सुप्रीम कोर्ट ने किया आईएफएस को कमजोर करने वाले मप्र सरकार के आदेश को खारिज


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स्टोरी हाइलाइट्स

आईएफएस अफसर की हुई जीत, एसीएस वर्णवाल की किरकिरी..!

भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को म.प्र. सरकार द्वारा 29 जून, 2024 को जारी किए गए एक विवादास्पद आदेश को खारिज कर दिया। इस आदेश में कहा गया था कि गैर-वन अधिकारी - विशेष रूप से कलेक्टर और संभागीय आयुक्त - प्रधान मुख्य वन संरक्षक सहित वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों की कार्य-निष्पादन मूल्यांकन प्रक्रिया में भाग लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के एपीएआर संशोधन प्रक्रिया के आदेश को अनुचित ठहराते हुए वर्ष 2002 में पूर्ववर्ती आदेश को यथावत रखा। यानि अब डीएफओ और एपीसीसीएफ के एपीएआर में कलेक्टर कमिश्नर और प्रमुख सचिव टिप्पणी नहीं लिखेंगे। उच्चतम न्यायालय के आदेश से आईएफएस अफसर की जहां जीत हुई है वही प्रदेश के नौकरशाही खासकर एसीएस अशोक वर्णवाल की किरकिरी हुई है।

पर्यावरण अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल और अन्य द्वारा दायर याचिका के बाद भारत के  मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने माननीय न्यायमूर्ति मसीह के साथ मिलकर यह फैसला सुनाया। अधिवक्ता बंसल ने आदेश की संवैधानिकता और प्रशासनिक सुदृढ़ता को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि इसने भारतीय वन सेवा की संस्थागत अखंडता का उल्लंघन किया है और वन संरक्षण प्रयासों को कमजोर किया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि महत्वपूर्ण वन और वन्यजीव संरक्षण कार्य का आकलन करने में गैर-वन अधिकारियों को शामिल करना न केवल अनुचित होगा, बल्कि टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ (2000) और संतोष भारती बनाम मध्य प्रदेश राज्य जैसे ऐतिहासिक पर्यावरण मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित कानूनी मिसालों के भी विपरीत होगा। मामले को गंभीरता से लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य का आदेश भारतीय वन सेवा की स्वायत्तता और तकनीकी अध्यादेश का उल्लंघन करता है और भारत के वन प्रशासन के लिए इसके दूरगामी परिणाम हैं। न्यायालय ने पहले मध्य प्रदेश सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि आदेश वापस न लेने पर अवमानना ​​कार्यवाही की जा सकती है। 

बुधवार को न्यायालय ने प्रशासनिक औचित्य और पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए आदेश को निर्णायक रूप से रद्द कर दिया। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील गौरव कुमार बंसल की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया। अधिवक्ता बंसल ने निजी याचिका लगाई थी। अधिवक्ता बंसल ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि मप्र सरकार द्वारा जारी आदेश दिनांक 29 जून 2024 के  पैरा 2 और पैरा 3 को रद्द करें। 

क्या थी एपीएआर लिखने की नई व्यवस्था?

29 जून 24 को जारी आदेश के तहत राज्य शासन ने प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) से लेकर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) तक के भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए एपीएआर चैनल के संबंध में एक नई व्यवस्था शुरू की है। राज्य शासन के आदेश खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका कर्ता एडवोकेट गौरव कुमार बंसल ने अपने याचिका में कहा है कि 29 जून 24 के अपने आदेश के तहत मध्य प्रदेश राज्य ने प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) से लेकर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) तक के भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए पीएआर चैनल के संबंध में एक नई व्यवस्था शुरू की है। 

आईएफएस का संरक्षण जरूरी

जहां भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों का समग्र काम राजस्व और प्रशासनिक मामलों पर केंद्रित है और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों का काम कानून और व्यवस्था पर केंद्रित है, वहीं भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों का काम प्रकृति में अधिक तकनीकी है। वह पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए समर्पित हैं। इस अद्वितीय भूमिका के कारण, कई बार भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों को अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जब उनके संरक्षण प्रयास राज्य अधिकारियों द्वारा अपनाए गए विकासात्मक उद्देश्यों से टकराते हैं। ऐसे आईएफएस अफसरों का संरक्षण अधिक जरूरी है। अतः एपीआर लिखने की प्रक्रिया में संशोधन गैर वाजिब है।