होती है. जबकि बांयी ओर से निकलने वाले स्वर(SWAR) को इड़ा नाड़ी का स्वर(SWAR) कहा जाता है. इसका संबंध चन्द्र से है और यह स्वर(SWAR) ठण्डा है.
शुक्ल पक्ष:-
.प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया बांया (उल्टा)
.चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी -दांया (सीधा)
.सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी बांया (उल्टा)
.दशमी, एकादशी एवं द्वादशी –दांया (सीधा)
.त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा – बांया (उल्टा)
कृष्ण पक्ष:-
.प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया दांया (सीधा)
.चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी बांया (उल्टा)
.सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी दांया(सीधा)
.दशमी, एकादशी एवं द्वादशी बांया(उल्टा)
.त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावास्या --दांया(सीधा)
सवेरे नींद से जगते ही नासिका से स्वर(SWAR) देखें. जिस तिथि को जो स्वर(SWAR) होना चाहिए, वह हो तो बिस्तर पर उठकर स्वर(SWAR) वाले नासिका छिद्र की तरफ के हाथ की हथेली का चुम्बन ले लें और उसी दिशा में मुंह पर हाथ फिरा लें. यदि बांये स्वर(SWAR) का दिन हो तो बिस्तर से उतरते समय बांया पैर जमीन पर रखकर नीचे उतरें, फिर दायां पैर बांये से मिला लें और इसके बाद दुबारा बांया पैर आगे निकल कर आगे बढ़ लें. यदि दांये स्वर(SWAR) का दिन हो और दांया स्वर(SWAR) ही निकल रहा हो तो बिस्तर पर उठकर दांयी हथेली का चुम्बन ले लें और फिर बिस्तर से जमीन पर पैर रखते समय पर पहले दांया पैर जमीन पर रखें और आगे बढ़ लें. यदि जिस तिथि को स्वर(SWAR) हो, उसके विपरीत नासिका से स्वर(SWAR) निकल रहा हो तो बिस्तर से नीचे नहीं उतरें और जिस तिथि का स्वर(SWAR) होना चाहिए उसके विपरीत करवट लेट लें. इससे जो स्वर(SWAR) चाहिए, वह शुरू हो जाएगा और उसके बाद ही बिस्तर से नीचे उतरें. स्नान, भोजन, शौच आदि के वक्त दाहिना स्वर(SWAR) रखें.
पानी, चाय, काफी आदि पेय पदार्थ पीने,पेशाब करने,अच्छे काम करने आदि में बांया स्वर(SWAR) होना चाहिए. जब शरीर अत्यधिक गर्मी महसूस करे तब दाहिनी करवट लेट लें और बांया स्वर(SWAR) शुरू कर दें. इससे तत्काल शरीर ठंडक अनुभव करेगा. जब शरीर ज्यादा शीतलता महसूस करे तब बांयी करवट लेट लें, इससे दाहिना स्वर(SWAR) शुरू हो जाएगा और शरीर जल्दी गर्मी महसूस करेगा.
जिस किसी व्यक्ति से कोई काम हो, उसे अपने उस तरफ रखें जिस तरफ की नासिका का स्वर(SWAR) निकल रहा हो. इससे काम निकलने में आसानी रहेगी. जब नाक से दोनों स्वर(SWAR) निकलें, तब किसी भी अच्छी बात का चिन्तन न करें अन्यथा वह बिगड़ जाएगी. इस समय यात्रा न करें अन्यथा अनिष्ट होगा. इस समय सिर्फ भगवान का चिन्तन ही करें. इस समय ध्यान करें तो ध्यान जल्दी लगेगा.
दक्षिणायन शुरू होने के दिन प्रातःकाल जगते ही यदि चन्द्र स्वर(SWAR) हो तो पूरे छह माह अच्छे गुजरते हैं. इसी प्रकार उत्तरायण शुरू होने के दिन प्रातः जगते ही सूर्य स्वर(SWAR) हो तो पूरे छह माह बढ़िया गुजरते हैं. कहा गया है - कर्के चन्द्रा, मकरे भानु.
रोजाना स्नान के बाद जब भी कपड़े पहनें, पहले स्वर(SWAR) देखें और जिस तरफ स्वर(SWAR) चल रहा हो उस तरफ से कपड़े पहनना शुरू करें और साथ में यह मंत्र बोलते जाएं - ॐ जीवं रक्ष. इससे दुर्घटनाओं का खतरा हमेशा के लिए टल जाता है.
आप घर में हो या आफिस में, कोई आपसे मिलने आए और आप चाहते हैं कि वह ज्यादा समय आपके पास नहीं बैठा रहे. ऎसे में जब भी सामने वाला व्यक्ति आपके कक्ष में प्रवेश करे उसी समय आप अपनी पूरी साँस को बाहर निकाल फेंकियें, इसके बाद वह व्यक्ति जब आपके करीब आकर हाथ मिलाये, तब हाथ मिलाते समय भी यही क्रिया गोपनीय रूप से दोहरा दें. आप देखेंगे कि वह व्यक्ति आपके पास ज्यादा बैठ नहीं पाएगा, कोई न कोई ऎसा कारण उपस्थित हो जाएगा कि उसे लौटना ही पड़ेगा. इसके विपरीत आप किसी को अपने पास ज्यादा देर बिठाना चाहें तो कक्ष प्रवेश तथा हाथ मिलाने की क्रियाओं के वक्त सांस को अन्दर खींच लें. आपकी इच्छा होगी तभी वह व्यक्ति लौट पाएगा. कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है, लेकिन स्वर(SWAR) विपरीत चल रहा होता है. ऐसे समय में स्वर(SWAR) की प्रतीक्षा करने पर उत्तम अवसर हाथों से निकल सकता है, अत: स्वर(SWAR) परिवर्तन के द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए प्रस्थान करना चाहिए या कार्य प्रारंभ करना चाहिए. स्वर(SWAR) विज्ञान का सम्यक ज्ञान आपको सदैव अनुकूल परिणाम प्रदान करवा सकता है.
कब करें कौन सा काम
ग्रहों को देखे बिना स्वर(SWAR) विज्ञान के ज्ञान से अनेक समस्याओं, बाधाओं एवं शुभ परिणामों का बोध इन नाड़ियों से होने लगता है, जिससे अशुभ का निराकरण भी आसानी से किया जा सकता है.चंद्रमा एवं सूर्य की रश्मियों का प्रभाव स्वरों पर पड़ता है. चंद्रमा का गुण शीतल एवं सूर्य का उष्ण है. शीतलता से स्थिरता, गंभीरता, विवेक आदि गुण उत्पन्न होते हैं और उष्णता से तेज, शौर्य, चंचलता, उत्साह, क्रियाशीलता, बल आदि गुण पैदा होते हैं. किसी भी काम का अंतिम परिणाम उसके आरंभ पर निर्भर करता है. शरीर व मन की स्थिति, चंद्र व सूर्य या अन्य ग्रहों एवं नाड़ियों को भलीभांति पहचान कर यदि काम शुरु करें तो परिणाम अनुकूल निकलते हैं.
स्वर(SWAR) वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि विवेकपूर्ण और स्थायी कार्य चंद्र स्वर(SWAR) में किए जाने चाहिए, जैसे विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि ऐसे कार्य हैं कि जिनमें अधिक गंभीरता और बुद्धिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता होती है. इसीलिए चंद्र स्वर(SWAR) के चलते इन कार्यो का आरंभ शुभ परिणामदायक होता है. उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर(SWAR) उत्तम कहा जाता है. दाहिने नथुने से श्वास ठीक आ रही हो अर्थात सूर्य स्वर(SWAR) चल रहा हो तो परिणाम अनुकूल मिलने वाला होता है.
दबाए मानसिक विकार
कुछ समय के लिए दोनों नाड़ियां चलती हैं अत: प्राय: शरीर संधि अवस्था में होता है. इस समय पारलौकिक भावनाएं जागृत होती हैं. संसार की ओर से विरक्ति, उदासीनता और अरुचि होने लगती है. इस समय में परमार्थ चिंतन, ईश्वर आराधना आदि की जाए, तो सफलता प्राप्त हो सकती है. यह काल सुषुम्ना नाड़ी का होता है, इसमें मानसिक विकार दब जाते हैं और आत्मिक भाव का उदय होता है.
अन्य उपाय
यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो जो स्वर(SWAR) नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर(SWAR) की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए. ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को आपका अविचलित स्वर(SWAR) का शांत भाग शांत बना देगा और मनोरथ की सिद्धि होगी.
गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर(SWAR) से ही वार्ता करनी चाहिए. कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है लेकिन स्वर(SWAR) विपरीत चल रहा होता है.ऐसे समय स्वर(SWAR) बदलने के प्रयास करने चाहिए. स्वर(SWAR) को परिवर्तित कर अपने अनुकूल करने के लिए कुछ उपाय कर लेने चाहिए. जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें. इस तरह कुछ ही देर में स्वर(SWAR) परिवर्तित हो जाएगा. घी खाने से वाम स्वर(SWAR) और शहद खाने से दक्षिण स्वर(SWAR) चलना प्रारंभ हो जाता है.
Alok Sharma
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